लिबरल मीडिया अभी भी क्यों छिपा ‘आर्टिकल 35A’ का महिला विरोधी स्वरूप, जानिए 35A को महिला विरोधी बनाये रखने के लिए कश्मीरी नेताओं ने कैसे साजिश रची
   17-सितंबर-2019


 
भारत के संविधान से महिला विरोधी अनुच्छेद 35A अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है। उसके बाद से से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का निर्णय लिया उस दिन से The Wire लगातार जम्मू कश्मीर पर स्टोरीज कर रहा है, हालांकि उनका जम्मू कश्मीर केवल डल लेक और लाल चौक तक सीमित है। वो जानते है जम्मू कश्मीर बहुत बड़ा है लेकिन शेष जम्मू कश्मीर से उन्हें उनकी सुविधानुसार खबरें नहीं मिलती इसलिए उनका पूरा ध्यान केवल और केवल लाल चौक के आस पास रहता है। इस चक्कर में वो यह भी भूल जाते हैं कि जम्मू कश्मीर में इस अनुच्छेद के चलते महिलाएं, चाहे वो हिन्दू हो, मुस्लिम, गुज्जर, पहाड़ी या सिख महिला हो वह पूरी तरह से पीड़ित है। उसके संविधान-सम्मत मूलभूत अधिकारों का पूरी तरह से हनन हो रहा था। खुद उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला, पूर्व केन्द्रीय मंत्री शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर जैसे हाई प्रोफाइल लोग भी इसका शिकार हैं. मृत्यू से ठीक पहले सुनंदा पुष्कर ने तो ट्विटर पर खुल कर इस विषय पर लिखा भी था. हाल ही में जम्मू यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर रेनू नंदा ने इस अनुच्छेद को जम्मू हाई कोर्ट में चुनौती भी दी थी. दलित लड़की राधिका गिल ने मुंबई के सेंट जेविअर्स कालेज में लगभग आंसुओं के बीच अपनी व्यथा सुनाई और बताया की कैसे एक शानदार धावक होने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली, कारण अनुच्छेद 35A।
 
 
पिछले 40 दिनों की अपनी रिपोर्टिंग में “वायर “ इन महिला अधिकारों को बिलकुल भूल गया. आइये तथ्यों के आधार पर आपको बताते हैं द वायर ने ऐसा क्यों नहीं किया. अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 का दुरूपयोग किस तरह से केवल और केवल अलगाववाद को बढ़ाने के लिए किया था यह समझने के लिए आपको कश्मीर घाटी के राजनीतिज्ञों की मानसिकता को समझना पड़ेगा. पूरे देश में मानवाधिकार का झंडा बुलंद करने वाले कैसे अपने ही राज्य की महिलाओं के प्रति साजिश करने में उस हर तक जाते है जहाँ यदि उन्हें संविधान में भी परिवर्तन करना पड़े तो उस से भी वो गुरेज़ नहीं करेंगे।
 
अब्दुल्ला और मुफ़्ती परिवार की महिला विरोधी साजिश
 
अक्टूबर 2002 से पहले जम्मू कश्मीर की महिला, (हिन्दू , मुसलमान हो या बौद्ध ,चाहे किसी भी धर्म से हो) राज्य से बहार या बिना पीआरसी यानि स्थानीय निवासी प्रमाण पत्र के व्यक्ति से विवाह करने पर अपने स्थानीय निवासी होने के सारे अधिकार खो देती थी. यानि जम्मू कश्मीर का स्थायी निवासी प्रमाण पत्र होने के बाद भी वो न तो किसी मेडिकल या इंजिनीरिंग कॉलेज में पढ़ सकती, ना ही उसे सरकारी नौकरी मिल सकती, वह कोई ज़मीन या मकान नहीं खरीद पाती और यदि उसके माता पिता पैतृक संपत्ति उसे देना चाहें तो वह भी नहीं ले सकती, वह कोई व्यापर नहीं शुरू कर सकती, पंचायत से लेकर विधान सभा कहीं भी न तो चुनाव लड़ सकती और ना ही इन चुनावों में वोट डाल सकती थी।
 
 
-7 अक्टूबर 2002 -''सुशीला साहनी बनाम जम्मू कश्मीर, 2002 ' केस में जम्मू कश्मीर उच्च न्यायलय ने अपना आदेश सुनाया।
 
- इस आदेशानुसार: “पीआरसी प्राप्त स्थानीय निवासी की बेटी यदि जम्मू कश्मीर से बाहर या बिना पीआरसी वाले व्यक्ति से विवाह करती है तब भी वह स्थानीय निवासी बनी रहेगी उसके राज्य में सारे अधिकार यथावत बने रहेंगे.”
 
 
- मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार पहले इस निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायलय गयी, पर जल्द ही यह समझ गयी कि उनका अपना पलड़ा हल्का है क्योंकि वे महिलाओं के समान अधिकारों का ग़ैरकानूनी रूप से हनन कर रहे हैं
 
-मार्च 2004 में मुफ़्ती मोहम्मद सरकार “The Jammu and Kashmir Permanent Resident (Disqualification) Bill 2004 या जम्मू कश्मीर स्थाई निवासी (अयोग्यता) बिल जम्मू कश्मीर विधान सभा में ले आयी.
 
