अनुच्छेद 370 मुस्लिमों का हितैषी नहीं, गुज्जर-बक्करवाल मुस्लिम विरोधी था, #370 के भ्रमजाल का तथ्यात्मक पर्दाफ़ाश
   14-सितंबर-2019
 Photo credit- WSJ
 
 
 
भारत के जम्मू कश्मीर क्षेत्र जो पहले संविधान के अनुच्छेद एक एवं अनुसूची एक के अनुसार 15वां राज्य था, वर्तमान में दो केंद्र शासित क्षेत्रो में बाँट दिया गया है. इसके साथ -साथ जम्मू कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 में परिवर्तन करते हुए जम्मू कश्मीर में सम्पूर्ण भारतीय संविधान एवं समय –समय पर उसमे हुए संशोधनों को लागू कर दिया गया. यह एक ऐसा कदम था जिसे पूरे देश में व्यापक जन समर्थन प्राप्त हुआ, इसके साथ-२ जम्मू कश्मीर राज्य में भी राज्य के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर जोकि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से ग्रस्त है के एक सेगमेंट को छोड़ दे तो इस परिवर्तन को आमजन ने स्वीकार किया है. राज्य में सत्तर वर्षो से चली आ रही एक विसंगति को दूर किया है तो बहुत से स्थापित आयामों में परिवर्तन होगा, जैसे कि आने वाले समय में राज्य में लागू अनेक एक्ट्स एवं नियमों का स्वरुप क्या होगा, केंद्र शासित राज्य बनने के बाद राज्य सरकार कैसे काम करेगी, राज्य का परिसीमन होगा तो विधानसभा का स्वरूप क्या होगा इत्यादि. लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि जम्मू कश्मीर में ऐसी क्या स्थितियां एवं परिस्थितियाँ बन रही थी, जिसके चलते राज्य में इतने बड़े कदम उठाये गए. आइये इसका एक विश्लेषण करते है :-
 
 
1. राज्य की सत्ता पर सबसे छोटे- हिस्से कश्मीर का कब्जा
 
 
आज़ादी के बाद से आज तक जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों या यूं कहिये व्यक्तियों ने दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार से या यूं कहिये दिल्ली की सत्ता पर काबिज लोगों से undue advantage लिया है. जब आप जम्मू कश्मीर के राजनितिक दलों की बात करते है तो उसमे केवल राज्य के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर के राजनितिक दलों को ही मुख्य माना जाए क्योंकि आज़ादी के बाद जब से राज्य में चुनावी प्रक्रिया शुरू हुई है तब से लेकर आज तक मुख्यमंत्री केवल कश्मीर से आये है, जम्मू से केवल गुलाम नबी आजाद मात्र दो वर्षो के लिए मुख्यमंत्री बने थे. आप राज्य की राजनीति पर कश्मीर के दबदबे को आप इस बात से समझ सकते है कि इन दो वर्षो में भी गुलाम नबी आज़ाद सिर्फ इस बात को प्रचारित करने में लेगे रहे कि हो सकता है कि आज उनका घर जम्मू में है लेकिन मूलतः वो कश्मीर से ही है . हालांकि उनकी यह दलील कश्मीर के रराजनितिज्ञो को ज्यादा रास नहीं आई और गुलाम नबी को दो वर्षो में मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा. जैसा हमने ऊपर लिखा कि कश्मीर से आने वाले राजनितिज्ञो ने दिल्ली में बैठी राजनितिक एवं प्रशासनिक लाबी को इस हद तक गुमराह किया कि जम्मू कश्मीर रियासत भारत का हिस्सा कुछ शर्तो पर बनी है और ये वो शर्ते है है जिनके आधार पर जम्मू कश्मीर का अधिमिलन भारत में हुआ था . सुनने या पढने में यह एक साधारण बात लगती है लेकिन इस बात का दुरूपयोग भी किया जा सकता है यह बात भारतीय नेतृत्व को समझ में नहीं आई . परिणाम यह हुआ कि जम्मू कश्मीर के कश्मीर घाटी के जिन लोगो को विभाजन के बाद राज्य की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सत्ता मिली उन लोगो ने जम्मू कश्मीर में भारत को मजबूत बनाए रखने की बजाय उल्टा काम शुरू किया . यह काम कश्मीर घाटी में धार्मिक पहचान का दुरूपयोग करते हुए कुछ लोगो के सबकान्सियास माईंड में ऐसी धारणाये स्थापित करने का प्रयास किया जिन्होंने राज्य के सबसे छोटे हिस्से में अलगाववाद को पनपाने और बढाने का कार्य किया . उधाहरण के तौर पर जैसे “ जम्मू कश्मीर के पास अपना एक संविधान है, राज्य का अनुच्छेद ३७० के अंतर्गत एक विशेष दर्जा है जो रियासत को भारत के साथ जोड़ता है या अनुच्छेद भारत और जम्मू कश्मीर के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करता है इत्यादि.
 
