11-जुलाई-2019 |
इसके लिए अमरीका द्वारा बीच का रास्ता निकाला गया। अमरीका ने नवाज़ शरीफ को ऑफर दिया कि यदि पाकिस्तानी फ़ौज पीछे हटती है तो अमरीका पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहारा देने के लिए खड़ा रहेगा। नवाज़ शरीफ ने 2 जुलाई 1999 को राष्ट्रपति क्लिंटन से बात की और युद्ध समाप्त करने के लिए हस्तक्षेप करने को कहा। साथ ही पाकिस्तान चाहता था कि अमरीकी राष्ट्रपति कश्मीर समस्या को सुलझाने में हस्तक्षेप करें। क्लिंटन ने शरीफ से मुलाकात की बात तो मान ली लेकिन एक शर्त भी रखी कि ऐसे माहौल में अमरीका कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा।
आखिरकार 4 जुलाई को क्लिंटन और शरीफ की मुलाकात हुई। यहाँ यह याद रखना होगा कि क्लिंटन-शरीफ मुलाकात से 20 घंटे पहले भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर पुनः कब्जा कर लिया था। इसका अर्थ यह है कि भारत ने पाकिस्तान की घुसपैठ का मुँहतोड़ जवाब दिया था जिसकी उन्हें कल्पना नहीं थी। भारतीय सेना ने जिस तीव्रता से जवाबी हमला किया था उससे अमरीका भी चिंतित था। अमरीका ने प्रधानमंत्री वाजपेयी को भी वार्ता के लिए आमंत्रित किया था लेकिन वाजपेयी जी ने वह आमंत्रण अस्वीकार कर दिया था।
इसके बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वी पी मलिक के बीच बातचीत का दौर चला जिसमें प्रधानमंत्री ने उन्हें जल्दी से जल्दी भारतीय भूमि को पाकिस्तानी कब्जे से छुड़ाने और युद्ध समाप्त करने का आदेश दिया।
अंततः भारतीय सेना और पाकिस्तानी फ़ौज के DGMO के बीच 11 जुलाई 1999 को अटारी में बातचीत हुई और पाकिस्तान तीन चरणों में अपनी फ़ौज वापस करने के लिए तैयार हो गया। पहले चरण में 12-15 जुलाई के बीच मश्कोह सेक्टर, दूसरे चरण में 14-15 जुलाई के बीच द्रास, और तीसरे चरण में 15-16 जुलाई के बीच बटालिक सेक्टर से फ़ौज हटा लेने पर सहमति बनी।