श्री पत्थर साहिब - जब पत्थर गुरुनानक देव को छूकर बन गया मोम
   30-जुलाई-2019

 
 
श्री पत्थर साहिब गुरुद्वारा, लेह से पहले 25 किमी पहले श्रीनगर-लेह रोड पर स्थित है। इस गुरुद्वारा में एक पत्थर पर गुरुनानक देव जी की छवि छपी हुई है।
 

 
 
इतिहासः
गुरु नानक देव जी 1517 ई.पू. में अपनी दूसरी यात्रा के दौरान सुमेर पहाड़ियों पर अपना धर्म उपदेश देने के बाद नेपाल, सिक्किम और तिब्बत की यात्रा करते हुए यारकंद , लेह के रास्ते इस स्थान पर पहुंचे थे। गुरु नानक देव जहां रूके पर हुए थे उनके विपरीत पहाड़ी में, एक राक्षस रहता था जो लोगों को डराता और हत्या करने के बाद उन्हें खा जाया करता था। वहाँ रहने वाले लोग उस राक्षस से बहुत परेशान थे। अपने क्षेत्र में गुरु नानक देव को देखकर सभी लोग बहुत खुश हुए, परन्तु राक्षस गुरु नानक देव को देखकर बहुत नाराज था और उसने गुरु जी को मारने की योजना बनाई । एक दिन जब गुरु जी भगवान के ध्यान में लीन थे , तो राक्षस उस वक्त अवसर का लाभ उठाकर, गुरु जी के ऊपर एक बड़ा पत्थर फेंक दिया ताकि गुरू जी विशाल पत्थर के नीचे दबकर मर जाए ।लेकिन जैस ही बड़ा पत्थर गुरु जी को छुआ, पत्थर मोम जैसा बन गया और गुरु जी के शरीर के पीछे का हिस्सा पत्थर में धंस गया, लेकिन गुरुजी के ध्यान पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
 
 

 
 
राक्षस जब गुरु जी को मरा हुआ देखने के लिए उनके पास आया तो वह गुरु जी को जिंदा देखर आश्चर्यचकित हो गया और क्रोधित हो गया, उसने क्रोध में अपने दाहिने पैर से पत्थर को लात मारी लेकिन राक्षस का पैर भी मोम हो चुके पत्थर में धंस गया।
 
दानव ने महसूस किया कि वह अपनी मूर्खता से एक भगवान के भक्त को मारने की कोशिश कर रहा था और वह इस गलती के लिए माफी माँगने के लिए गुरु जी के पैर में गिर गया। गुरु जी ने अपनी आंखें खोली और राक्षस को अपने पैरों पर गिरा देखकर उस राक्षस को उपदेश दिया कि वो सभी बुरा काम छोड़ कर इंसानो से प्यार करे। और बाकी जीवन मानव के सेवा में गुजारे तभी कल्याण उसका होगा। उसके बाद राक्षस गुरु जी के कहे अनुसार शांतिपूर्वक जीवन जीने लगा। कुछ समय बाद गुरुजी कारगिल के रास्ते कश्मीर की तरफ चले गए।
 
 

 
 
आज भी श्री पत्थर साहिब गुरुद्रारा के अंदर वो पवित्र पत्थर देखा जा सकता है, जिसमें गुरु जी की छवी छपी हुई है। इस गुरुद्रारा का प्रबंधन भारतीय सेना के जवान करते है।
 
गुरु जी की याद में हर रविवार को सेना के जवान भजन – कीर्तन करते है।
 
पत्थर साहब गुरुद्रारा में आने वाले सभी श्रद्धालुओं के लिए हफ्ते के 7 दिन 24 घंटे चाय उपलब्ध रहती है। वहीं हर रविवार और गुरु पर्व के दिन यहां सेना के जवान और दर्शन करने आये श्रद्धालु गुरु को याद करते हुए भजन कीर्तन करते है। वहीं हर रविवार को जवान गुरु जी का लंगर लगाते है। इसमें कोई भी व्यक्ति गुरु के प्रसाद के रुप में निशुल्क भोजन कर सकता है।
 

 
 
कैसे पहुंचे इस चमत्कारी पवित्र स्थान पर ?
 
श्री पत्थर साहब गुरुद्वारा जाने के लिए, नई दिल्ली से श्रीनगर और लेह की सीधे हवाई उड़ान है। लेह से गुरुद्वारा पत्थर साहिब तक का मार्ग 25 किलोमीटर का है। लेह से गुरुद्रारा जाने के लिए बस और टैक्सी की सुविधा भी उपलब्ध है। सड़क मार्ग से लेह जाने के लिए दो मार्ग हैं, एक श्रीनगर जम्मू कश्मीर से होकर जाता है और दूसरा मनाली हिमाचल प्रदेश से होकर जाता है। नवंबर से मई तक अत्यधिक बर्फबारी के कारण दोनों सड़कों को बंद कर दिया जाता है । यह दोनों मार्ग जून से अक्टूबर तक खुला रहता है।
 

 
 
जाने से पहले क्या सावधानी बरते ?
 
लेह समुद्र तल से 3,524 मीटर (11,562 फुट) की उच्च ऊंचाई पर स्थित है। इस लिए यहां पर ऑक्सीजन की कमी के कारण सांस लेने की समस्या हो सकती है। यहां आने वाले यात्रियों को सलाह दी जाती है कि वे डॉक्टर से परामर्श लेकर इस यात्रा पर आये। वहीं यहां सर्दियों में तापमान – 20 डिग्री से भी कम हो जाता है। इस लिए यात्रा पर चलने से पहले उचित गर्म कपड़े अपने साथ रखें।