11 जुलाई 1999- जब पाकिस्तानी फ़ौज को LoC से पीछे हटना पड़ा था
   11-जुलाई-2019


 

साल 1999 में जून के महीने में जब कारगिल युद्ध चरम पर था तब अमरीका ने लड़ाई बंद करवाने के प्रयास प्रारंभ कर दिए थे। राष्ट्रपति क्लिंटन ने नवाज़ शरीफ और अटल बिहारी वाजपेयी से बातचीत करनी प्रारंभ कर दी थी। क्लिंटन ने यूएस सेंट्रल कमांड के कमांडर इन चीफ जनरल एंथोनी ज़िन्नि को पाकिस्तान भेजा। जनरल ज़िन्नि मुशर्रफ के अच्छे दोस्त थे। उन्होंने पाकिस्तानी हुक्मरानों को सीधा संदेश दिया कि यदि पाकिस्तानी फ़ौज नियंत्रण रेखा से पीछे नहीं हटती है तो युद्ध का स्तर इतना विकराल हो जाएगा कि पाकिस्तान परमाणु हमले में तबाह हो जाएगा।
 
 
 
पाकिस्तान के लिए पीछे हटने का मतलब था राष्ट्रीय शर्म और अंतरराष्ट्रीय बदनामी। नियंत्रण रेखा से पीछे हटने से पाकिस्तानी फ़ौज के उस दावे को झटका लगता कि भारत ने उनकी भूमि पर कब्जा किया था। यह अपने ही देश में पाकिस्तानी फ़ौज और सत्ता प्रतिष्ठान की एक प्रकार से राजनैतिक आत्महत्या होती।
 
 

 

इसके लिए अमरीका द्वारा बीच का रास्ता निकाला गया। अमरीका ने नवाज़ शरीफ को ऑफर दिया कि यदि पाकिस्तानी फ़ौज पीछे हटती है तो अमरीका पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहारा देने के लिए खड़ा रहेगा। नवाज़ शरीफ ने 2 जुलाई 1999 को राष्ट्रपति क्लिंटन से बात की और युद्ध समाप्त करने के लिए हस्तक्षेप करने को कहा। साथ ही पाकिस्तान चाहता था कि अमरीकी राष्ट्रपति कश्मीर समस्या को सुलझाने में हस्तक्षेप करें। क्लिंटन ने शरीफ से मुलाकात की बात तो मान ली लेकिन एक शर्त भी रखी कि ऐसे माहौल में अमरीका कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा।

 
 
 

आखिरकार 4 जुलाई को क्लिंटन और शरीफ की मुलाकात हुई। यहाँ यह याद रखना होगा कि क्लिंटन-शरीफ मुलाकात से 20 घंटे पहले भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर पुनः कब्जा कर लिया था। इसका अर्थ यह है कि भारत ने पाकिस्तान की घुसपैठ का मुँहतोड़ जवाब दिया था जिसकी उन्हें कल्पना नहीं थी। भारतीय सेना ने जिस तीव्रता से जवाबी हमला किया था उससे अमरीका भी चिंतित था। अमरीका ने प्रधानमंत्री वाजपेयी को भी वार्ता के लिए आमंत्रित किया था लेकिन वाजपेयी जी ने वह आमंत्रण अस्वीकार कर दिया था।

 
 
 
क्लिंटन से वार्ता के बाद पाकिस्तान मीडिया में परमाणु हमले की धमकियाँ देता रहा। हालाँकि भारत ने उन धमकियों पर कभी ध्यान नहीं दिया। 5 जुलाई को ब्रजेश मिश्र ने सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति के सामने अग्नि-2 मिसाइल के परीक्षण का प्रस्ताव रखा। यह प्रस्ताव बाद में ख़ारिज कर दिया गया क्योंकि इससे युद्ध बढ़ जाने की आशंका थी। 6 जुलाई 1999 को भारत और पाकिस्तानी सेना के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन (DGMO) ने फोन पर बातचीत की। इस बातचीत में लेफ्टिनेंट जनरल निर्मल चंद्र विज ने पाकिस्तानी DGMO को मारे गए पाकिस्तानी फौजियों के शवों के बारे में बताया और उनकी यूनिट के नाम के बताए। पाकिस्तानी DGMO यह बर्दाश्त नहीं कर पाया और बातचीत खत्म कर दी। 
 
 
 
 

 
 

इसके बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वी पी मलिक के बीच बातचीत का दौर चला जिसमें प्रधानमंत्री ने उन्हें जल्दी से जल्दी भारतीय भूमि को पाकिस्तानी कब्जे से छुड़ाने और युद्ध समाप्त करने का आदेश दिया।

 
 

अंततः भारतीय सेना और पाकिस्तानी फ़ौज के DGMO के बीच 11 जुलाई 1999 को अटारी में बातचीत हुई और पाकिस्तान तीन चरणों में अपनी फ़ौज वापस करने के लिए तैयार हो गया। पहले चरण में 12-15 जुलाई के बीच मश्कोह सेक्टर, दूसरे चरण में 14-15 जुलाई के बीच द्रास, और तीसरे चरण में 15-16 जुलाई के बीच बटालिक सेक्टर से फ़ौज हटा लेने पर सहमति बनी।