देश में ओबीसी को आरक्षण है 27%, जबकि जम्मू कश्मीर में सिर्फ 2%, आर्टिकल 370 की आड़ में कश्मीरी नेताओं के विश्वासघात का सच
   07-अक्तूबर-2019
 
 
 
 
देशभर में ओबीसी यानि अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण तय किया है। तमाम सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में एडमिशन के लिए ये लागू भी है। लेकिन जम्मू कश्मीर में ओबीसी, जिसे राज्य में कमजोर एवं वंचित वर्ग (सामाजिक जातियां) यानि Weak and Under privileged Classes (Social Castes) कैटेगरी के नाम से जाना जाता है, को सिर्फ 2 फीसदी आरक्षण दिया जाता है। जबकि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति द्वारा नियुक्ति में तो ये आरक्षण सिर्फ 1 फीसदी है।
 
 
जोकि न सिर्फ अन्य भारत में लागू आरक्षण की तुलना में, बल्कि राज्य की पिछड़ी जातियों के अनुपात के हिसाब बेहद कम है।
 
 
साफ है कि पिछले 70 सालों से ओबीसी के अधिकारों के साथ न सिर्फ खिलवाड़ होता रहा, लेकिन इससे ज्यादा हैरान करने वाली बात ये है कि लिबरल मीडिया ने भी इस सच को छिपाये रखा। न किसी पिछड़ा वर्ग अधिकारों के संगठन या फिर पिछड़ा वर्ग की राजनीति करने वाले राजनीतिक दल ने इसको उठाया।
 
 
 
 
अनुसूचित जातियों के साथ भी बड़ा विश्वासघात
 
 
जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जातियों के अधिकारों पर भी डाका डाला गया है। देश में अनुसूचित जातियों के लिए 15 फीसदी आरक्षण निर्धारित किया है, लेकिन जम्मू कश्मीर में एससी के लिए सिर्फ 10 फीसदी आरक्षण निर्धारित था। पदोन्नति में ये आरक्षण और भी कम सिर्फ 5 फीसदी है।
 
 
दरअसल कश्मीर केंद्रित नेताओं ने ओबीसी के अधिकारों को दबाये रखने के लिए कई खेल खेले। मसलन 2011 की जनगणना के दौरान जम्मू कश्मीर में ओबीसी आबादी की अलग से गणना ही नहीं की गयी।
 
 
 
हालांकि जम्मू कश्मीर के अन्य पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या का कोई प्रामाणिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन समाज कल्याण विभाग के 21 जातियों के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में कमजोर एवं वंचित वर्ग (सामाजिक जातियां) की जनसंख्या 12 फीसदी से ज्यादा है।
 
 
 
 
 
 
जम्मू कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2005 के अंतर्गत- सीधी भर्ती द्वारा नियुक्ति में आरक्षण
 
 
क) अनुसूचित जाति- 8%
ख) अनुसूचित जनजाति- 10%
ग) कमज़ोर और वंचित वर्ग (सामाजिक जातियां)- 2%
घ) नियंत्रण रेखा/अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे क्षेत्र के निवासी- 3%
ङ) पिछड़े क्षेत्र (आरबीए)- 20%
च) भूतपूर्व सैनिक- 6%
छ) शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति- 3%
 
 
 
 
यहां गौरतलब है कि आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर कई जातियों को कमजोर एवं वंचित वर्ग (सामाजिक जातियां) कैटेगरी में शामिल ही नहीं किया गया। इन जातियों में गिलकर, जोगी, मार्कबनी, चोपन, महेगर जैसी पिछड़ी जातियां शामिल हैं। यानि इन जातियों को भी वंचित वर्ग में शामिल कर लिया जाये तो ओबीसी की कुल जनसंख्या कहीं ज्यादा होगी।
 
 
 
आर्टिकल 370 के प्रावधानों को निष्प्रभावी बनाये जाने और राज्य के पुनर्गठन के बाद जम्मू कश्मीर में ओबीसी के लिए तय 27 फीसदी आरक्षण लागू हो गया है। लेकिन केंद्र सरकार के सामने चुनौती होगी कि ओबीसी की जनसंख्या का पहले एक निष्पक्ष मूल्यांकन किया जाये, फिर जातियों की अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए पात्रता का भी निष्पक्ष मूल्यांकन कर जातियों को एससी, एसटी और ओबीसी में शामिल किया जाये।