फारूख साहेब जम्मू कश्मीर की नीव में वीर गोरखाओ का योगदान है नाकि अनुच्छेद 35 A और 370 का ।
   30-जुलाई-2019
फारूक अब्दुल्ला को जम्मू कश्मीर के गोरखा समुदाय की नसीहत


जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुलाह से अनुच्छेद 35 A और 370 को लेकर फिर से एक विवादित बयान दिया है। फारूख का कहना है कि " 'धारा 35ए और 370 को नहीं हटाना चाहिए। यह हमारी नींव बनाता है। इसे हटाने की कोई जरूरत नहीं है। हम हिंदुस्तानी हैं लेकिन यह धारा हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं.
 
पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम से ऐसे कयास लगाए जा रहे है कि जम्मू कश्मीर में महिला, दलित , गोरखा एवं शरणार्थी विरोधी अनुच्छेद 35 Aको हटा दिया जाएगा. ऐसी स्थिति में जम्मू कश्मीर के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर में अनंतनाग और श्रीनगर जिले के दो दलों के नेता बिलकुल घबरा चुके है और अजीब अजीब से बयान दे रहे है। 
 
अनुच्छेद 35A भारतीय संविधान का एक अनुच्छेद है और भारतीय संविधान में 100 से ज्यादा परिवर्तन हो चुके। इसी कड़ी में यदि अनुच्छेद 35A को भी हटाया जाता है तो यह भी मात्र एक परिवर्तन होगा। इस विषय को कभी "बारूद" तो कभी " नींव" जैसे विशेषण देना मूल विषय से भटकाव है। जम्मू कश्मीर में इस विभेदनकारी अनुच्छेद को खुद जम्मू कश्मीर के रहने वाले लोगो ने न्यायालय में चुनौती दी है। इसमें जम्मू कश्मीर में रहने वाली महिलाये , दलित, गोरखा और शरणार्थी है जो इस अनुच्छेद के प्रकोप को झेल रहे है. 


गोरखा समुदाय के खिलाफ है यह अनुच्छेद 35 A
 




सदियों से जम्मू कश्मीर की रक्षा में अतुलनीय योगदान देने वाले गोरखा इस अनुच्छेद का शिकार हो रहे है। गोरखा समुदाय के लोगो का साफ़-२ कहना है कि जिस राज्य। की जमीन को उनके पुरखो ने अपने खून से सींचा अनुच्छेद 35A के चलते हम दर -दर की ठोकरे खा रहे है। अगर गोरखा समाजन के लोग जम्मू कश्मीर में कोई सरकारी नौकरी करना चाहते है तो वे केवल चौकीदार ही बन सकते है आज फारूख अब्दुलाह इन दोनों अनुच्छेदों को जम्मू कश्मीर की नींव बता रहे है। वो भूल चुके है कि वीर गोरखाओ ने सदियों से और फिर 1947 में पाकिस्तानी हमले में राज्य के लोगो की रक्षा के लिए बलिदान दिए थे। गोरखों के अप्रतिम बलिदान की पूरी कहानी मेजर ब्रह्मा सिंह ने अपनी पुस्तक" History of the Jammu and Kashmir Rifles, 1820-1956: The State Force Background" में सम्पूर्ण विवरण के साथ दी है। 


वीर गोरखाओ के बच्चे मजबूर है मोमोस बेचने को





गोरखा समुदाय के लोग बड़ी संख्या में जम्मू में गोरखा नगर में रहते है। लोगो से बातचीत करते समय पता चला कि श्रीनगर में मगरबल नाम की एक कालोनी है जो लाल चौक के नज़दीक है। इस कालोनी का नाम गोरखा समुदाय की दो उपजातियो "मगर " और "बल " के नाम से रखा गया था. यह जमीन गोरखों को तत्कालीन जम्मू कश्मीर के राजा ने उनकी वीरता के कारण इनाम में दी थी. कभी वीरता के कारण पुरूस्कार पाने वाले वीर गोरखाओ के बच्चे जम्मू कश्मीर मोमोस बेचने के लिए मजबूर है. यह कालोनी जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय और विधान सभा से मात्र 100 कदमो की दूरी पर स्थित है। आज इस कालोनी में एक भी गोरखा नहीं है।

लेकिन गोरखाओ के इस दुःख को आज तक जम्मू कश्मीर के उच्च न्यायालय और विधान सभा में बैठने वाले लोगो ने न कभी सुना न महसूस किया. जब अनुच्छेद को लेकर पूरा देश चर्चा कर रहा है तो महबूबा और फारूख के विवादित बयान केवल मात्र इन ऐतिहासिक तथ्यों को छुपाने की एक कोशिश के अतिरिक्त कुछ नहीं है।