मायावती ने क्यों किया अनुच्छेद 370 और 35A हटाने का समर्थन ?
   16-सितंबर-2019

 
जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 35A के खात्मे के साथ 7 दशकों से दलितों के साथ हो रहे अत्याचार का भी खात्मा हुआ है। इसलिए मायावती की बसपा पहली ऐसी पार्टी थी जिसने अनुच्छेद 35Aको हटाने का समर्थन किया. विडम्बना देखिये जो लोग देश में दलित राइट्स पर दुनिया भर के सेमिनार करते है , लेख लिखते है उन्हें कभी जम्मू कश्मीर के दलितों का ख्याल नहीं आया।
 
जम्मू के गांधी नगर इलाके में जाएं तो वहां क्रिस्चियन कालोनी में बहुत बड़ी संख्या में दलित रहते हैं और 70 वर्षो से न्याय का इंतज़ार कर रहे थे. गारू गिल जो इस समुदाय के प्रधान है ने कहा नेशनल कांफ्रेंस हो या पीडीपी उन्होंने हमें कभी इंसान ही नहीं समझा. हम जम्मू कश्मीर में बाहरी नहीं है. हमें जम्मू कश्मीर में लाया गया था. इसके सारे सबूत उनके पास है, आरटीआई के तहत जवाब है जिसमे जम्मू कश्मीर सरकार मान रही थी कि पंजाब से दलितों को लाया गया था और लाया भी उन परिस्थतियों में जब पूरा जम्मू कश्मीर गन्दगी के ढेर पर बैठा था. लोग बीमार हो रहे थे. हम आये हमने जम्मू कश्मीर की गन्दगी साफ की लेकिन जब संविधान में लिखे अधिकारों की बात आई तो हमें बाहरी बोल दिया गया।
 
जानिये क्या है जम्मू कश्मीर में बसे दलितों की कहानी
 
साल 1957 में जम्मू कश्मीर में सफाई कर्मचारियों की हड़ताल हुई. राज्य में सफाई न होने की वजह से गन्दगी के ढेर लग गए. लोग बीमार पड़ने लगे . तब तत्कालीन राज्य के प्रधानमंत्री बक्शी गुलाम मोहम्मद पंजाब से 206 सफाई कर्मचारियो को लेकर आये इस शर्त पर कि उनको पीआरसी के सारे अधिकार दिए जायेंगे.लेकिन ऐसा नहीं हुआ उन्हें पीआरसी तो नहीं दिया गया अलबत्ता राज्य के सर्विस रूल्स में परिवर्तन कर एक रूल बना दिया गया जिसका प्रभाव यह हुआ कि ये सफाई कर्मचारी और इनकी पिछली चार पीढियां जम्मू कश्मीर में केवल मात्र सफाई कर्मचारी ही बन सकते है . वो कितना भी पढ़ ले जम्मू कश्मीर राज्य उन्हें केवल सफाई कर्मचारी ही बनाऐ रखन चाहता है .
 
 
इस प्रकार जम्मू कश्मीर में स्थायी निवासियों और अन्य नागरिकों के बीच भेद भाव किया जाता रहा है. जम्मू कश्मीर के सफाई कर्मचारी जो सबकी गन्दगी साफ करते हैं, वे खुद कानूनी गंदगी का शिकार थे.लगभग शरणार्थियों जैसा जीवन जीने को मजबूर वाल्मीकि समुदाय को पंजाब से 1957 जम्मू कश्मीर में बुलाया गया था, परन्तु आज 60 साल के बाद भी मूलभूत अधिकारों से से वंचित रखा गया था।
 
 
इनके बच्चे स्नातक स्तर तक शिक्षा प्राप्त तो कर सकते हैं, परन्तु आर्टिकल 35A की वजह से उनके पास सफाई कर्मचारी बनने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
 
 
गाँधी और अंबेडकर के इस देश में, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आज भी एक सफाईकर्मी दलित का बेटा चाहे कितना भी पढ़ ले, किन्तु जम्मू कश्मीर में वह, कानूनी प्रावधान के चलते, केवल झाड़ू उठाकर जम्मू की सड़कें और गन्दगी ही साफ़ कर सकता था । क्या बाबा साहब अंबेडकर का सपना यही था कि जम्मू कश्मीर में 65 सालों से रह रहे सफाई कर्मचारी आज भी मैला ढोने के लिए मजबूर हों?
 
 
(दलित अधिकारों का जीता जागता उदाहरण है जम्मू कश्मीर में वाल्मीकि समाज की लड़की राधिका गिल जो अनुच्छेद 35A के खिलाफ उच्चतम नयायालय में याचिकाकर्ता भी है )
 
 
राधिका गिल एक अच्छी धावक है और उसने प्रतियोगिताओ में कई पदक भी जीते है। राधिका गिल 12वीं कक्षा के बाद BSF में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहती थी I
 
 
BSF में भर्ती के लिए उसने सभी टेस्ट पास कर लिए, फिसिकल और लिखित टेस्ट, लेकिन फिर जब डाक्यूमेंट्स देने की बात आयी तो उसे रिजेक्ट कर दिया गया।क्योंकि उसके पास PRC नहीं था।
 
 
राधिका के अनुसार उन्होंने कहा कि बिना PRC तुम्हारी यहाँ अप्लाई करने की हिम्मत भी कैसे हुई!और इस तरह एक होनहार दलित लड़की का देश सेवा का, कुछ कर गुजरने का सपना चूर चूर हो गया।क्या बाबा साहेब आंबेडकर ने सभी के लिए जिन सामान अधिकारों की बात की है, उन्होंने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण का जो प्रावधान बनाया वो क्या राधिका के लिए नहीं है?