2 जनवरी, 1991, कश्मीरी पंडित एएसआई ओंकार नाथ मर्डर-मिस्ट्री, जेकेएलएफ आतंकियों द्वारा नृशंस हत्या की कहानी जो आज तक अनसुलझी है
14 सितंबर 1989 में टीकालाल टपलू की नृशंस हत्या के बाद अगले एक साल में कश्मीर घाटी से लाखों कश्मीर हिंदुओं ने अपने पुऱखों की जमीन हमेशा के लिए छोड़ दी थी। राज्य में फारूख अब्दुल्ला की सरकार पूरी तरह से हिंदुओं को संरक्षण देने में नाकाम थी। हकीकत ये थी कि जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और दूसरे पाकिस्तान-परस्त इस्लामिक आतंकी संगठन बेखौफ घाटी में अपनी समानांतर सरकार चलाने की कोशिश में थे।
लेकिन कुछ हिंदू परिवार तमाम दबाबों के बावजूद भी आतंकियों के सामने झुकने को तैयार नहीं थे। पुलिस इंस्पेक्टर ओंकार नाथ वली ऐसे ही लोगों में से एक थे। आतंकी संगठन लगातार उनके निशाना बनाने की फिराक में थे। ओंकार नाथ वली अनंतनाग की जिला पुलिस लाइन में तैनात थे, परिवार की सुरक्षा को देखते हुए ओंकार नाथ ने अपने परिवार को जम्मू शिफ्ट कर दिया था। जबकि ओंकार नाथ अपनी ड्यूटी को निभाते हुए वेस्सू, अनंतनाथ में स्थित अपने घर पर टिके हुए थे। एक दिन ओंकार नाथ के किसी साथी ने ही जेकेएलएफ के आतंकियों को उनके आने-जाने का पूरा ब्यौरा सौंप दिया।
2 जनवरी, 1991 के दिन जेकेएलएफ के आतंकियों ने एएसआई ओंकार नाथ को अगवा कर लिया। पुलिस को जानकारी मिलने पर भी उनकी खोज के लिए कोई सर्च अभियान शुरू नहीं किया गया। इसके बाद ओंकार नाथ का कुछ पता नहीं चला, ना ही उनका पार्थिव शरीर मिला। माना गया कि आतंकियों ने ओंकार नाथ वली की गोली मारकर हत्या कर दी थी। ये मामला इसके बाद एक अजीब पहेली बनकर रह गया। जिसकी गुत्थी आजतक नहीं सुलझ पायी। न हत्यारों के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज़ हुई, न सज़ा मिली।
ओंकार नाथ के बाद उनकी पत्नी, एक बेटा और 2 बेटियां आज भी न्याय के इंतजार में हैं।