जम्मू कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् कोई रोल नहीं है, मानवाधिकार का हल्ला मचाना महज़ फरेब है
   24-अगस्त-2019
 
लगता है यूएस के कुछ एक्सपर्ट्स के पास कोई काम नहीं है, इसीलिये, बिना सच जांचे परखे यूएन के पांच एक्सपर्ट्स ने जम्मू कश्मीर में भारत सरकार द्वारा एहतियात के तौर पर लगाए गए संचार माध्यम के प्रतिबंधों का विरोध किया है, और एक वक्तव्य पर हस्ताक्षर कर उसे पब्लिक में ज़ारी किया है. इंटरनेट और फ़ोन की सुविधा अस्थायी रूप से कश्मीर घाटी में अभी भी बंद है, जो इन एक्सपर्ट्स के अनुसार घोर अमानवीय कृत्य है, क्योंकि ऐसा करने से वहाँ रहने वाले लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चीनी जा रही है. ऐसा महान विचार रखने वाले ये पांच महानुभाव हैं - विशेष दूत (प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट टू फ्रीडम ऑफ़ ओपिनियन एंड एक्सप्रेशन), डेविड कए , विशेष दूत (प्रोटेक्शन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स), मिचेल फोर्स्ट , अध्यक्ष के प्रतिनिधि दूत (इंफोर्स्ड/ इन्वॉलन्टरी डिसपियरंस), बर्नार्ड दुहाइमे , विशेष दूत (पीसफुल असेंबली एंड एसोसिएशन), क्लेमेंट नयलेटसोस्सि वोले और विशेष दूत (एक्सट्राजुडिसिअल/ आरबिटरेरी एक्सेक्युशन्स), अग्नेस कालमर्ड.
 
 
-ये शायद नहीं जानते हैं की जम्मू कश्मीर भारत का संवैधानिक अंग है. 26 अक्टूबर 1947 में महाराजा हरी सिंह द्वारा अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर करने के साथ ही जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया. पर उसी समय पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर आक्रमण कर राज्य के बहुत बड़े हिस्से पर अवैध कब्ज़ा कर लिया.
- पाकिस्तान द्वारा किया गया हमला और इस अवैध कब्ज़े का मुद्दा लेकर भारत 1 जनवरी 1948 के यूएन गया. भारत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पाकिस्तान ने भारत के जम्मू कश्मीर के हिस्स्सों पर अवैध कब्ज़ा किया है और यदि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् (यूएनएससी) ने कोई कदम नहीं उठाया तो आनेवाले समय में एशिया के इस क्षेत्र में हालात ख़राब हो सकते हैं.
 
 
-परन्तु यूके और यूएसए की साज़िश के चलते, पाकिस्तान के आक्रमण के मुद्दे को दरकिनार कर भारत में हुए जम्मू कश्मीर के अधिमिलन पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया गया. यानि अग्रेशन के मुद्दे को बदल कर एक्सेशन का मुद्दा बना दिया. यहाँ महाराजा द्वारा हस्ताक्षरित अधिमिलन पत्र भारत के पक्ष में रहा और अंत में पाकिस्तान को यूएन ने एक अग्रेसर यानी आक्रांता माना और जम्मू कश्मीर के अवैध कब्ज़े वाले हिस्से से तुरंत सेना हटाने के लिए कहा गया.
 
-लेकिन तब से लेकर आज तक पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के भिम्बर, कोटली, गिलगित और बाल्टिस्तान पर अपना अवैध कब्ज़ा बनाये रखा है.
 
 
-1947 से लेकर आज 2019 तक गिलगित बाल्टिस्तान और मीरपुर मुज़फ़्फ़राबाद में पाकिस्तान ने जो आमनवीय कार्य किये हैं, उसके लिए यूएन ने आज तक क्या किया है?
 
-आज जम्मू कश्मीर में भारत सरकार ने राज्य के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर में, जान माल की हानि ना हो इसके लिए कुछ प्रतिबन्ध लगाए हैं, जिनको रिज़नेबल रेस्ट्रिक्शन्स कहा जाता है और ऐसा करना सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है. परन्तु यूएन के पांच एक्सट्रटों ने एक स्टेटमेंट ज़ारी कर यह घोषणा कर दी कि संचार व्यवस्था पर लगाए गए प्रतिबन्ध अमानवीय हैं और मानवाधिकार का उल्लंघन करते हैं!!
-भारत एक स्वतंत्र देश है और अपने देश के भीतर कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए, लोगों की सुरक्षा के लिए, शांति बनाये रखने के लिए भारत जो भी कदम उठाये, उसमें, यूएन की दखलंदाज़ी को हम सिरे से खारिज करते हैं. यूएन को पहले 1947 से लेकर आज तक पाकिस्तान द्वारा गिलगित बाल्टिस्तान में जनता पर किये गए अत्याचार के खिलाफ कदम उठाने होंगें.
 
