क्यों और कैसे लागू हुआ था अनुच्छेद 370, संविधान निर्माताओं की इच्छा क्या थी? जानिए तमाम सवालों का तथ्यातक जवाब
   19-अगस्त-2019
 
 
अनुच्छेद 370 का उपयोग कर जबसे महामहिम राष्ट्रपति महोदय ने भारतीय संविधान को पूरी तौर पर जम्मू कश्मीर राज्य में लागू किया है, देश में एक नयी तरह की बहस खड़ी करने की कोशिश की जा रही है।
 
 
संविधान के ऐसे अनेक जानकार भी इस बहस में कूद पड़े हैं जिनकी मान्यता है कि यह कदम संविधान विरोधी है। समस्या जम्मू कश्मीर नहीं बल्कि यह है कि ऐसे सभी संविधान विशेषज्ञ इसकी व्याख्या संविधान के मूल सिद्धांतों के स्थान पर अपनी राजनैतिक धारणाओं अथवा प्रतिबद्धताओं के अनुसार करने का प्रयास कर रहे हैं।
 
 
यह स्पष्ट होना चाहिए कि अनुच्छेद 370 क्या था और उसका उद्देश्य क्या था? जब भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 को जोड़ा गया था तब संविधान सभा में विस्तार से चर्चा करते हुए गोपाल स्वामी आयंगार ने कहा कि इसके पीछे की यह भावना नहीं है कि यह भारत के बाकी राज्यों से अलग रहेगा। कुछ समय बाद यह भी बाकी राज्यों की तरह आ जायेगा। अभी क्यों नहीं, तो अभी की परिस्थितियां इसके अनुकूल नहीं हैं।
 
 
अयंगार ने उन परिस्थितियों का भी उल्लेख किया है। जम्मू कश्मीर के विलय के पश्चात् जम्मू कश्मीर पर आक्रमण हुआ, आक्रमण के बाद हम संयुक्त राष्ट्र संघ में गये, वहां पर नेहरू सरकार ने कुछ वादे कर दिये। हमारे संविधान निर्माताओं के सामने प्रश्न था कि आने वाले समय में हमारी संविधान सभा अपना काम पूरा करेगी। एक तरफ वहां हमने कुछ वादे कर रखे हैं दूसरी तरफ हमारे सामने एक विशेष प्रकार की परिस्थिति बन गयी। जिस दिन भारत का संविधान लागू होगा उस दिन राज्य की स्थिति क्या होगी। जम्मू कश्मीर का अधिमिलन भारत डोमिनियन में हुआ है। संविधान लागू होने के बाद डोमिनियन और उसमें हुआ अधिमिलन, दोनों ही बीती बातें हो जायेंगी। ऐसी स्थिति में क्या जम्मू कश्मीर भारतीय गणतंत्र का हिस्सा नहीं होगा। ऐसे समय में अगर हम अपना पूरा संविधान एक साथ लागू कर देते हैं तो दुनिया के सामने हमने जो अनेक प्रकार के वादे किये है तो उनका क्या होगा।
 
 
 
आयंगार ने बताया कि युद्ध चल रहा है हमारा एक क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे में है। हम संयुक्त राष्ट्र संघ में फंस चुके हैं जहाँ हमने कुछ वादे किये हैं। वहां से हम कब बाहर निकलेंगे हम कह नहीं सकते। जनता की राय जानने का प्रस्ताव भविष्य की परिस्थिति पर निर्भर करेगा, किन्तु राज्य में सामान्य प्रशासन चलाने के लिये आवश्यक संवैधानिक प्रावधान वहां लागू हो सकें इसके लिये हमने एक अस्थायी प्रावधान लागू करने का निर्णय किया है।
 
 

 
 गोपालास्वामी अयंगार
 
 
स्मरण रहे कि 18 अक्टूबर 1949 को भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर चर्चा हुई। संविधान की सारी कार्यवाही पूरी होने के बाद 17 अक्टूबर 1949 को, केवल एक दिन पूर्व अनुच्छेद 370 पर संविधान सभा के अंदर चर्चा हुई। भारत के संविधान के मूल मसौदे में अनुच्छेद 370 या उस समय जिसको अनुच्छेद 306ए कहा गया, उसका कोई स्थान नहीं था। आयंगार ने बताया कि जम्मू कश्मीर प्रस्तावित भारतीय गणतंत्र का हिस्सा है। उन्होंने स्पष्ट करने के लिए बताया कि अधिमिलन हो चुका है। जम्मू कश्मीर में भारत का संविधान लागू होगा क्योंकि जम्मू कश्मीर का उल्लेख भी भारत के बाकी राज्यों की तरह अनुच्छेद एक, अनुसूची एक में आने वाला है।
 
 
उन्होंने कहा कि तीन विषयों के लिए अधिमिलन हो चुका है। इसे कोई चुनौती नहीं दे सकता इसलिए उसमें जो विषय हैं वह सब जम्मू कश्मीर में स्वतः लागू हो जाएंगे। गणतंत्र बनने के साथ ही अनेक संवैधानिक प्रावधान भी लागू किये जाने आवश्यक हैं। जैसे संविधान लागू होने से पहले भारत में राष्ट्रपति का पद नहीं था, इसका प्रावधान और कार्यक्षेत्र सुनिश्चित करना होगा। ऐसे ही जितने अन्य आवश्यक बदलाव हैं, वहां की राज्य सरकार की सहमति से हम उनको लागू कर लेंगे। बाद में जब अनुकूल परिस्थिति होगी, राज्य की जनता द्वारा निर्वाचित जम्मू कश्मीर की संविधान सभा बनेगी जो सब विषयों पर विचार करेगी और अपनी संस्तुति देगी जिसके आधार पर हम भारत का बाकी संविधान भी वहां पर लागू कर देंगे।
 
 
संविधान सभा अपना कार्य पूरा होने के साथ ही अनुच्छेद 370 जिन कारणों से लाया जा रहा है, उन कारणों के भी समाप्त होने के चलते उक्त अनुच्छेद के संबंध में निर्णय लेने की संस्तुति राष्ट्रपति से करेगी। राष्ट्रपति जैसा चाहेंगे उसके अनुरूप अनुच्छेद 370 को लागू रखेंगे या उसको हटा देंगे अथवा जिस रूप में वे चाहेंगे उस रूप में उसको संशोधित कर आवश्यकता होने तक बनाये रखने का निर्णय करेंगे। इसके पश्चात राज्य संविधान सभा को भंग कर दिया जायेगा।