अनुच्छेद 35A के खिलाफ ऑनलाइन याचिका पर साठ हजार से ज्यादा लोगो ने किए हस्ताक्षर।
   29-जुलाई-2019
 
 
 
जम्मू कश्मीर राजनीति इस समय पूरे उबाल पर है। उमर अब्दुल्ला और मेहबूबा मुफ़्ती बार -2 केंद्र को धमकिया दे रहे है। दोनों ही नेताओ ने अपने गुस्से से यह साबित कर दिया है कि उन्हें जम्मू कश्मीर में रहने वाले दलितों, शरणार्थियों और महिलाओ के अधिकारों की कतई चिंता नहीं है। ऐसे समय में जब देश और देश एक संविधान इन वंचित वर्गों के अधिकारों को कवच प्रदान करता है वही कश्मीर घाटी के ये नेता समाज के वंचित वर्ग के खिलाफ जहर उगलने में मशगूल है। 

ऑनलाइन याचिका के माध्यम से सामाजिक विषयो को उठाने वाली वेबसाइटchange.org पर 60000 से ज्यादा लोगो ने इस विभेदनकारी अनुच्छेद को हटाने के लिए हस्ताक्षर किये है. 
 
दिल्ली विश्विद्यालय के समाजकार्य विभाग के छात्र पंकज गुप्ता ने www.change.org पर इस याचिका की शुरुआत की थी। लेकिन आज इस पर हजारो लोग हस्ताक्षर कर चुके है।
 
( याचिका देखने और उस पर हस्ताक्षर करने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे ) 
 
 

पंकज गुप्ता ने जम्मू कश्मीर नाउ से बातचीत करते हुए बताया कि समाजकार्य की अपनी पढ़ाई के दौरान मैंने सामाजिक न्याय की अवधारणा को पढ़ा और समझा जिसके अनुसार समाज के दमित और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए संविधान कार्य करता है। लेकिन जम्मू कश्मीर में यही संविधान कैसे दलितों और महिलाओ के साथ भेदभाव कर सकता है।यह बात मेरे लिए बड़ी विचित्र थी. इसके बाद मैंने थोड़ी और छानबीन की तो यह जानकर मेरे होश ही उड़ गए कि यह विभेदनकारी अनुच्छेद बिना संसद की स्वीकृति के ही संविधान में जोड़ दिया गया है। यही से मैंने निर्णय लिया कि इस विषय पर लोगो में जागृति लाने की जरुरत है और मैंने यह याचिका दायर की। इस याचिका को मिल रहे जन समर्थन से पंकज उत्साहित है. 
 
 
 
हम आपको बताते चले कि अनुच्छेद ३५ ऐ को लेकर इस समय उच्चतम न्यायालय और जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में अनेक याचिकाएं दायर की जा चुकी है। इसमें राधिका गिल जैसे एक दलित छात्रा भी शामिल है जो राज्य स्तरीय एथलीट है लेकिन राज्य में उसे कोई सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती सिवाय सफाईकर्मचारी के, तो दूसरी और जम्मू यूनिवेर्सिटी की प्रोफ़ेसर रेनू नंदा भी शामिल है जो अपने बच्चो के अधिकारों को लेकर संघर्षरत है.