भारत में संसद और राष्ट्रपति सर्वोच्च हैं, इनके द्वारा आर्टिकल 370 में किया गया बदलाव असंवैधानिक कैसे हो सकता है
   03-सितंबर-2019
 
 
 
 
  
भारत में संसद सर्वोच्च है। संप्रभुता संसद में निहित है। उस संसद की शक्ति को कोई सीमित कर सकता है क्या? अनुच्छेद 368 के अन्दर उन्होंने संशोधन कर दिया बिना संसद की अनुमति के। साधारण संवैधानिक आदेश के द्वारा अनुच्छेद 368 का संशोधन कर उन्होंने कह दिया कि संसद द्वारा पारित कोई भी प्रावधान जम्मू कश्मीर में तब तक लागू नहीं होगा जब तक वहां की राज्य की सरकार की सहमति नहीं होगी। अर्थात एक राज्य की सरकार संसद से अधिक शक्तिशाली हो गयी। यह संवैधानिक था क्या ? राष्ट्रपति की शक्ति को सीमित किया जा सकता है क्या। 2002 से पहले जितने निर्वाचन आयोग भारत में आये, भारत के राष्ट्रपति के द्वारा जो निर्वाचन आयोग अधिसूचित किये गए उनको जम्मू कश्मीर में तब तक अधिकार नहीं मिलता था जब तक कि भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त राज्यपाल उसे पुनः अधिसूचित न करे। जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सुप्रीम है या भारत का राष्ट्रपति। जम्मू कश्मीर का संविधान सुप्रीम है, वहां की विधान सभा सुप्रीम है या भारत का संविधान। पिछले दिनों न्यायमूर्ति नरीमन ने अपने निर्णय में स्पष्ट बताया कि राज्य का संविधान भारत के संविधान के अधीन है। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान में साझा संप्रभुता का सिद्धांत नहीं है।
 
 
 
वास्तव में हमें यह बात समझ लेनी चाहिए कि 1954 का जो आदेश था वह असंवैधनिक था। भारत के संविधान के मूल ढ़ांचे के साथ छेड़-छाड़ था। यह सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारों को सीमित करता था। “टेक्स्ट ऑफ़ ओथ” बदलता था। यह राष्ट्रपति के अधिकारों को सीमित करता था। यह भारत के निवासियों को दो वर्गों में बांटने का काम करता था। “हम भारत के लोग” को 14 मई 1954 को दो वर्गों में बाँट दिया गया। एक वे जो जम्मू कश्मीर के निवासी हैं और एक वे जो जम्मू कश्मीर के निवासी नहीं हैं। “हम भारत के लोग” क्या दो हिस्सों में विभाजित हो सकते हैं ? इन सारे प्रश्नों के ऊपर चर्चा होनी चाहिये। आदेश क्र. 272 उन गलतियों का परिमार्जन था जो 1954 से लेकर 1965 तक की जाती रहीं। वास्तव में 65 साल में जो गलतियां हुईं उसी के बारे में सबको ध्यान दिलाया गया।
 
 
 
 
डॉ. कर्ण सिंह ने गोपनीय पत्र भेजा 1954 के आदेश से पहले और उस नोट में उन्होंने इन सब विषयों पर अपनी असहमति प्रकट की। उन्होंने उल्लेख किया कि कैसे यह असंवैधानिक है, गलत है। प्रजा परिषद् जो उस समय जम्मू कश्मीर की राष्ट्रवादी शक्तियों की भावनाओं को प्रकट करती थी उन्होंने राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 35ए सहित ये जो सब प्रावधान आप लागू करने की सोच रहे हैं यह भारत की एकता और अखंडता की पुष्टि करने वाले नहीं है बल्कि संविधान की मूलभावना और सर्वोच्चता को नष्ट करने वाले है। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मना कर रहे थे, डॉ. कर्ण सिंह मना कर रहे थे और चेतावनी दे रहे थे। जम्मू कश्मीर की देशभक्त जनता बार-बार कह रही थी कि आप असंवैधानिक काम कर रहे है। लेकिन नेहरु जी अपनी जिद पर अड़े थे जिसके कारण 1954 में संवैधानिक आदेश जारी हुआ। इस आदेश के द्वारा उन्होंने भारत के संविधान को जम्मू कश्मीर में जाने से रोक दिया। उन सारी गलतियों को ठीक किया गया है आदेश क्र. 272 के द्वारा।
 
 
 
 
 
अगर वर्तमान राष्ट्रपति को संवैधानिक आदेश 272 लागू करने की शक्ति नहीं थी तो फिर 1954 का आदेश लागू करने की भी शक्ति उनके पास नहीं थी। जिस प्रक्रिया से 1954 का आदेश आया उसी से 2019 का आदेश आया है। अंतर इतना है कि 1954 का आदेश भारतीय संविधान को रोकने के लिए आया जबकि 2019 का आदेश राज्य में भारत का संविधान ले जाने के लिए आया है।
 
 
 

 
 नेहरू के साथ जम्मू कश्मीर के तत्कालीन सदर-ए-रियासत कर्ण सिंह
 
 
 
