पाकिस्तानी प्रोपगैंडा फैलाने वाले नूरानी जैसे ‘एक्सपर्ट’ ने जम्मू कश्मीर के तथ्यों और देश के संविधान से धोखा किया है
   16-जुलाई-2019


 

 

 
जम्मू-कश्मीर संबंधित विषयों के तथाकथित विशेषज्ञ और मशहूर वकील ए जी नूरानी ने पाकिस्तानी अख़बार ‘डॉन’ (Dawn) में कुछ दिनों पहले एक लेख लिखा। उसमें उन्होंने लिखा कि लोकतंत्र और न्याय पीर पंजाल पर्वत शृंखला तक आकर समाप्त हो जाता है। उसके पार कश्मीर घाटी में न्याय और लोकतंत्र नहीं है। नूरानी के अनुसार घाटी में उठने वाले विरोध के स्वर से भारतीय जनता या लोकतांत्रिक संस्थानों को कोई फर्क नहीं पड़ता।
 
उदाहरण देते हुए नूरानी ने लिखा कि पत्रकार प्रशांत कनौजिया के संबंध में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि कनौजिया के कृत्य के लिए उसे गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए था। लेकिन न्यायालय के ऐसे विचार कश्मीर के पत्रकारों के लिए नहीं होते। नूरानी ने उदाहरण दिया कि श्रीनगर से प्रकाशित ‘डेली अफ़ाक़’ के संपादक 62 वर्षीय ग़ुलाम जीलानी क़ादरी के घर पर 24 जून को पुलिस ने रेड डालकर गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी 1990 के दौर के किसी मामले में हुई थी। आठ और पत्रकारों के विरुद्ध मामला दर्ज हुआ था। क़ादरी को गिरफ्तारी के अगले ही दिन छोड़ दिया गया था। गिरफ्तारी की कोई वजह नहीं बताई गई थी जिसके कारण कश्मीर एडिटर्स गिल्ड ने इस कार्रवाई की जमकर निंदा की। 
 
इसके बाद नूरानी बताते हैं कि कश्मीर एडिटर्स गिल्ड के अध्यक्ष और ग्रेटर कश्मीर के संपादक फ़ैयाज़ अहमद कालू से राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने पूछताछ की। ग्रेटर कश्मीर के जनरल मैनेजर राशिद मख़दूमी से भी NIA से ने पूछताछ की। फरवरी में कोलकाता के अख़बार द टेलीग्राफ ने खबर दी कि जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने ग्रेटर कश्मीर और कश्मीर रीडर को सरकारी विज्ञापन देने बंद कर दिए। 
 
इन सब घटनाओं का सार नूरानी यह निकालते हैं कि कश्मीर में पत्रकारों को दबाया जा रहा है, उनपर ज़ुल्म हो रहा है और उनकी सुनने वाला कोई नहीं। नूरानी साहब को इस बात का दर्द भी है कि ग्रेटर कश्मीर के संपादक और जनरल मैनेजर को NIA ने दिल्ली क्यों बुलाया, एजेंसी खुद चलकर कालू और मख़दूमी तक क्यों नहीं गई। मजेदार बात यह है कि यह सब बातें नूरानी ने पाकिस्तान के अख़बार डॉन में लिखी हैं। नूरानी साहब कश्मीर के पत्रकारों की कथित दुःखद गाथा पाकिस्तान के अख़बार के ज़रिये किसको सुनाना चाहते हैं पता नहीं लेकिन इतना तय है कि उन्होंने अपने लेख में कश्मीर के पत्रकारों का एक ही पक्ष दिखाया है। ग्रेटर कश्मीर के संपादक पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों के चलते उनसे पूछताछ की गई। यह तो एक अलग मसला है लेकिन इस अख़बार और इसके संपादक पर एक ही आरोप नहीं हैं।  
 
जम्मू कश्मीर में सर्वाधिक सर्कुलेशन का दंभ भरने वाले ग्रेटर कश्मीर अख़बार के बारे में बात करें तो पता चलेगा कि यह अख़बार हमेशा कश्मीर के अलगाववादियों के पक्ष में बोलता रहा है। मुख्य रूप से यह अलगाववादी एजेंडा चलाने वाला अख़बार है। ग्रेटर कश्मीर की भाषा ऐसी है कि यह ‘सुरक्षा बलों’ को ‘forces’ लिखता है, भारत सरकार को ‘rulers’ शब्द से संबोधित करता है, और यहाँ तक कि कश्मीर को ‘Kashmir Nation’ कहता है। ग्रेटर कश्मीर के संपादक पर आँसू बहाने वाले ए जी नूरानी क्या एक भारतीय अख़बार की इस प्रकार की भाषा पर कुछ कहने की हिम्मत करेंगे? 
 

 
 
ग्रेटर कश्मीर ने हमेशा जम्मू कश्मीर राज्य की समस्या को ‘dispute’ लिखा है। नूरानी साहब ने संविधान पढ़ा है और उन्हें पता होना चाहिए कि संविधान की पहली अनुसूची में 15वां राज्य जम्मू कश्मीर है। जब महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे तभी जम्मू कश्मीर भारत का राज्य बन गया था। अब इसमें कोई विवाद या ‘dispute’ कहाँ उत्पन्न होता है? क्या ग्रेटर कश्मीर की इस प्रकार की भाषा पर नूरानी साहब ने कभी आपत्ति करने का कष्ट किया? 
 
ग्रेटर कश्मीर अख़बार का संपादकीय हमेशा पाकिस्तान परस्त एजेंडे से भरा होता है। इस अख़बार ने जम्मू कश्मीर राज्य के मसले पर हमेशा तीसरे पक्ष की वकालत की है। जब भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 में शिमला समझौते में यह निर्धारित हो गया कि जम्मू कश्मीर दो देशों के बीच का मामला है तब तीसरे पक्ष की बात करना पाकिस्तान के एजेंडे को आगे बढ़ाना नहीं है तो और क्या है? क्या इसका जवाब नूरानी साहब देंगे? निरंतर आतंकवादियों को प्रोत्साहित करने वाली विषयवस्तु छापना, कश्मीर की कथित आज़ादी का समर्थन करने वाले लेख लिखना और अलगाववादियों की खबरों का बढ़ा-चढ़ा कर कवरेज करना क्या किसी भारतीय अख़बार को शोभा देता है?
 
और क्या ऐसी गिरी हुई पत्रकारिता के समर्थन में पाकिस्तान के अख़बार डॉन में लेख लिखकर नूरानी साहब भारत विरोधी पाकिस्तानी एजेंडे को हवा नहीं दे रहे? ग्रेटर कश्मीर एक ऐसा अख़बार है जो छपता तो कश्मीर से है लेकिन भाषा पाकिस्तान की बोलता है। इमरान खान से लेकर आतंकवादी मकबूल बट की कहानियाँ सुनाने और कश्मीरी जनता को बरगलाने वाले ग्रेटर कश्मीर की वकालत पाकिस्तानी अख़बार में कर नूरानी साहब क्या यही साबित करना चाहते हैं कि पाकिस्तान दुनिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे बड़ा हिमायती है? यदि नहीं तो क्या वजह है कि नूरानी को पीर पंजाल के उसे पार यानि कश्मीर में भारत सरकार द्वारा किए गए अनेक विकास कार्य दिखाई नहीं देते? उन्हें उस उच्चतम न्यायालय पर भरोसा क्यों नहीं है जहाँ पेलेट गन के इस्तेमाल को भी चैलेंज किया गया था।