-गिलगित बाल्टिस्तान में पाकिस्तान का दमनकारी चक्र ऐसा चला है कि सरकार के विरुद्ध उठी हर आवाज़ को कुचल दिया गया. विरोध करने वाले नौजवान ग़ायब हो जाए हैं और फिर कभी नहीं मिलते हैं.
 
 
-पाकिस्तान अधिक्रान्त जम्मू कश्मीर की जनसँख्या में पाकिस्तानी सुन्नी मुसलमानों को मिलाने के लिए 1974 में महाराजा का बनाया हुआ स्टेट सब्जेकट कानून ख़त्म कर दिया गया. आज हालात यह हैं की वहाँ पाकिस्तानी अधिक और लोकल कम मिलते हैं. लेकिन जब यह अमानवीय काम किया जा रहा था तब यूएन ने कुछ भी नहीं कहा, आँखों पर पट्टी बाँधे बैठा रहा.
 
 
-वहाँ 2003-4 में शिया समुदाय ने स्कूल में पढ़ाये जा रहे इस्लामियत के विषय पर विरोध किया, नतीजतन स्कूल पूरे एक साल तक यानि 2005 तक बंद रहीं!! यूएन को ये ज़्यादती नज़र नहीं आयी, यहाँ जो अधिकार छीने गए उसपर यूएन चुप्पी साधे रहा.
 
 
-जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के कारण यहाँ की महिलाएँ, एससी, एसटी, शिया मुस्लमान, गुजर मुस्लमान सभी भेद भाव का शिकार थे. 70 सालों से वहाँ रह रहे वेस्ट पाक रेफ्यूजी अपने मानवाधिकारों के लिए दर दर भटक रहे थे, पंजाब से 1957 में लाये गए वाल्मीकि समाज को कानून की आड़ में मैला ढोने के लिए मजबूर किया गया. पर जब आज भारत अनुच्छेद 370 को हटाकर पिछले 70 साल में जम्मू कश्मीर में रेंहवाले हर नागरिक के अधिकारों की रक्षा कर रहा है, वहाँ रुके हुए विकास कार्य को आगे बढ़ा रहा है तो यूएन के कुछ प्रतिनिधि भारत को मानवाधिकारों की नसीहत दे रहे हैं!!
 
-एक बात और, मानवाधिकार लिख कर चार्टर बनाने से कुछ नहीं होता. यदि 1949 में यूएन ने अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुए, अपने रेसोलुशन को क्रियान्वित कर पाकिस्तान अधिक्रान्त जम्मू कश्मीर से पाकिस्तानी सेना को हटा दिया होता तो आज यह दिन नहीं आता. मानवाधिकारों का हनन ना होता, आतंकवाद ना होता डेमोग्राफी ना बदलती, निर्दोषों की हत्याएँ ना होतीं. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. केवल ट्वीट करने से या मानवाधिकारों पर आर्टिकल लिख देने से आप अपनी ज़िम्मेदारी पूरी नहीं करते हैं.
 
-एक अंतरराष्ट्रीय संस्था के रूप में यूएन फेल हुआ है. 1949 से लेकर आज तक जम्मू कश्मीर में जो समस्याएँ हुईं, जो आतंकवाद फैला उसके लिए यूएन भी ज़िम्मेदार है.
 
-आज भारत सरकार आतंरिक और बाहरी सुरक्षा बनाये रखने के लिए जम्मू कश्मीर में हर संभव प्रयास कर रही है, परन्तु घाटी में आतंकवाद और अलगाववाद फैलानेवाले पाकिस्तान का समर्थन करनेवाले यूएन के कुछ एक्सपर्ट बाज़ नहीं आ रहे. इस से तो लगता है की इस संस्था का जन्म दुनिया में अशांति और अराजकता फ़ैलाने के लिए हुआ है है. वरना क्या कारण है कि यूएन को 1947 में जम्मू कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण और अधिक्रमण नहीं दिखा? क्यों यूएन ने रेसोलुशन पास करने के बाद भी उसे लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया और पाकिस्तान ने 70 साल बाद भी जम्मू कश्मीर से अपना अवैध कब्ज़ा नहीं हटाया. ऐसी क्या बात है कि गिलगित बाल्टिस्तान में 70 सालों से लगातार हो रहे मानवाधिकार हनन यूएन को नहीं दिख रहे, पर इंटरनेट की सेवा कुछ समय के लिए घाटी में बंद करने पर यूएन के कुछ एक्सपर्ट भारत के खिलाफ स्टेटमेंट दे रहे हैं?
 
-ऐसे पक्षपाती और झूठे यूएन के एक्सपर्ट्स की हम भर्तस्ना करतें हैं. 70 सालों से हो रहे अत्याचारों की अनदेखी करनेवाले यूएन एक्सपर्ट्स को भारत के मामले में उन्हें अपने एक्सपर्ट्स कॉमेंट्स देने का कोई अधिकार नहीं.