अनुच्छेद 370 की आड़ में किये गये 1954 के आदेश का ही नकारात्मक प्रभाव है कि इतने वर्षों के अंदर अनुसूचित जनजाति को राजनैतिक आरक्षण नहीं मिला। उन्हें उनकी जनसंख्या के अनुसार आंका नहीं गया। अन्य पिछड़ा वर्ग को आज तक अधिसूचित नहीं किया। इसलिए उन्हें आरक्षण नहीं मिला। देश के अंदर लैंगिक असमानता की बात कोई सोच नहीं सकता था। लेकिन इसी देश के अंदर जम्मू कश्मीर राज्य ऐसा बना दिया जिसके अंदर जम्मू कश्मीर की बेटियां अपनी मर्जी से शादी नहीं कर सकतीं। अगर वे विवाह करती भी हैं तो वह अपने मौलिक अधिकारों से वंचित हो जाती हैं। वास्तव में अनुच्छेद 370 के अंतर्गत जिस व्यवस्था ने जन्म लिया वह व्यवस्था अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, महिला और जम्मू कश्मीर की आम जन की विरोधी थी। अनुच्छेद 370 ने केवल बाहर से आने वाले लोगों को प्रतिबंधित किया होता, लेकिन इसने तो जम्मू कश्मीर के लोगों को संवैधानिक और मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया।
 
 
 
 
वास्तव में यह बहस देश में खड़ी होनी चाहिये कि वह ऐसी कौन सी बात थी जिसके कारण वे अनुच्छेद 370 को बनाये रखना चाहते थे। वास्तव में अनुच्छेद 370 से उनको एक अधिकार मिलता था कि हम जो चाहें करें, हमको कोई पूछने वाला नहीं है। हम जो चाहे कानून लागू करें अथवा न करें, हम किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं। भारत के संविधान को लागू करना जरूरी नहीं क्योंकि यहाँ अनुच्छेद 370 है। जम्मू कश्मीर एक ऐसा राज्य है जहां पुलिस इस्पेक्टर भर्ती होता है और डीजीपी रिटायर होता है। ऐसे परिवार हैं जहां 15-16 आईएएस होते हैं। ऐसे परिवार हैं जिनमें सत्ता और प्रशासन की वंशवादी व्यवस्था स्थापित हो गयी है। वास्तव में यह कुछ व्यक्ति और कुछ परिवारों के हितों को पूरा करने वाली व्यवस्था चल रही थी। इस व्यवस्था को खत्म करके पहली बार भारत की संविधान व्यवस्था के अंतर्गत जम्मू कश्मीर के लोगों के मौलिक और संवैधानिक अधिकारों के संरक्षण के साथ-साथ देश के प्रगतिशील और कल्याणकारी कानूनों को राज्य में लागू करने अवसर मिला है। एक बेहतर और पारदर्शी संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत जीने का मौका हमें मिलेगा यह हमको समझने की आवश्यकता है।
 
 
 
 
 लद्दाख को क्यों बनाया अलग केंद्र शासित प्रदेश
 
 
 
लद्दाख की एक विशेष परिस्थिति है। लद्दाख का क्षेत्रफल बहुत बड़ा है लेकिन आबादी बहुत कम। चीन की महत्वाकांक्षाएं बहुत अधिक है। पाक करगिल के अंदर अपनी घुसपैठ करके अपनी मंशा प्रकट कर चुका है। इस सारे क्षेत्र को सम्भालना है। 59 हजार वर्ग किलोमीटर आज हमारे पास है। 1947 में ग्रेटर लद्दाख का एक बड़ा हिस्सा बल्तिस्तान का भाग पाकिस्तान ने हथिया लिया। गिलगित पाक के कब्जे में है। 42 हजार वर्ग किलोमीटर अक्साईचीन और शक्सगाम वैली चीन के पास है। लद्दाख का जितना हिस्सा है उसमें बहुत बड़ा हिस्सा 1 लाख 65 हजार वर्ग किलोमीटर में से 59 हजार वर्ग किलोमीटर भारत के पास है। 1 लाख 6 हजार किलोमीटर पड़ोसी देशों के अवैध कब्जे में है। इसका कारण यह है कि श्रीनगर में बैठकर लद्दाख और उसकी आवश्यकताओं को समझा ही नहीं गया। वह क्षेत्र जो लद्दाख से जुड़ा हुआ था वह हमसे छिन चुका था। कश्मीर से लद्दाख की सड़क 6 महीने बर्फ से ढकी रहती है।
 
 
 
 
लद्दाख की इस विशेष परिस्थिति के चलते उसे केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा 1947 में ही मिल जाना चाहिये था। लद्दाख के लोगों की यही भावना भी थी। लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन ने भी यही भावना व्यक्त की थी। उनका मानना था कि हमारा जम्मू कश्मीर के साथ ऐतिहासिक और भौगोलिक संबंध नहीं रहा। अगर आप हमें जोड़ना चाहते हैं तो या तो हमें स्वतंत्र व्यवस्था के अंतर्गत ले आइए या हमको पंजाब या हिमाचल के साथ जोड़ दीजिए। उस समय हिमाचल पंजाब का हिस्सा हुआ करता था। जो काम 1947 में हो जाना चाहिये था वह काम 2019 में हुआ। जम्मू कश्मीर के अंदर 72 साल में एक पूरी अव्यवस्था खड़ी हो गयी है। यह अव्यवस्था प्रशासनिक स्तर पर हुई है। अब हर प्रकार से उस अव्यवस्था को ठीक करना है। इसमें कुछ समय लगेगा। इसके लिये सभी को मिल-जुल कर काम करना होगा और धैर्य और विश्वास का परिचय देना होगा।