बिल की प्रस्तावना में लिखा था - "राज्य की स्थायी निवासी महिला के अस्थायी निवासी व्यक्ति से विवाह करने पर राज्य का स्थायी निवासी होने से महिला को अयोग्य घोषित करने के लिए विधेयक". इस बिल के अनुसार कानून बनने पर, यह कानून 2004 के बजाय 2002 से लागू किया जाता, जिससे उच्च न्यायलय द्वारा की गयी त्रुटियों को सुधारा जाये I
 
-इस विधेयक को विधान सभा में पीडीपी से कानून मंत्री मुज़फ्फर हुसैन बेग़ ने प्रस्तुत किया और केवल 6 मिनट में यह विधेयक पारित भी हो गया.
 
-उमर अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस ने इस विधेयक का समर्थन किया।
-11 मार्च 2004 -विधेयक विधान परिषद् में पारित नहीं हुआ.विधान परिषद् के चेयरमैन, अब्दुल रशीद डार ने (जो नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता थे) विधान परिषद् को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया.
 
 
-12 मार्च 2004- चेयरमैन अब्दुल रशीद डार को इस विधेयक के फ़ैल होने के लिए ज़िम्मेदार ठहरा कर पार्टी अध्यक्ष ने अब्दुल रशीद को पार्टी से निष्कासित कर दिया -उमर अब्दुल्ला इस विधेयक के रोके जाने को राज्य के विधान मंडल के इतिहास का काला दिन बताते हैं। साथ ही मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद को इस विधेयक को नाकाम करने के लिए ज़िम्मेदार बताते हैं और उनसे इस विधेयक को पास कर कानून बनाने में सहायता माँगते हैं।
 
 
जम्मू कश्मीर की महिलाओं के विरुद्ध साजिश यही नहीं रुकी - कश्मीर घाटी के संकीर्ण विचारधारा वाले और महिलाओं की सामान अधिकारों के विरोधी इन नेताओं ने एक नयी चाल चली I अब जम्मू कश्मीर सरकार ने रेवेन्यू डिपार्टमेंट यानि राजस्व विभाग के GR द्वारा निर्देश दिया कि वह महिलाओं के पीआरसी पर 'विवाह तक वैध' लिखता रहे I
 
 
सरकार के इस उद्दंड व्यवहार के विरुद्ध एक बार फिर उच्च न्यायलय में गुहार लगाई गयी I हरि ओम बनाम जम्मू कश्मीर 2004 के इस केस में न्यायलय ने जम्मू कश्मीर सरकार को स्पष्ट आदेश दिए कि महिलाओं के पीआरसी पर 'विवाह तक वैध' लिखने बंद करे I परन्तु राज्य सरकार ने इस आदेश की पूरी तरह अनदेखी कर दी I
 
 
27 जनवरी 2005, को सर्कुलर नंबर. Rev (LB) 87/74 जारी कर कमिश्नर/सेक्रेटरी, रेवेन्यू डिपार्टमेंट/राजस्व विभाग के स्टेट सब्जेक्ट प्रमाणपत्र देनेवाले अधिकारी से कहा गया कि महिला के विवाह के बाद एक और प्रमाणपत्र दे कर यह स्पष्ट किया जाए कि उसने विवाह पीआरसी धारक से विवाह किया है या नहीं I यह नियम आने के बाद याचिकाकर्ता एक बार फिर न्यायलय गए, कोर्ट की फटकार लगने के बाद सरकार को मजबूरन 2 अगस्त 2005 को यह सर्कुलर हटाना पड़ा I
-ये सारी घटनाएँ एक बात स्पष्ट कर देती हैं कि कश्मीर घाटी के राजनेता, महिला हों या पुरुष, सभी राज्य की महिलाओं के दुश्मन ही हैं। अनुच्छेद 370 और 35 A के हवाले से साल दर साल महिलाओं के सभी मानवाधिकार, बुनियादी अधिकारों का यहाँ हनन होता रहा है. इसमें पीडीपी और एन सी दोनों राजनितिक दलों ने कंधे से कंधा मिलाकर काम किया।
 
 
आज जब अनुच्छेद 370 में के पुराने प्रावधानों को समाप्त कर नए प्रावधान के तहत भारतीय संविधान के सभी प्रावधान वहां लागू कर दिए गए हैं। जिसके तहत अनुच्छेद 370 और 35A के कारण हो रहे महिला अधिकारों के हनन पर रोक लगेगी. दिल्ली में लुटियंस जोन का मीडिया इस पुरे मुद्दे पर बुरी तरह से एक्सपोस हुआ है . “द वायर” जैसे पोर्टल दिल्ली में बैठकर महिलाधिकारों पर बड़े-बड़े लेख लिखते है। शेहला रशीद को ज्यादा से ज्यादा प्रमोट करते है क्योंकि वह अलगाववाद की बात करती है. लेकिन सुनंदा पुष्कर, दलित लड़की राधिका गिल और जम्मू यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर रेनू नंदा जिनके आस्तित्व को ही कश्मीर घाटी नकार देता है. जम्मू कश्मीर के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर में जो आज हालात खराब है उसका कारण दिल्ली और श्रीनगर के नेता जितने है उतने ही जिम्मेदार ऐसे पत्रकार है जो सच्चाई की नहीं केवल नैरेटिव की पत्रकारिता करते है जिसका सच से उतना ही सम्बन्ध होता है जितना उनका फायदा।