पोल-खोल: संयुक्त राष्ट्र, जनमत-संग्रह और कश्मीर- जानिए कैसे अलगाववादी 70 सालों से इन शब्दों के मायाजाल में गुमराह कर रहे हैं
   12-Feb-2019
 

 
1947 से लेकर आज तक यानि 2019, चाहे शेख अब्दुल्ला हों, या उसके बाद प्लेबीसिट फ्रंट बनाकर काम करने वाले मिर्जा अफजल बेग हों, गिलानी हों, अब्दुल गनी भट्ट हों या मसरत आलम, सबने केवल इतिहास के तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया है। ताकि जम्मू कश्मीर की युवा पीढ़ी कभी भी सत्य को ना जान सके और अलगाववाद के गढ़े झूठ से गुमराह होकर आतंकवाद की अंतहीन जकड़न में फंस जायेI हम अपने लेखों के माध्यम से एक-एक कर इन सभी झूठी बातों को बेनकाब करेंगे और आम जनता के सामने सत्य लेकर आएँगे।
 
 
संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों पर जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों ने झूठ बोला
 
 
आप कश्मीर में कभी भी सय्यद अली शाह गिलानी की कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस सुनेंगे या प्रेस रिलीज़ पढ़ेंगे तो उसमें संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का जिक्र जरूर होता है। इनमें वह कहता है कि भारत प्लेबिसिट के अपने वादे से मुकर रहा है और पूरी दुनिया की ताकतों को या देशों को यूनाइटेड नेशंस के प्रस्ताव जम्मू-कश्मीर में लागू करवाने चाहिए और इसके लिए अन्य देशों को भारत पर दबाव बनाना चाहिए।
 
यह बात कहते हुए गिलानी और उसके समर्थक हमेशा सेलेक्टिविज़्म के शिकार होते हैं, अलगाववाद के इस सेलेक्टिविस्म का शिकार कश्मीर घाटी की आम जनता हुई है।
 
 
अलगाववादी यह तो बताते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के तहत जम्मू कश्मीर में जनमत संग्रह किया जाना चाहिए, लेकिन वह बहुत चालाकी से इस बात को छिपा जाते हैं कि उसी प्रस्ताव में पहली शर्त ये है कि प्लेबिसिट से पहले पाकिस्तान को पूरे जम्मू कश्मीर से अपनी सेना और पाकिस्तानी नागरिकों को हटाना होगा I उसके बाद वहाँ पर तथाकथित आज़ाद जम्मू कश्मीर और आज़ाद जम्मू कश्मीर की सेना, जो पाकिस्तान ने अवैध रूप से बनाई थी, उस को खत्म करना था I इसके साथ-साथ पाकिस्तान के जम्मू कश्मीर पर आक्रमण की वजह से विस्थापित हुए लाखो लोग अपने घर लौटेंगे।
 
 
 
 
पाकिस्तान जब जम्मू कश्मीर से अपने सेना और जनता को बाहर निकाल लेगा, उसके पश्चात भारत अपनी सेना की एक निश्चित संख्या राज्य में रख सकता था क्योंकि राज्य का अधिमिलन भारत के पक्ष में था . यहाँ यह बात समझना जरूरी है कि पाकिस्तान को राज्य से उसकी सेना निकालने के लिए इसलिए कहा गया था क्योंकि जम्मू कश्मीर पर पाकिस्तान का अधिकार नहीं था. संयुक्त राष्ट्र के इस कदम से यह साबित होता है कि पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर अवैध रूप से कब्ज़ा किया था।
 
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान मुकरा था भारत नहीं-
 
भारत सरकार के साथ अपने पत्र व्यवहार में संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् की भारत पाकिस्तान के लिए बनायीं गयी समिति (UNCIP) यूएनसीआईपी के अध्यक्ष ने माना कि यदि पाकिस्तान अपनी पहली दो शर्तें पूरी करने में कामयाब नहीं होता है तो भारत पर जम्मू-कश्मीर में प्लेबिसाइट करवाने का किसी भी प्रकार का कोई दबाव नहीं होगा I
 
पाकिस्तान ने कभी भी पहली दो शर्तें पूरी नहीं की इसलिए भारत पर किसी भी प्रकार से कोई दबाव नहीं है कि वह जम्मू कश्मीर में प्लेबिसाइट करवाये I वैसे भी भारत ने इस विषय पर अपनी स्थिति 1956-57 में संयुक्त राष्ट्र में बिलकुल स्पष्ट कर दी थी I
 
 
 
गिलानी के अलगाववाद जम्मू के पत्रकार का धारदार जवाब
 
जम्मू के एक वरिष्ठ पत्रकार संत शर्मा ने एक बार अपने वक्तव्य में कहा कि गिलानी कश्मीर के साथ-साथ शेष भारत लोगों को गुमराह कर रहा है और उसने एक अलगाववाद की एक अजीब भाषा गढ़ी है जिसका न सिर है न पैर।
 
 
उन्होंने कहा कि जब हम हिंदी लिखते हैं तो हम अपना लेखन दाएं और से बायीं और ले जाते हैं जब हम उर्दू लिखते हैं तो हम बाई ओर से दाएं लिखते हैं, जापानी भाषा ऐसी है जिसमें ऊपर से नीचे की तरफ लिखा जाता है. लेकिन गिलानी ने एक नई भाषा का निर्माण किया है जिसमें ऊपर से नीचे से ऊपर जाया जाता है. आइये समझते है क्या है ये नयी भाषा-
 
 
संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार पाकिस्तान को पहली दो शर्तें पूरी करनी थी अर्थात जम्मू कश्मीर से पाकिस्तानी सेना का गमन और वहा से राज्य से विस्थापित लोगो का अपनी जगह पर लौटना । लेकिन जब दो शर्ते पाकिस्तान पूरी नहीं कर पाया तो तीसरी शर्त यानी प्लेबेसाईट कराना भारत के लिए जरुरी नहीं था।
 
लेकिन जब गिलानी अपनी अलगाववाद की भाषा में बोलना शुरू करते हैं तो वह नीचे से शुरु करते हैं तो पाकिस्तान के ऊपर की दोनों शर्तों को बुलाकर तीसरे नंबर के बिंदु यानी के प्लेबेसाइट पर ही फोकस करता है . पहले के ओ बिन्दुओ पर वो कुछ भी नहीं बोलता। वह सिर्फ भारत पर अपना केंद्र ध्यान केंद्रित रखते हैं जिसके तहत वह बोलते हैं कि भारत ने इन शर्तों को पूरा नहीं किया है और भारत का जम्मू कश्मीर पर अवैध कब्जा है जबकि सत्य यह है कि महाराजा हरी सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को पत्र पर हस्ताक्षर किए को किये, जिसे 27 अक्टूबर 1947 को तत्कालीन गवर्नर जनरल ने मान्य किया ओर जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया ।
 
यहाँ मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि हो सकता है कि जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा है जम्मू कश्मीर और भारत की संकल्पना में किसी भी प्रकार का अंतर नहीं है।
 
 
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