सुशासन की ओर अग्रसर जम्मू-कश्मीर, राज्य के लिए वरदान साबित हुआ गवर्नर राज
   21-जुलाई-2019
 
 
 
- शिवपूजन प्रसाद पाठक
 
 
जम्मू-कश्मीर पिछले एक वर्ष से राज्यपाल के अधीन है। महबूबा मुफ्ती की सरकार गिरने के बाद से विधायी और कार्यपालिका की शक्तियाँ राज्यपाल के हाथों में आ गयी हैं । जम्मू-कश्मीर में राजपाल के माध्यम से शासन करने का लम्बा इतिहास रहा है लेकिन वर्तमान राज्यपाल शासन बहुआयामी सुधारात्मक कदम उठा रहा है जिसमें प्रशासनिक, आर्थिक सुधार व सुशासन की गतिविधियां शामिल है । ये सभी प्रयास बहुप्रतीक्षित मांग है और इसके प्रभाव दूरगामी होंगे ।
 
 
 
सबसे पहला कार्य पंचायतों का चुनाव कराना है । इसके पहले 2001 और 2011 में पंचायत चुनाव हुआ था लेकिन आतंकवाद के साये में था। 2018 में पंचायती राज्य का चुनाव सम्पन्न हुआ जिसमे निष्पक्षता और जनसहभागिता दोनों दिखी । यह एक सफल चुनाव हुआ था । स्थानीय शासन का अपना महत्व है। इसकी अपनी प्रशासनिक संस्कृति होती है जो पूरे देश के स्थानीय प्रशासन पर लागू होती है । स्थानीय प्रशासन के सभी सकारात्मक कारकों को शामिल करते हुए, जम्मू कश्मीर के संदर्भ में इसका विशेष महत्व है । नौं चरणो में यह चुनाव 326 ब्लॉक, 4490 पंचायत हल्का और 35096 पंचायत स्तर पर हुआ ।
 
 
 
पंचायत चुनाव वहाँ के पारिवारिक राजनीतिक एकाधिकार को तोड़ने में सफल हो रहा है । इसका परिणाम यह हुआ कि एक नए राजनीतिक वर्ग का निर्माण हुआ है जो परंपरागत राजनीतिक अभिजन (political elite) से भिन्न है और सत्ता और सुविधाओं से वंचित रहा है । भारतीय राजनीति में राजनीतिक शक्तियों का केन्द्रीकरण कुछ परिवारों में हुआ । यह बात जम्मू कश्मीर के राजनीति पर भी लागू होती है । यहाँ भी राजनीतिक शक्तियों का केंद्र कुछ परिवार ही है । इससे जनतंत्र प्रक्रियात्मक स्तर (procedure level) पर भी अच्छे से लागू नहीं हो पाया था । इस स्थानीय निकायों के चुनावों ने ऐसे राजनीतिक समूह का निर्माण कर रहा है जिससे केंद्र और प्रांत की सरकार प्रत्यक्ष रूप से संवाद कर सकती है और अपने नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करा सकती है ।
 
 
 
दूसरा उल्लेखनीय कार्य लद्दाख को एक नया संभाग बनाना है । पिछले 70 वर्षों में यह नहीं हुआ था। यह जम्मू कश्मीर के राजनीतिक वर्ग के संवेदनहीनता का परिणाम था कि मंडलीय स्तर पर कार्य के लिए 9 से 10 घंटे की यात्रा एक सामान्य नागरिक को करना पड़ता था । प्रशासन की विशेषता है कि जनता के निकट हो, ताकि जन संवाद स्थापित कर सके। पाक अधिक्रांत जम्मू कश्मीर के भूभाग को छोड़ दिया जाये तो जम्मू कश्मीर में 22 जिले है और दो संभाग है । लेह-लद्दाख और कारगिल जिले कश्मीर संभाग से संचालित होते है । एक पर्वतीय दूरभाग में स्थिति नागरिक अपनी छोटी सी प्रशासनिक आवश्यकता के लिए सैकड़ों मील चलकर आना पड़ता था । यह सुशासन के ओर बढ़ता हुआ एक कदम है। सरकार को इस प्रकार के कुछ नए संभाग और जिलों का गठन करने पड़े तो करना चाहिए।
 
 

 
 सभी दलों के कार्यकर्ताओं को सुनने के लिए राज्यपाल हमेशा समय देते हैं, शेहला रशीद के साथ राज्यपाल सत्यपाल मलिक
 
 
 
