1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध, परमवीर चक्र विजेता कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद के अदम्य साहस और वीरता की अद्भुत दास्तान
   03-जुलाई-2019

 
 
 लेखक- मुकेश कुमार सिंह
 
उस दौरान स्थिति बेहद गंभीर थी, पाकिस्तान के आक्रमण की आशंका थी। 10 सितंबर, 1965 की भोर में पाकिस्तानी गनें पंजाब के खेमकरन क्षेत्र में बौछारें करने लगीं। यह आक्रमण प्रातः आठ बजे प्रारंभ हुआ। पाकिस्तान के टैंक खेमकरन क्षेत्र में घुसने लगे। पाकिस्तान ने अपनी ओर इतनी भूमिगत खाईयां खोद ली थीं कि उनमें से टैंक आसानी से सीमा तक आ गए। खेमकरन में सपाट खेत थे, अतः पाकिस्तानी टैंक अधिक सरलता से उन खेतों में चल सके। पाकिस्तान की सेना के दबाव के कारण स्थिति जटिल हो गई।
 
 
उसी क्षण एक वीर पुरुष सामने आ गया। वह वीर पुरुष कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद थे, जो ग्रेनेडियर्स की चौथी बटालियन में काम कर रहे थे। उस समय ग्रेनेडियर्स की चौथी बटालियन भिक्की बिंदु- खेमकरन सड़क पर सुरक्षा कर रही थी। किसी भी कीमत पर इस स्थिति को बनाए रखना था। पाकिस्तान की आक्रामक अवस्था को भंग करना ही था।
 
 
अब्दुल हमीद ने एक सैन्य टुकड़ी की कमान संभाल ली थी। इस टुकड़ी के पास 106 रिक्वालेस गनें थीं। अब्दुल हमीद शीघ्र ही इस जटिल स्थिति को समझ गए। उन्होंने बहादुरी और साहस भरी कार्रवाई का निर्णय लिया।

  
 
 
अब्दुल हमीद ने 106 रिक्वालेस गन संभाली और एक जीप में सवार होकर एक ओर चल दिए। जब पाकिस्तानी गनें और टैंक आग बरसा रहे थे, तब अब्दुल हमीद ने शीघ्र ही एक ओर जाकर लाभप्रद अवस्थान तैयार कर लिया। वहां से वह प्रभावी ढंग से जवाबी कार्रवाई करने लगे। इस बार वह दुश्मन से छिप गए थे तथा सुरक्षित स्थान में थे। वहीं से उन्होंने पाकिस्तान के एक प्रमुख टैंक को तोड़ दिया। टैंक से बुरी तरह टक्कर हुई। यह भयंकर थी और उचित स्थान पर की गई थीं, परंतु उनके चारों ओर दुश्मन थे।
 
 
पाकिस्तानी गनें और टैंक अबाध गति से चलते रहे। उससे अब्दुल हमीद जरा भी भयभीत न हुए। उन्होंने दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली थी कि यथासंभव पाकिस्तान टैंक को नष्ट कर दिया जाएगा। यह जानते हुए भी कि वह अनेक पाकिस्तानी सैनिकों की तुलना में अकेले हैं, उन्होंने अकेले ही पाकिस्तानी टैंकों से लड़ते रहने का दृढ़ निश्चय कर लिया था।
 
 
 
 
अब्दुल हमीद तीव्र गति से अपने स्थान बदलने में लगे रहे। इससे दुश्मन असमंजस में पड़ गए। पाकिस्तान के सैनिक उनके स्थान का पता नहीं लगा सके। गनें भी अब्दुल हमीद की ओर स्थिर नहीं की जा सकी। अब्दुल हमीद एक अन्य दिशा की ओर बढ़ रहे थे कि उन्होंने पाकिस्तान के एक टैंक पर गोली दागी और वह टैंक अग्नि से प्रज्जवलित हो उठा। चूंकि पाकिस्तानी टैंक आज की लपटों से घिरा हुआ था अतः जो पाकिस्तानी सैनिक टैंक चला रहे थे वे या तो डरकर भाग गए या टैंक में जल-भूल गए। परंतु अब्दुल हमीद ने इससे भी अधिक साहस दिखाया। वह काफी आगे बढ़ते गए। अंततः उन्हें पाकिस्तानी सैनिकों ने खोज लिया और उनकी जीप पर आक्रमण कर दिया।
 
 
इसके बावजूद अब्दुल हमीद ने अपना हौसला नहीं छोड़ा। और उन्होंने दुश्मनों का तीसरा टैंक भी नष्ट कर दिया। इससे पूर्व वह दो टैंक नष्ट कर चुके थे। जब वह तीसरे टैंक को समाप्त करने में व्यस्त थे, तब उनकी जीप की टक्कर हो गई। अब्दुल हमीद उसी स्थान पर वीरगति को प्राप्त हो गए। उन्होंने जिस तरह मृत्यु का आलिंगन किया, उसी में उनकी शानदार विजय निहित है।
 
 
 
 
उन्होंने ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया, जो उनके साथियों के लिए अत्यधिक प्रेरणादायक था। उनके साहस से अन्य सैनिकों का मार्ग प्रशस्त हुआ। अंततोगत्त्वा पाकिस्तानी टैंकों का आक्रमण विफल कर दिया गया। कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।