09-जुलाई-2019 |
(प्रतीकात्मक चित्र)
4 मई को भाजपा नेता गुल मोहम्मद मीर को वेरीनाग के नौगाम क्षेत्र में मार दिया गया था। मीर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने अपने नाम के आगे ‘अटल’ जोड़ लिया था। इससे पहले भी कश्मीर में आम नागरिकों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं की हत्या की गई थी। अगस्त 2018 में पुलवामा के भाजपा अध्यक्ष शबीर अहमद भट की हत्या की गई थी। नवंबर 2017 में शोपियां के नेता गौहर हुसैन भट का अपहरण कर लिया गया था। 16 मार्च को शोपियां में ही एक महिला SPO को आतंकी ने गोली मार दी थी। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़े देखें तो पता चलता है कि 2016 से 2018 के बीच आतंकी हमले के दौरान करीब 71 निर्दोष नागरिकों की जान गई।
पुलवामा, शोपियां समेत दक्षिण कश्मीर और आसपास के ज़िलों से बहुतायत में युवाओं ने आतंक की राह पकड़ ली जिसके कारण उनका ही नहीं उनके परिवार का भी जीना दूभर हो गया। जब तक कश्मीर के युवा आतंक का दामन पकड़े रहेंगे तब तक उनके साथ निर्दोष नागरिकों की जान भी जाती रहेगी।
पिछले महीने ही राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने आतंक की राह पकड़ने वालों को चेतावनी देते हुए बयान दिया था, “हमें नेक इरादों के साथ काम करना चाहिए। जिस तरह से युवाओं को गुमराह किया जा रहा है कि वे स्वर्ग में जाएँगे… उनके पास वास्तव में दो स्वर्ग हैं, एक कश्मीर में, और दूसरा जो उन्हें बाद में मिलेगा यदि वे एक अच्छे मुस्लिम बने रहेंगे।”