रावी-सतलज-व्यास नदियों का एक्स्ट्रा पानी नहीं जाएगा पाकिस्तान, पानी का रूख मोड़कर होगा भारतीय राज्यों के लिए इस्तेमाल
   21-अगस्त-2019
 
 
मोदी सरकार ने पंजाब में बहने वाली रावी, सतलुज और व्यास नदियों के अतिरिक्त पानी को पाकिस्तान में जाने से रोकने का काम शुरू कर दिया है। केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि सिंधु जल संधि के परे भारत के पानी का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान की तरफ जाता है। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि जल्दी ही उस पानी को रोका जाए, जिसके बाद उस पानी का इस्तेमाल भारत के किसान और बिजली पैदा करने में किया जा सके।
 
 
हालांकि पाकिस्तान के लिए ये फैसला बेहद भारी पड़ सकता है। लेकिन भारत बहुत पहले ही इस योजना की तैयारी कर चुका है।
 
सिंधु जल संधि कब हुई ?
 
1947 में बंटवारे के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कई अन्य मुद्दों के साथ पानी के मुद्दे पर भी बहस शुरू हो गयी था। 1951 में प्रधानमंत्री नेहरू ने टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल को भारत बुलाया। लिलियंथल बाद में पाकिस्तान भी गए और वहां से वापस लौटकर अमेरिका चले गए। अमेरिका जाकर उन्होंने भारत-पाकिस्तान जल विवाद के ऊपर एक लेख लिखा, और विश्व बैंक से इस मामले में दखल देने के लिए अनुरोध किया। बाद में विश्व बैंक अध्यक्ष यूजीन रॉबर्ट ब्लेक ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करना स्वीकार किया। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बैठकों का सिलसिला शुरु हो गया। ये बैठक करीब 10 साल तक चला और आखिरकार 19 सितंबर 1960 को कराची में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने सिंधु नदी समझौते पर हस्ताक्षर किए।
 
सिंधु नदी समझौते में किन शर्तो पर हस्ताक्षर हुए ?
 
इस संधि के तहत भारत से पाकिस्तान में जाने वाली 6 नदियों के पानी का बंटवारा तय हुआ। जिसके तहत तीन पूर्वी नदी रावी, व्यास और सतलज के पानी पर भारत को पूरा हक दिया मिला। वहीं पश्चिम की तीन नदियों झेलम, चिनाब और सिंधु के पानी का हक पाकिस्तान को मिला। संधि के मुताबिक भारत भी पश्चिम की नदियों के पानी का सीमित इस्तेमाल कर सकता है ,लेकिन पानी रोक नहीं सकता।