मई 1948, जब जम्मू कश्मीर जल रहा था और पंडित नेहरू मशोबरा-शिमला में माउंटबेटन कपल के साथ छुट्टी मना रहे थे
   08-सितंबर-2019
 
 
 
6 मई 1948 को पंडित नेहरू ने वेस्ट बंगाल के गवर्नर सी राजगोपालचारी को एक पत्र लिखा। जिसमें पंडित नेहरू ने तत्कालीन राजनीतिक परिस्थतियों की बात करते हुए लिखा- मैं आपको बता नहीं सकता कि आस-पास के हालात के चलते मैं कितना मायूस और खिन्न महसूस कर रहा हूँ। स्थितियों पर काबू पाना मुश्किल है, कई बार वो अपनी गति से चलती हैं। हमारी राजनीति ने नैतिक और असली चरित्र खो दिया है, हम अवसरवादी हो चुके हैं।
 
 
पत्र के अंत में नेहरू ने लिखा कि वो 13 मई से 17 मई तक छुट्टी मनाने के लिए शिमला के पास प्रसिद्ध पर्यटक स्थल मशोबरा जा रहे हैं। जहां वो एडविना और माउंटबेटन के साथ अकेले कुछ वक्त गुजारेंगे। फिर वो 18 से 23 मई तक दिल्ली रहेंगे, लेकिन उसके बाद वो फिर 2 दिन के लिए मसूरी जायेंगे, जहां उनको वल्लभभाई पटेल से मिलना था। फिर उसके 31 मई से 4 जून तक के लिए ऊटी चले जायेंगे।
 
 
1948 के मुश्किल हालात में पंडित नेहरू का ये शेड्यूल बेहद चौंकाने वाला है। एक ही पत्र में नेहरू देश की गंभीर राजनीतिक हालात पर चिंता व्यक्त कर रहे थे, उसी पत्र के अंत में नेहरू दिल्ली की गरमी से दूर अपनी लंबी छुट्टियों के शेड्यूल के बारे में जानकारी दे रहे थे।

 
 
याद रहे ये वो वक्त था। जब तमाम राज्यों के एकीकरण की प्रक्रिया अधर में थी, जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान के साथ युद्ध जारी था। यानि भारत कई मोर्चो पर गंभीर स्थिति से गुजर रहा था। खासतौर पर जम्मू कश्मीर में..। तत्कालीन रक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह से लेकर पाकिस्तान के कब्ज़े वाले जम्मू कश्मीर के विस्थापितों के प्रतिनिधि पंडित नेहरू से मिलने का समय मांग रहे थे। लेकिन नेहरू के पास उनसे मिलने का समय नहीं था।
 
तस्वीरें- शिमला के पास एडविना के साथ पंडित नेहरू

 
 

 
 
 
अप्रैल 1948, जम्मू कश्मीर में भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना के घुसपैठियों को पीछे धकेलने की कोशिश में जुटी थी। पाकिस्तान के साथ ये युद्ध 26 अक्टूबर 1947 में जम्मू कश्मीर में भारत के अधिमिलन के बाद से ही लगातार जारी था। कमज़ोर राजनीतिक इच्छाशक्ति के बावजूद भारतीय सेनाओं ने जम्मू कश्मीर के बड़े हिस्से को अपने कब्जे में लेने पर कामयाबी पा ली थी। इस बीच 1 जनवरी 1948 को भारत सरकार जम्मू कश्मीर के मामले में यूएन से दखल देने की भी अपील करने की ऐतिहासिक भूल कर चुकी थी। जहां कृष्णा मेनन के नेतृत्व में भारत का एक भारी-भरकम दल न्यूयॉर्क में यूएन की कार्रवाई का इंतजार कर रहा था। ऊधर जम्मू कश्मीर में शेख अब्दुल्ला की नज़र सत्ता का केंद्र श्रीनगर को बना महाराजा हरि सिंह को नीचा दिखाने और राजनीतिक फैसलों में पूछताछ न करने की लगातार हिमाकत करते जा रहे थे, जिसकी वजह राज्य में राजनीतिक अनिश्तिता का माहौल तैयार हो रहा था। जिसका असर राज्य में लड़े जा रहे युद्ध पर भी हो रहा था।
 
 
इस संबंध में बात करने के लिए तत्कालीन रक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह पंडित नेहरू से मिलने की लगातार कोशिश कर रहे थे। वो राज्य में चल रहे युद्ध से रणनीतिक चर्चा करना चाहते थे। ऐसी गंभीर स्थिति में सरदार की लगातार कोशिश के बावजूद भी पंडित नेहरू से मिलने में असमर्थ थे।
 
 
जवाब में 22 अप्रैल को सरदार बलदेव सिंह को नेहरू का एक पत्र मिला। जिसमें नेहरू ने लिखा कि- (अनुवाद) मुझे खेद हैं कि मैं पिछले कुछ दिनों से आपसे मिलने में असमर्थ हूं। मैं खासतौर पर कश्मीर की परिस्थितियों को लेकर चिंतित था और भविष्य के ऑपरेशन्स की तैयारियों के बारे में भी.........लिहाजा मैं पत्र लिख रहा हूं..”
 
 
 
नेहरू ने आगे इस पत्र में जम्मू कश्मीर में आगे की रणनीति के बारे में कुछ दिशा-निर्देश दिये, लेकिन तत्काल सरदार बलदेव सिंह से नहीं मिले।
 

 
 सरदार बलदेव सिंह को लिखे नेहरू के पत्र का अंश
 
ठीक उसी दौरान हैदराबाद भी भारत के एकीकरण के लिए चुनौती पेश कर रहा था। 15 अप्रैल 1948 को जम्मू कश्मीर और हैदराबाद की तत्कालीन परिस्थितियों को लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने तमाम राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक ब्रीफिंग पत्र लिखा, जिसका मजमून कुछ यूं था- “कश्मीर में हमने राजौरी पर कब्जा कर लिया है, ये बेहद स्वागतयोग्य खबर है। हमने एक बहुत बड़ी आबादी को आजाद कराने में कामयाबी पा ली है, जोकि वहां बेहद दर्दनाक हालात झेल रहे थे। हमें अभी ऑपरेशन की जानकारी नहीं मिली है, लेकिन प्राथमिक सूचनाओं के मुताबिक हमलावरों ने जाने से पहले राजौरी को तहस-नहस कर दिया है, शहरों को लूटा गया और भारी संख्या में मासूमों की हत्या कर दी हैं।” अपने इस पत्र में नेहरू ने यूएन में जम्मू कश्मीर पर सुनवाई की संभावना का जिक्र भी किया। इसके बाद नेहरू ने हैदराबाद की तत्कालीन परिस्थितियों के बारे में लिखा कि- हैदराबाद का मामला अब और गंभीर होता जा रहा है। इत्तेहाद-उल-मुसलमीन, उसके वॉलंटियर कॉर्प्स और रज़ाकार हैदराबाद के शहरों और ग्रामीण इलाकों को आतंकित कर रहे हैं।"
 
 

 
 मशोबरा में माउंटबेटन और ए़डविना के साथ पंडित नेहरू
 
 
गनीमत ही कहिये कि हैदराबाद का मामला सरदार पटेल की नीतियों के चलते सुलझ गया, लेकिन जम्मू कश्मीर का मामला क्यों अगले 70 सालों तक देश के लिए फांस बना रहा। इसका कारण आप पंडित नेहरू की “छुट्टी नीति” से आसानी से समझ सकते हैं।