जम्मू कश्मीर और अन्य राज्यों के साथ कैसे चली संवैधानिक एकीकरण की प्रक्रिया? #SimplyFacts
   21-अगस्त-2019
 
 
 
कुछ लेफ्टिस्ट एजेंडा वाले विशेषज्ञ जम्मू कश्मीर के अधिमिलन पर सवाल उठाते हुए दावा करते हैं कि जम्मू कश्मीर के अधिमिलन में देरी हुई जिसके कारण समस्या पैदा हुई। कुछ लोग इसके आधार पर महाराजा को अनिर्णय का दोषी ठहराते हैं। उन्हें यह जान लेना चाहिये कि अनेक राज्यों ने जम्मू कश्मीर के बाद भारत में अधिमिलन किया। त्रिपुरा ने 1949 में अधिमिलन किया। अनेक राज्य इसके भी बाद भारत में शामिल हुए। जम्मू कश्मीर आखिरी राज्य नहीं था। अधिमिलन के लिए अंतिम तिथि निर्धारित नहीं थी। यहां तक कि सिक्किम तो भारत संघ के अंदर 1970 के दशक में शामिल हुआ। वास्तव में सारी प्रक्रिया संवैधानिक तरीके से हुई, सबकी समान हुई।
 
 
सभी राज्यों ने संविधान निर्माण की प्रक्रिया में भाग लेना स्वीकार किया। कहा कि हम अपने प्रतिनिधि भेजेंगे। दूसरी बात तय की कि सभी राज्यों में भी संविधान सभा का गठन होगा जो अपने लिये संविधान बनायेंगे। क्योंकि सरदार पटेल ने उस समय वादा किया था कि तीन विषयों के अतिरिक्त हम आपसे कुछ लेने वाले नहीं हैं। आप जो स्वीकार करेंगे वही हम आपसे लेंगे। संविधान सभाएं अधिमिलन अथवा विलय की पुष्टि करेंगी और राज्य में भारतीय संविधान के न्यायक्षेत्र का निर्णय करेंगी। 1947 में जब देश स्वतंत्र हुआ तब एकीकरण की प्रक्रिया चल रही थी। वस्तुतः यह एक निरंतर प्रक्रिया है जो किसी न किसी रूप में आज भी जारी है।
 

संवैधानिक एकीकरण की प्रक्रिया एक दिन में पूरी होने वाली नहीं थी। जैसे सब राज्यों ने संविधान सभा में अपने प्रतिनिधि भेजे वैसे ही जम्मू कश्मीर ने भी अपने 4 प्रतिनिधि भेजे। जैसे सबने संविधान बनाने में अपनी भागीदारी की वैसे ही उन्होंने भी की। जम्मू कश्मीर के 4 प्रतिनिधियों ने बाकी प्रतिनिधियों के साथ मिलकर संविधान बनाया।
 
एकीकरण की यह प्रक्रिया धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, राज्यों के विलय और अधिमिलन हो रहे थे लेकिन अप्रैल 1949 आते-आते संविधान बनाने वाले लोगों को समझ में आ गया कि राज्यों के संविधान बनाने की प्रक्रिया पूरी होने वाली नहीं है। वहां जिस प्रकार की संवैधानिक समझ वाले लोग चाहिये उनकी उपलब्धता नहीं है। वे निर्णय नहीं कर सकते। धीर-धीरे यह बात भी स्पष्ट होने लगी कि यदि सब राज्यों के अपने संविधान होंगे तो समन्वय कठिन होगा। डॉ. भीमराव अम्बेडकर, सरदार पटेल और अन्य संविधान निर्माताओं को यह बातें ध्यान में आ गयी थी। उनका मानना था कि राष्ट्रीय एकात्मता को पुष्ट करती हमारी संघात्मक व्यवस्था होगी। न वह अमेरिका की तरह होगी, न वह ब्रिटेन की तरह होगी, न ही वह फ्रांस या जर्मनी की तरह होगी। हमारी परिस्थितियों की तरह हमारी एक विशिष्ट व्यवस्था रहने वाली है, ऐसा सबने सोचा था।
 
 
 
 
देश की सभी रियासतों के प्रधानमंत्रियों की बैठक मार्च 1949 में बुलाई गयी। तब तक तीन राज्यों में संविधान सभा का चुनाव हो चुका था। सौराष्ट्र, मैसूर और कोचीन त्रावणकोर। संविधान सभा केवल जम्मू कश्मीर की ही नहीं बनी थी। तीन और राज्यों की संविधान सभा भी बनीं थीं। उन तीनों राज्यों को सम्मिलित कर एक कमेटी बी एन राव की अध्यक्षता में बनायी गयी। उन्होंने श्री वेल्लोडी जो उस समय एक वरिष्ठ सचिव थे, के साथ मिलकर भारत गणराज्य में शामिल रियासतों के लिये एक मानक संविधान बनाया गया। यह भारत के संविधान का हिस्सा बनाया गया जिसे उस समय अनुच्छेद 211ए कहा गया और जो बाद में अनुच्छेद 238 के रूप में भारत के संविधान में शामिल हुआ। जिस समय यह सारी प्रक्रिया पूरी हो रही थी, 10 अक्तूबर 1948 को सरदार पटेल का भाषण हुआ जिसमें उन्होंने कहा कि यह बहुत अच्छी बात है कि राज्यों ने भी भारतीय संविधान को अपना संविधान मान लिया है। हम उन सब लोगों को बताना चाहते है जिन राज्यों के चुनाव नहीं हुए उनकी पहली विधानसभा को हम संविधान सभा के रूप में स्वीकार करेंगे। इस रूप में राज्यों द्वारा भारत की संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप दिये गये सुझावों को हम स्वीकार करेंगे।
 
 
 
सरदार पटेल ने स्पष्ट किया कि भारत का संविधान बनाने का कार्य जब पूरा होगा तो सभी राज्यों के राजप्रमुख संविधान को स्वीकार करेंगे क्योंकि वहां विधानसभाएं नहीं हैं। भारत का संविधान बना। देश के सब राजप्रमुखों ने देश के संविधान को लेकर प्रोक्लेमेशन किये। जम्मू कश्मीर के रीजेंट कर्ण सिंह, जो उस समय जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के प्रतिनिधि के रूप में थे, उन्होंने भी जम्मू कश्मीर में भारत के संविधान को स्वीकार किया। इस तरह भारत के संविधान को पूरे भारत में लागू करने के साथ ही संविधान निर्माण की प्रक्रिया पूर्ण हुई। इसी प्रक्रिया के कारण जम्मू कश्मीर भारतीय संविधान के पहले अनुच्छेद के अंतर्गत पहली अनुसूची में 15वां राज्य बना। उस समय यह राज्य 15वें नंबर पर नहीं था। उस समय पार्ट ए, पार्ट बी, पार्ट सी और पार्ट डी थे। जम्मू कश्मीर बाकी राज्यों की तरह पार्ट बी स्टेट्स की सूची में था। जम्मू कश्मीर के जो रीजेंट थे, वे उस दिन के बाद राष्ट्रपति द्वारा मान्यता प्राप्त राजप्रमुख भी बन गये, जैसे बाकी सब राज्यों के राजप्रमुख थे।