 
यह जम्मू कश्मीर के रहने वाले लोगो का दुर्भाग्य ही कहिये कि राज्य में आज तक जितने चुनाव लड़े गए इन्ही बातो पर हुए. जम्मू कश्मीर में रहने वाले डोगरा, कश्मीरी, बुद्धिस्ट, गुज्जर, पहाड़ी, शीना और बाल्टी लोगो के विकास और कल्याण का मुद्दा कहीं पीछे ही छूट गया. उल्लिखित भावनाओं ने अलगाववाद को इस स्तर तक बढ़ा दिया कि जम्मू कश्मीर में महाराज हरी सिंह के शासन से भी पहले रहने वाले लोगों के मूल अधिकारों तक का हनन शुरू कर दिया था. इन लोगों में बहुत से लोग ऐसे थे जिन्होंने राज्य की सुरक्षा में अभूतपूर्व योगदान दिया.
 
 
इतिहास गवाह है कि केंद्र के साथ -साथ राज्य की भी सरकारों ने इन विसंगतियों को ठीक करना तो दूर इनका सही ढंग प्रत्युतर भी नहीं दिया. जिसके चलते कश्मीर घाटी में समय के साथ -साथ कुछ ऐसे सिंबल या चिन्ह उभरने लगे जो जम्मू कश्मीर को भारत की एक पूर्ण रियासत नहीं दिखाते थे. अनुच्छेद ३७० ऐसा ही एक ऐसा सिम्बल था जिसने अलगाववाद को बढ़ावा दिया. इस बात से आप और अधिक सहमत होंगे जब आप देखेंगे कि अलगाववाद जो भारत की कल्पना और विचार से सहमत नहीं है, आये दिन भारत के राष्ट्रीय ध्वज से लेकर संविधान का विरोध करते है, वो भी अनुच्छेद ३७० को बचाने के लिए मरने मारने की बात करने लगे थे. इसका सीधा सीधा अर्थ यह है कि इस अनुच्छेद से सबसे बड़ा लाभ केवल और केवल अलगाववादियों का था.
 
 
अब कमाल की बात यह थी कि जिस अनुच्छेद को लगातार एक विशेष दर्जा कह कर प्रचारित किया जाता रहा वह पूरी तरह से गलत था. भारतीय संविधान की एक सिंपल रीडिंग किसी भी व्यक्ति वह चाहे लीगल समझ रखता हो या न रखता हो यह समझाने के लिए पर्याप्त है कि यह अनुच्छेद किसी भी तरह का विशेष दर्जा नहीं है वरन यह अनुच्छेद तो केवल मात्र अस्थायी है जिसे अभी तक चले जाना चाहिए था. संविधान की किसी भी अनुच्छेद में यह नहीं लिखा कि वह अनुच्छेद किस प्रकार से खत्म होगा. भारतीय संविधान में किसी भी अनुच्छेद को खत्म या संशोधित करने की प्रक्रिया अनुच्छेद 367 में लिखी है. अनुच्छेद 370 केवल मात्र एक ऐसा अनुच्छेद है जिसके अन्दर लिखा है कि यह अनुच्छेद कैसे खत्म होगा. लेकिन इस अनुच्छेद को लेकर पूरे देश में एक दुष्प्रचार का बवंडर खड़ा किया गया जिसके चलते अनुच्छेद 370 को लेकर देश में अनेक भ्रम और मिथ घर कर गये थे.
 