जम्मू कश्मीर की बैंकिंग व्यवस्था में पारदर्शिता का अभाव था । इसका एक कारण सरफेसी (वित्तीय संपत्तियो के प्रतिभूतिकरण तथा वित्तीय सम्पत्तियों व हितों का प्रवर्तन) अधिनियम का लागू न होना था । संसद ने 2002 मेँ सरफेसी अधिनियम पारित किया था जिसका उद्देश्य वित्तीय संस्थाओं को यह अधिकार देना है कि वे न्यायालय से बाहर अपने ऋण के बदले उन सम्पत्तियों को जब्त कर सकें जिसके आधार पर ऋण दिया गया है । यह व्यवस्था जब जम्मू कश्मीर मेँ लागू की गयी तो वहाँ पर अनुच्छेद 370 व 35A को आधार मानकर इसे रोका गया।
 
 
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 16 दिसम्बर 2016 को जम्मू कश्मीर के संदर्भ एक ऐतिहासिक निर्णय दिया जिसका प्रभाव दूरगामी होगा । कुरियन जोशफ और आर एफ नारीमन न्यायाधीशों की दो सदस्यी खंडपीठ ने ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम संतोष गुप्ता’ के वाद में कहा कि जम्मू और काश्मीर में भारत से पृथक कोई संवैधानिक व्यवस्था नहीं है । वह भारतीय संवैधानिक व्यवस्था के सम्मत है। साथ में जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के उस आदेश को भी निरस्त कर दिया जिसमें सरफेसी (वित्तीय संपत्तियो के प्रतिभूतिकरण तथा वित्तीय सम्पत्तियों व हितों का परवर्तन ) अधिनियम को जम्मू और काश्मीर के विषय में अमान्य करार दिया गया था।
 
 
 
इसी पारदर्शिता के क्रम में राज्यपाल ने जेएंडके बैंक में कई सांगठनिक और ढांचागत बदलाव किये। यह जम्मू कश्मीर का सबसे बड़ा बैंक था लेकिन भ्रष्टाचार में डूबा था। आतंकवाद के चरम पर ये बैंक खूब लूटे गए। एक प्रकार से कर्मचारी और आतंकवादियों के बीच मिलीभगत थी । नियुक्तियों में राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की भर्ती की जा रही है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नियमों को लागू किया गया और इसे विधानसभा के प्रति उत्तरदायी बनाया गया। साथ ही जेएंडके बैंक सूचना अधिकार अधिनियम के अंदर आ गया है । बैंक के शीर्ष अधिकारी परवेज़ अहमद नेंगरू को हटा दिया गया है।
 
 
 
राज्यपाल शासन की एक और बड़ी साहसिक प्रयास अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रहने वाले लोगों को के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण प्रदान करना है । राज्यपाल के नेतृत्व में ‘राज्य प्रशासनिक परिषद’ ने ‘जम्मू और कश्मीर आरक्षण
अधिनियम’ 2004 को संशोधित करते हुए अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रहने वाले लोगों को आरक्षण की व्यवस्था की है । आरक्षण का उद्देश्य सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों का सामाजिक-आर्थिक व शैक्षिक विकास करना है । यह प्रयास जम्मू और कश्मीर पिछड़ा आयोग की संस्तुति पर किया गया है । इस आरक्षण व्यवस्था में 3 प्रतिशत सीटें सीमा से 10 किमी के पास रहने वालों उन लोगों के लिए है जो पिछले 15 वर्षों से वहाँ रह रहें है। यह प्रावधान वास्तविक नियंत्रण से पर रहने वाले लोगों को पहले से ही प्राप्त है । संसद ने इसे मानसून सत्र में विधेयक को अधिनियम बना दिया ।
 
 
 
अप्रत्याशित कदम उच्चशिक्षा के क्षेत्र मे लिया गया है । सरकार ने 102 नये राजकीय विद्यालयों की स्थापना के लिए आदेश दिये हैं । यह निर्णय 29 मई 2019 को ‘राज्य प्रशासनिक परिषद’ ने लिया जिसमे से 50 विद्यालय को जुलाई सत्र से प्रारम्भ करना है । अब तक लगभग 100 राजकीय विद्यालय थे ।
 
 
 
इस प्रकार के लोकप्रिय सुधार राज्यपाल के शासन में होने से लोकतान्त्रिक सरकारों के औचित्य पर प्रश्न खड़ा करता है । व्यापक राजनीतिक सुधार और प्रतिनिधात्मक सुधार के लिए राज्यपाल को परिसीमन आयोग का गठन करना चाहिए।