कश्मीरी हिंदूओं के नरसंहार का इतिहास, 18 मई, जब इस्लामिक आतंकियों ने एक नौजवान और एक पुलिस ऑफिसर की नृशंस हत्या कर दी थी #KashmiriHinduExodus #30YearsInExile
   18-जनवरी-2020

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18 मई 1990, बात कश्मीर घाटी की है, घाटी में हिंदूओं पर हमले तेज़ हो चुके थे। हिंदू परिवार घाटी छोड़कर जम्मू बसना शुरू हो गये थे। बारामूला जिले काज़ीहामा इलाके में 26 साल का मनमोहन बचलू का परिवार पेशोपेश में था कि घाटी छोड़ें या अपने पुरखों की जमीन पर ही इस्लामिक आतंकियों का मुकाबला करें। परिवार में 67 साल के पिता, 56 साल की माता और 19, 23 और 25 साल की बहन थी। मनमोहन करनाह के पोस्टल डिपार्टमेंट में पोस्टल असिस्टेंट पद पर तैनात था। मई महीने में जब वो छुट्टी के लिए घर पर आय़ा तो ऑफिस के मुस्लिम साथियों ने आतंकियों ने मनमोहन के गांव जाने की सूचना पहले ही इस्लामिक आतंकियों को दे दी। आतंकियों ने करनाह से गांव तक मनमोहन का पीछा किया। जब वो घर पंहुचा तो उसका एक मुस्लिम दोस्त घर पर आया, जिसके साथ वो बचपन में खेला था, कूदा था। वो दोस्त मनमोहन को पास ही की चाय की दुकान पर चलते के लिए कहता है। बिना किसी शक और डर के मनमोहन अपने बचपन के साथ के साथ चाय की दुकान पर चल देता है। जब दोनों चाय की दुकान पर पहुंचते हैं, तो वहां कईं और आतंकी घात लगाकर मनमोहन का इंतजार कर रहे थे। मनमोहन के पास आते ही उन्होंने कईं गोलियां दाग दी और फरार हो गये। प्वाइंट ब्लैंक रेंज से गोली लगने के कारण मनमोहन बचलू की मौके पर ही मौत हो गयी। ये एक उदाहरण है 1990 के दशक में मुस्लिम दोस्तों और पड़ोसियों की गद्दारी का।
 
18 मई 1991, बारामूला, हिंदू पुलिस ऑफिसर की हत्या
 
 
एक साल बाद 18 मई 1991 तक घाटी में हिंदूओं पर हमले आम हो चुके थे, लाखों हिंदूओं ने अपना घर छोड़कर घाटी के बाहर डेरा जमा लिया था। इस आस में कि घाटी के हालात जल्द ठीक हो जायें तो वापिस अपने घरों को जा सकें। लेकिन हालात सुधरने के बजाय बिगड़ने लगे थे। यहां तक कि पुसिल फोर्सेस में तैनात पुलिस अधिकारी भी सुरक्षित नही थे। ऐसे ही एक उदाहरण है बारामूला जिले में उड़ी में जम्मू कश्मीर पुलिस के ऑफिसर मेहर सिंह का। जिनको भी आतंकियों ने शहीद कर दिया। मेहर सिंह स्टेशन पुलिस स्टेशन के पद पर तैनात थे। जिनको इस्लामिक आतंकियों ने किडनैप कर लिया और कई दिनों तक टॉर्चर करने के बाद गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद आम हिंदूओं में खौफ इस कदर बैठ गया कि जब जम्मू कश्मीर पुसिल के अधिकारी ही सुरक्षित नहीं हैं। तो उनकी जान कैसे सुरक्षित हो सकती है, लिहाजा कश्मीरी हिंदूओं का घाटी छोड़ना और तेज़ हो गया।
 
 
18 मई, 1992, मुस्लिम महिला और नाबालिग बेटी की बेरहम हत्या
 
 
घाटी में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के आतंकी पूरी घाटी में लगभग अपने आतंक की चपेट में ले चुके थे। स्थानीय प्रशासन इनके आतंक के सामने लाचार था। जेकेएलफ का एक कमांडर था मुश्ताक अहमद जरगर उर्फ मुश्ताक लटरम। जोकि रूबिया सईद के अपहरण में भी शामिल था। जरगर के खिलाफ तीन दर्जन से ज्यादा हत्याओं के केस दर्ज थे। जिनमें कई बड़े ऑफिसर्स की हत्या के केस भी शामिल थे। 15 मई 1992 को सुरक्षआबलों ने मुश्ताक जरगर को गिरफ्तार कर लिया। खबरों के मुताबिक इसमें सफा कदल, श्रीनगर की रहने वाली हाबला बेगम ने सिक्योरिटी फोर्सेस की मदद की थी।
 


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अपने कमांडर की गिरफ्तारी से घबराये आतंकियों ने जरगर की गिरफ्तारी के तीन दिन बाद हबला बेगम के घर पर हमला बोला और हबला बेगम के साथ उसकी नाबालिग बेटी को किडनैप कर लिया। जाने से पहले जेकेएलफ के आतंकियों ने हबला बेगम के घर में जमकर तोड़-फोड़ की और बाद में आग के हवाले कर दिया। इसके बाद जेकेएलफ आतंकियों ने हबला बेगम और नाबालिग बच्ची को बेहरमी से तड़पाते रहे। जिसके बाद आतंकियों ने दोनों की गोली मारकर हत्या कर दी।
 
 
इसके बाद जेकेएलएफ के आतंकियों को तो सज़ा नहीं मिल पायी। बल्कि बाजपेयी सरकार के दौरान कंधार प्लेन हाईजैक मामले में मुश्ताक अमहद जरगर को भी छुड़ा लिया गया था जिसने बाद में एलओसी के पास मुजफ्फराबाद में अल-उमर मुजाहिदीन नाम का आतंकी संगठन स्थापित किया औऱ कश्मीर में आतंकी हमलों में शामिल रहा।