18 जुलाई 1947- भारत स्वाधीनता अधिनियम को ब्रिटिश क्राउन की स्वीकृति और तथ्यात्मक भ्रांतियां
   18-जुलाई-2019


 

 
 
15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ था। लेकिन यह स्वतंत्रता ऐसे ही नहीं दी गई थी। इसके लिए ब्रिटेन की संसद ने ‘India Independence Act’ पास किया था जिसे भारत स्वाधीनता अधिनियम भी कहा जाता है। भारत स्वाधीनता अधिनियम को ब्रिटिश क्राउन की स्वीकृति 18 जुलाई 1947 को मिली थी। इस कानून के अंतर्गत दो डोमिनियन बने थे- भारत और पाकिस्तान। एक्ट के तहत बंगाल और पंजाब प्रान्त का भी बँटवारा हुआ था। इंडिया और पाकिस्तान नामक डोमिनियन में क्राउन का प्रतिनिधित्व करने वाला एक-एक गवर्नर जनरल भी नियुक्त किया गया था। जब ब्रिटेन ने भारत को स्वतंत्र करने का निर्णय लिया तब वायसरॉय पद समाप्त कर गवर्नर जनरल नियुक्त किया। इसी कारण मॉउंटबैटन भारत के अंतिम वायसरॉय थे और स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल भी। सन 1948-50 तक राजगोपालाचारी भारत के गवर्नर जनरल रहे।
 
 
 
भारत स्वाधीनता अधिनियम के अंतर्गत ब्रिटिश इंडिया का विभाजन किया जाना था। दरअसल आमजन में यह गलत धारणा है कि अंग्रेज पूरे भारत पर एक समान तरीके से राज करते थे। ब्रिटेन समूचे भारत पर सीधा शासन नहीं करता था। जिन हिस्सों पर ब्रिटेन का सीधा शासन था उन्हें ब्रिटिश इंडिया कहा जाता था और जिन राज्यों के राजाओं से अंग्रेजों ने संधियाँ की थीं उन्हें प्रिंसली स्टेट कहते थे। उदाहरण के लिए राजपूताना, हैदराबाद, मैसूर, जम्मू कश्मीर ये सभी प्रिंसली स्टेट थे। इन पर ब्रिटेन का सीधा शासन नहीं था। इन राज्यों के शासकों से अंग्रेजों ने कुछ संधियाँ की थीं जिनके आधार पर शासन चलता था। भारत स्वाधीनता अधिनियम के तहत विभाजन केवल ब्रिटिश इंडिया का होना था और दो डोमिनियन बनने थे- इंडिया और पाकिस्तान।
 
 
 
 
अब सवाल यह उठता है कि यदि विभाजन ब्रिटिश इंडिया का होना था तो प्रिंसली स्टेट्स का क्या हुआ। इसका जवाब एक और पुराने एक्ट में है। 1947 में भारत स्वाधीनता अधिनियम आने से पहले 1935 में गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट आया था। अंग्रेजों ने इस एक्ट के तहत प्रिंसली स्टेट्स को भारत या पाकिस्तान दोनों में से किसी एक डोमिनियन में शामिल होने का विकल्प दिया। फरवरी 20, 1947 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने घोषणा की कि वे 3 जून 1948 तक ब्रिटिश इंडिया को पूर्ण स्वायत्त सरकार दे देंगे और शक्ति के हस्तांतरण (Transfer of Power) की प्रक्रिया पूरी होने के बाद प्रिंसली स्टेट्स का भविष्य निर्धारित किया जाएगा।
 
 
 
 
इसके बाद 3 जून 1947 को मॉउंटबैटन प्लान के अंतर्गत सैद्धांतिक रूप से ब्रिटिश इंडिया का विभाजन, डोमिनियन स्टेटस, दोनों देशों को स्वायत्तता और सार्वभौमिकता और अपना संविधान बनाने को स्वीकृति दी गई। 18 जुलाई 1947 को भारत स्वाधीनता अधिनियम को शाही ब्रिटिश स्वीकृति (Royal Assent) मिलने के साथ ही इंडिया और पाकिस्तान डोमिनियन क़ानूनी रूप से वैध बन गए। यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि ब्रिटिश इंडिया का विभाजन क्षेत्र (territory) का विभाजन था। यह जनता का विभाजन नहीं था। अधिनियम में यह कहीं नहीं लिखा कि हिन्दू जनता भारत में रहेगी या मुस्लिम जनता पाकिस्तान में रहेगी। भले ही पाकिस्तान का जन्म मज़हब के आधार पर हुआ हो लेकिन इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट में किसी रिलिजन या रिलिजियस समुदाय के विभाजन की बात नहीं कही गई। 
 
 

  
 
 
ब्रिटिश इण्डिया के विभाजन के बाद प्रिंसली स्टेट के राजाओं से बातचीत का दौर चला। उन्हें 1935 के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट के अंतर्गत भारत या पाकिस्तान में से किसी एक डोमिनियन में जाने का विकल्प दिया गया। जैसा कि प्रचारित किया जाता है किसी भी प्रिंसली स्टेट को स्वतंत्र रहने का विकल्प नहीं दिया गया था। वास्तव में जम्मू कश्मीर के महाराजा श्री हरि सिंह ने जिस अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर किए उसमें यह लिखा है कि वे 1935 एक्ट के अंतर्गत जम्मू कश्मीर का अधिमिलन भारत में कर रहे हैं।