 
 
ये थे भ्रम अथवा मिथ?
 
 
१. जम्मू कश्मीर का अधिमिलन जम्मू कश्मीर राज्य या आप इसे ऐसा भी कह सकते है कि राज्य के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर के लोग जिसमे बहुसंख्यक मुस्लिम हैं, के लोगों के साथ कुछ अग्रीमेंट करने के बाद ही हुआ था. जबकि सत्य यह है कि कोई भी रियासत वो जम्मू कश्मीर हो या कोई अन्य उसका अधिलियन केवल मात्र उस राज्य के महाराजा की इच्छा से ही हो सकता था. इसके लिए बाकायदा ब्रिटेन की संसद ने एक प्रक्रिया बनायीं थी. इस प्रक्रिया के तहत एक मानक (स्टैण्डर्ड) अधिमिलन पत्र तैयार किया गया था जिसमे महाराजा या अंग्रेज अपनी मर्जी से कोई भी शर्त नहीं जोड़ सकते थे. अब जब शर्त का विकल्प ही नहीं था तो शर्त या शर्तो का कोई भी सवाल नहीं उठता.
 
 
 
२. दूसरी भ्रम ये बनाया गया कि जम्मू कश्मीर का अधिमिलन तो हुआ है लेकिन मर्जर नहीं हुआ. यह बात तथ्यों के आधार पर पूरी तरह से गलत है. राज्यों का डोमिनियन वो चाहे भारत हो या पाकिस्तान में जो मिलन हुआ उसे अधिमिलन कहा जाता है . दूसरी और छोटे -छोटे राज्यों को किसी अन्य रियासत या ब्रिटिश इंडिया के किसी हिस्से के साथ मिलाना ताकि वह एक उचित प्रशासकीय इकाई बन सके, यह मर्जर कहलाया. यह प्रक्रिया केवल उन राज्यों के लिए थी जो छोटे -२ राज्य थे . ऐसे राज्य ने आप में एक प्रशासकीय इकाई के रूप में कार्य नहीं कर सकते थे . वही दूसरी और जम्मू कश्मीर का अपना क्षेत्रफल दो लाख बाईस हजार वर्ग किलोमीटर था. यह कई छोटे देशो के क्षेत्रफल से भी बड़ा था इसलिए जम्मू कश्मीर का मर्जर किसी अन्य राज्य के साथ किये जाने की जरुरत नहीं थी. इस मिथ्या को तभी समझा जा सकता है जब आप अधिमिलन और मर्जर की अवधारणाओ का बिना किसी पूर्वाग्रह और तथ्यों के आधार पर अध्ययन करेंगे .
 
 
३. अनुच्छेद ३७० भारत और जम्मू कश्मीर के बीच में एक सेतु के रूप में कार्य करता है यह भी एक ऐसी मिथ्या थी जिसकी तथ्यों के आधार पर विवेचना आवश्यक थी. सांस्कृतिक रूप से जम्मू कश्मीर और भारत की कल्पना में किसी भी प्रकार का विरोधाभास नहीं है. इस आधार पर १९४७ से नहीं सदियों से जम्मू कश्मीर ही भारत और भारत ही जम्मू कश्मीर था. यदि हम १९४७ के आधार पर भी देखे तो साफ़ हो जाएगा जम्मू कश्मीर भारत का अंग महाराजा हरी सिंह के अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर के बाद बना और यह अधिमिलन कानूनी प्रक्रिया थी जिसे दुनिया के किसी भी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती थी. इतना ही नहीं १९४९ में तत्कालीन रिजेंट कर्ण सिंह ने यह उद्घोषणा की कि २५ नवम्बर १९४९ के बाद जम्मू कश्मीर का भारत के साथ सम्बन्ध भारतीय संविधान के अनुसार होगा . बाद में इसी भावना को भारतीय संविधान के अनुच्छेद एक और अनुसूची एक में लिखा गया और सपष्ट किया गया कि जम्मू कश्मीर भारत का अन्य राज्यों के समान ही एक अंग है. यह सेतु वाले तर्क पूरी तरह से आधारहीन और अलगाववादियों के टूल थे जिसे आज तक वो प्रयोग करते आये थे.
 
