ट्रैफिक बैन के झूठ का सहारा लेकर कश्मीर में अमरनाथ यात्रा के खिलाफ माहौल बना रहे हैं कश्मीरी नेता और अलगाववादी
   08-जुलाई-2019


कश्मीर घाटी में 8 जुलाई को अलगाववादियों द्वारा हिज्बुल आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने की बरसी बंद का ऐलान किया गया था। जिसके बाद यात्रियों के सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अमरनाथ यात्रा एक दिन के लिए रोक दी गयी। खुफिया सूचना के बाद आतंकी हमले की आशंका को देखते हुए राज्य प्रशासन ने ये निर्णय लिया। हालांकि राज्य प्रशासन ने अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के लिए कड़े इंतजाम किये हैं, लेकिन घाटी में अमरनाथ यात्रा के खिलाफ एक प्रोपगैंडा तैयार किया जा रहा है, ट्रैफिक बैन जैसे शब्दों का सहारा लेकर। दरअसल पुलवामा हमले के बाद यात्रियों की सुरक्षा को देखते हुए तमाम यात्रियों को एक भारी सुरक्षा घेरे एक काफिले की शक्ल में ट्रैक प्वाइंट तक पहुंचाया जा रहा है। जिसके लिए इस काफिले के गुरजने के समय हाइवे पर ट्रैफिक मूवमेंट को रोक दिया जाता है। घाटी में नेता और अलगाववादी संगठन इसी को सहारा लेकर अमरनाथ यात्रा को निशाना बना रहे हैं। द वायर जैसे मीडिया ग्रुप का सहारा लेकर यात्रा के इंतजामों को कश्मीरियों पर जुल्म साबित करने की कोशिश की जा रही है। देखिए पिछले एक हफ्ते में किस तरह से सोशल मीडिया और मीडिया पर कैंपेन चलाया जा रहा है-
 
 

 
 
 
 
 
 

 
 

 
 
 
 
 
 
 
ट्रैफिक इंतजामों का सच ये है कि जम्मू श्रीनगर हाईवे पर सिर्फ नशरी और काजीगुंड में दिन में 2 घंटों के लिए ट्रैफिक को रोका गया है। लेकिन इसे कश्मीर घाटी में ट्रैफिक बैन के तौर पर ऐसे प्रोपगैंडा के तौर फैलाया जा रहा है, मानो पूरे कश्मीर में यात्रा के बहाने ट्रैफिक रोक दिया गया हो। यहां आपको याद दिलाना जरूरी है कि 2017 में इसी हाईवे पर आतंकी हमले में 7 यात्रियों की हत्या कर दी गय़ी थी और इस साल पुलवामा हमले के बाद सुरक्षा अतिरिक्त इंतजाम जरूरी थे।
 
 
ध्यान देना जरूरी है कि कश्मीर में सिर्फ अमरनाथ यात्रा नहीं है जिसके लिए ट्रैफिक इंतजाम में कुछ पाबंदी लगायी जाती हैं। नॉर्थ कश्मीर में मुहर्रम के दौरान ताजिया जुलूस निकाले जाने के दौरान भी ऐसी ट्रैफिक पाबंदी लगायी जाती हैं, खासतौर पर जुलूस के दौरान पाट्टन में श्रीनगर-बारामूला हाइवे को बंद कर दिया जाता है। इसके अलावा यौम-ए-पैदाइश के दिन मनाये जाने वाले कार्यक्रमों के लिए भी कश्मीर में इसी तरह के प्रैक्टिस अपनायी जाती है।
 
 
इसके अलावा देशभर में तमाम धार्मिक जुलूस और कार्यक्रमों के दौरान ऐसे ही ट्रैफिक इंतजामों के तरीकों को अपनाया जाता है। चाहे वो उर्स, ताजिया, यौम-ए-पैदाइश हो या कांवड यात्रा जैसी अन्य सार्वजनिक धार्मिक यात्राएं। कहीं भी इसे उस धार्मिक जुलूस या फिर कार्यक्रम के खिलाफ प्रोपगैंडा खड़ा करने का मुद्दा नहीं बनाया जाता, तो फिर उस यात्रा के लिए क्यों जोकि सदियों से एक समय में पूरे साल आयोजित की जाती थी। लेकिन आज इस यात्रा का समय पहले ही घटाकर सिर्फ डेढ महीना कर दिया गया है।