1990 में कश्मीर के हालात बदतर हो चुके थे, इन हालात में भी दूरदर्शन कश्मीर और राष्ट्रवाद की तस्वीर लोगों तक पहुंचा रहा था। जेकेएलएफ जैसे आतंकी संगठन दूरदर्शन को
सांस्कृतिक हमला बताकर निशाना बना रहे थे। लस्सा कौल दूरदर्शन केंद्र के डायरेक्टर थे
आतंकियों ने दूरदर्शन के कर्मचारियों को मारने की धमकी दी। गवर्नर ने भी लस्सा कौल को सिक्योरिटी साथ रखने को कहा।
लेकिन लस्सा कौल को कश्मीर की हवा में जहर को पहचान नहीं पाये। वो बेहद शांत और नरम स्वभाव के थे, उनके इस व्यवहार ने हिन्दुओं के साथ कई मुसलमान दोस्त भी बनाये, लेकिन मुस्लिम कट्टरता की लहर के साथ उन्हें,टी.वी पर दिखाए जा रहे कार्यक्रमों के माध्यम से मुसलमानों पर एक सांस्कृतिक हमला शुरू करने के लिए जिम्मेदार ठहराया, इस्लाम के दुश्मन के रूप में पेश किया गया था। आतंकियों की मांग ये थी कि, जम्मू-कश्मीर में दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों में इस्लाम का ज्यादा प्रयोग हो न कि हिन्दुस्तान का।
शहर के बाहरी इलाके में बेमिना कॉलोनी में रहने वाले अपने बूढ़े और बीमार माता-पिता से लिए कौल ने टेलीविज़न सेंटर से निकले। उनके निकलने की खबर उनके किसी करीबी ने ही आतंकवादियों को दी। इस बात से अनजान की हत्यारे उनके आने का इंतज़ार कर रहे थे, वह बेमिना अपने घर पहुंचे जैसे ही वो गाड़ी से बाहर निकल कर दरवाज़े की और बढे, उसी वक्त उनके ऊपर दो आतंकियों ने गोलियों की बौछार कर दी, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। उनकी निर्मम हत्या ने न केवल सरकारी लोगों में बल्कि अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडित के मन में दहशत भर दी थी।
केंद्रीय गृह मंत्री और सूचना और प्रसारण मंत्री परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करने के लिए श्रीनगर आये। इस हत्या के बाद पुलिस की पकड़ में कुछ आतंकी आये जिसमे से एक ने हत्या की सारी सच्चाई बताई जिसमे जेकेएलएफ के आतंकी शौकत बख्शी को उनका हत्या में शामिल होने की बात कबूली,पूछताछ के दौरान खुलासा हुआ, कि कौल की हत्या साजिश सीमा पार पाकिस्तान में स्थित अमानुल्लाह खान के इशारे पर रची गयी थी।