 
 
 
४. एक और तर्क जो गढ़ा गया कि अनुच्छेद ३७० खत्म हो जाएगा तो जम्मू कश्मीर भारत से आज़ाद हो जाएगा. ६ अगस्त २०१९ में अनुच्छेद ३७० के सभी पुराने क़लाज खत्म हो गए है लेकिन जम्मू कश्मीर पहले की तरह भारत का अंग बना हुआ है . जो लोग यह कहते रहे कि जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान का अनुच्छेद एक अनुच्छेद ३७० के माध्यम से लगा हुआ है , आज पूरी तरह से गलत साबित हुए है.
 
 
५. एक दुष्प्रचार यह भी किया गया कि भारत की संसद जम्मू कश्मीर के विषय पर कोई भी कानून नहीं बना सकती थी जब तक कि वहां की सरकार या विधायिका उसको मान्यता न प्रदान करे. यह एक गलत प्रचार था, ६ अगस्त २०१९ से पहले भी जम्मू कश्मीर के लिए भारतीय संसद सीधे क़ानून बना सकती थी. इस प्रकार के मिथ्या प्रचार का उद्देश्य केवल और केवल कश्मीर घाटी और शेष भारत में अलगाववाद का समर्थन करने वाले लोगो को मजबूत करना था . इस तबके की पूरी कोशिश थी कि वो भारत और जम्मू कश्मीर में दूरियां उत्पन्न करे और उसे बढ़ाये. इसके लिए इन अलगाववादी तत्वों ने जानकारियों में मिलावट कर कश्मीर में खूब चलाया जिसके चलते एक तबके में यह भावना बनी कि उनके साथ अन्याय हुआ है और उन्होंने भी इन भ्रम अथवा मिथ को सच मानना शुरू कर दिया.
 
 
 
 
कश्मीर के राजनितिक दलों का नकारात्मक रोल
 
 
 
उपरोक्त मिथ और भ्रमों को खत्म करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी राज्य के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर के राजनितिक दलों की थी. लेकिन इन दलों ने इस में कोई रूचि नहीं दिखाई. अलबत्ता चाहे नेशनल कांफ्रेंस हो या पीडीपी दोनों ने अपने राजनीतिक फायदों के लिए इन मिथ्याओं को और बल प्रदान करने का कार्य किया. परिणाम जो संसाधन और उर्जा राज्य में शान्ति और विकास लाने के लिए लगनी चाहिए थी वो अलगाववाद और आतंकवाद जैसे विषयों में खर्च होने लगी. कश्मीर के नेता चाहे वो अब्दुल्ला परिवार से आते हो या मुफ़्ती परिवार से दोनों ने आम जन से अपने आप को बिलकुल काट लिया. जम्मू कश्मीर के आम निवासी की बेहतरी के लिए जो भी कानून या अनुच्छेद भारतीय संसद बनाती थी उन्हें अनुच्छेद ३७० के नाम पर जम्मू कश्मीर में लागू होने से रोका जाने लगा. इन राजनितिक लोगों ने अपने कान इस हद तक बंद कर लिए थे कि जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासी की अनदेखी की जाने लगी. उनमें से कुछ का विवरण नीचे दिया गया है :-
 
 
 
१. जम्मू कश्मीर की महिलाएं – जम्मू कश्मीर की महिलाएं चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम अनुच्छेद 35A के चलते पीड़ित थीं. यह अनुच्छेद इन महिलाओं के मूल अधिकारों का हनन कर रहा था. इस विषय को लेकर राज्य की अनेक महिलाओं ने उच्च एवं उच्चतम न्यायालय में गुहार लगायी थी. इस विषय को लेकर दोगलेपन की पराकाष्ठा देखिये कि पूरे देश में महिलाओं के अधिकारों को लेकर बोलने का स्वांग रचने वाले कुछ चेहरे जम्मू कश्मीर में महिलाओं पर हो रहे इस अत्याचार पर न केवल आँख बंद कर के बैठे है बल्कि अनुच्छेद 35ए को हटाये जाने का विरोध कर रहे है.
 
