जानिए 3 अगस्त का खूनी इतिहास- 2001, जब आतंकियों ने 17 बेगुनाह चरवाहों की नृशंस हत्या कर दी थी
   03-अगस्त-2019
 
 
 
 
 
जम्मू कश्मीर में आतंकी हमलों की आशंकाओं और उसकी प्रभाव को समझने के लिए हमें अतीत में झांकना ज़रूरी है। 1990 के बाद आतंकी बेखौफ कश्मीर ही नहीं जम्मू के इलाकों में भी खुलेआम आतंकी वारदात को अंजाम दे रहे थे। 3 अगस्त 2001 की रात ऐसी ही रात थी, जब इस्लामिक आतंकियों ने 17 बेकसूर चरवाहों को लाईन में खड़ाकर के गोलियों ने छलनी कर दिया था। ये कहानी है, किश्तवाड़ के समीप लूडर गांव की। जहां ज्यादातर संख्या में हिंदू चरवाहे रहते थे, जो जानवरों को पालकर अपनी जिंदगी का गुज़र-बसर कर रहे थे। वो चरवाहे गर्मी के मौसम में जानवरों को चराने के लिए गांव से कुछ घंटे दूरी पर ऊंचाई की तरफ चले जाते थे और जानवरों को चराने के लिए कुछ दिन वहीं रुकते थे। उन दिनों उन्हें ऊंचाई पर जानवारों को चराने के लिए हरे भरे मैदान मिल जाते थे।


उस दिन 21 चरवाहों की एक टोली अपने जानवरों को लेकर ऊपर पहाड़ी की तरफ गई थी। रात होने के बाद वो चरवाह वहीं दो अलग-अलग ढाबों में रुके थे। जब सब सो गये, देर रात 2 आंतकी पहले एक ढाबे में घुसे और सबको उठाकर लाइन से खड़ा किया। इन आतंकियों ने उन चरवाहों का सारा सामान छीन लिया। फिर उन्होंने दूसरे ढाबे में रूके चरवाहों को भी एक साथ इकठ्ठा किया और उनका सामान भी छीन लिया।
 
 
उस घटना में बचे देवराज (उस वक्त देवराज की उम्र 14 साल थी) के मुताबिक उन्होंने सभी चरवाहों को एक लाइन में खड़ा कर दिया था। आतंकियों ने सभी 21 लोगों को बंदूक के दम पर अपने सामने झुकने को कहा। फिर आतंकियों ने एक चरवाहे पन्ना लाल को बंदूक दिखा कर पूछा कि जानते हो ये क्या है? पन्ना लाल ने कहा ये बंदूक है, फिर उस आंतकी ने पूछा क्या जानते हो कि इसमें से क्या निकलता है ? पन्ना लाल ने जवाब दिया गोली। फिर उसके बाद आतंकियों ने कुछ नहीं पूछा.. और लाईन में खड़े बेकसूर चरवाहों पर अंधाधुंध गोलियां चलाना शुरू कर दिया। सभी खून से लथपथ ज़मीन पर गिर पड़े। कुछ तुरंत मारे गये, कुछ घायल हुए और कुछ मारे जाने का नाटक कर वहीं लेट गये। आतंकी सभी को मरा छोड़कर और छीना हुआ कीमती सामान लेकर फरार हो गये।
 
 

 
 नरसंहार में बचा देवराज
 
 
सुबह तक कुल 17 चरवाहे मारे गये। उस खौफनाक रात के इस नरसंहार में 21 लोगों में से सिर्फ देवराज समेत 4 लोग बचे थे। देवराज सहित वो सभी अपनी जान उस अपने साथियों के लाशों के बीच में छुप कर बचाई थी।
 
अगली सुबह पूरी इलाके में इस नरसंहार की खबर फैल चुकी थी। चारों तरफ गुस्सा और रोष था। मारे गये चरवाहों के अंतिम संस्कार में आस-पास के गांवों के सैकड़ो हिंदू चरवाहे और दूसरे गांववाले जमा हुए। जिसमें से कुछ वीडीसी थे, जिन्हें सरकार ने गांव की आत्मरक्षा के बंदूक दे रखी थी। अंतिम संस्कार हुआ, लेकिन प्रशासन ने स्थानीय लोगों को सुरक्षा या कार्रवाई को का कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया। जिसके बाद अंतिम संस्कार में जमा भीड़ ने नारेबाज़ी शुरू कर दी और अठोली कस्बे में प्रदर्शन किया।
 
 
प्रदर्शन के दौरान कुछ मुस्लिम दुकानों को नुकसान पहुंचा। जिसके बाद अफवाह फैली की मस्जिद गिरा दी गयी है। नतीजा ये हुआ कि आतंकी घटना अब इलाके में सांप्रदायिक हिंसा में तब्दील होने लगी थी। तब कहीं जाकर प्रशासन ने सुध ली और सख्ती दिखाते हुए डोडा और किश्तवाड़ में कर्फ्यू लगा दिया गया। जिसके बाद मामला तो शांत हो गया, लेकिन बेकसूर चरवाहों के नरसंहार को फिर भुला दिया गया। इसकी न कोई सज़ा हुई , न कोई कार्रवाई।