 
२. आदिवासी अधिकारों का हनन – जम्मू कश्मीर में लगभग 11 प्रतिशत जनजातीय जनसँख्या है. इसमें मेजोरिटी मुस्लिम जनसँख्या है. आज तक इन लोगों को जम्मू कश्मीर में राजनीतिक आरक्षण प्राप्त नहीं था जो भारतीय संविधान के अनुसार शेष भारत में इस वर्ग को प्राप्त है. 6 अगस्त को मुस्लिम विरोधी कदम बताने वाले लोगों को इस प्रश्न का जवाब देना पड़ेगा कि 6 अगस्त के बाद राज्य में जनजातीय वर्ग को राजनीतिक आरक्षण प्राप्त होगा. क्या वे लोग इस आरक्षण के खिलाफ हैं और यदि है तो अनुच्छेद ३७० में संशोधन मुस्लिम विरोधी नहीं है बल्कि इस कदम का विरोध करने वाले मुस्लिम विरोधी है.
 
 
३. कमजोर स्वास्थ्य सुविधाएं – जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद ३७० एवं ३५ए के चलते देश के नामी गिरामी संस्थानों से प्रशिक्षित डाक्टर्स एवं प्रोफेसर्स राज्य में नहीं आ सकते थे . जम्मू कश्मीर में पांच नए मेडिकल कालेज खुले है उनमे पढ़ाने वाले एक्सपर्ट्स की भारी कमी है. हाल ही में प्रोफेसर्स की भर्ती के लिए रिटायर्ड लोगो के साथ अनुबंध किया गया. यदि शेष भारत से कुछ अच्छे प्रोफेश्नाल्स राज्य में आये तो उसके लाभ आम जन को मिल सकते है.
 
 
४. अनुचित परिसिमन – राज्य में १९५१ से लेकर आज तक परिसीमन ठीक ढंग से नहीं किया गया है. यदि राज्य का परिसीमन ढंग से किया जाए तो राज्य के दूर दराज के लोगों को लाभ मिलेगा.
 
 
५. पंचायती राज लागू होना – जम्मू कश्मीर में तैंतीस हजार पंच-सरपंच चुने जाते है. विडंबना देखिये भारत में 73वां एवं 74वां संशोधन 1993 में आ गया था जिसमे राज्य में पंचायतो की शक्तियों का विकेंद्रीकरण कर दिया गया था. जिसके अनुसार जिले में केवल पञ्च सरपंच नहीं होंगे बल्कि ब्लाक एवं जिले स्तर पर चुनाव किये जायेंगे जिससे आम जनता की भागीदारी विकास कार्यो में अधिक से अधिक होगी. लेकिन जम्मू कश्मीर के राजनीतिक आकाओं को लगा यदि राज्य में तीन स्तरों पर चुनाव आरम्भ हो जायेंगे तो राज्य में अधिक से अधिक लोग राजनीति में भागीदारी करेंगे यदि ऐसा होगा तो विधायको और सांसदों के रुतबे में कमी आएगी. कैसे राज्य में पंचायती राज लागू न हो इसके लिए एक साजिश रची गयी और राज्य की भोली भाली जनता को झूठ बोला गया कि पंचायती राज लागू होने से राज्य में अनुच्छेद ३७० कमजोर हो जायेगी, यह वयवस्था राज्य के विशेष दर्जे के लिए खतरनाक है. जबकि सत्य यह था कि पंचायती राज आम जनता के लाभ के लिए था यह केवल राज्य के चुनिन्दा राजनितिक लोगो के झूठे विशेष दर्जे को खत्म कर रहा था.
 
 
ऐसे ही अनेक विकास और कल्याणकारी एक्ट एवं नियम थे जो अनुच्छेद ३७० के चलते राज्य में लागू नहीं हो पा रहे थे. दुखद सत्य एवं तथ्य यह है कि खुद राजनीतिक दल ही इन प्रावधानों को जम्मू कश्मीर में लागू होने से रोक रहे थे. इसलिए ६ अगस्त २०१९ को अनुच्छेद ३७० का असली उद्देश्य यानी कि जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान लागू करना पूरा हुआ. आज के समय में असली जरुरत यह है कि जम्मू कश्मीर की वर्तमान परिस्थितयों का सही आंकलन तथ्यों के आधार पर किया जाना चाहिए ना कि पूर्वाग्रहों से.