सुन लो बिकी हुई मीडिया- पुलवामा में हमारे जवान मरे नहीं, वे अमर बलिदानी है!!
   15-Feb-2019
 
NDTV , HT, Indian Express , WIRE , HINDU ,- सुन लो बिकी हुई मिडिया- पुलवामा में हमारे जवान मरे नहीं, वे अमर बलिदानी है!!
 
 
हर शब्द का एक अर्थ होता है, हर अर्थ में एक अभिव्यक्ति होती है और हर अभिव्यक्ति का एक अभिप्राय होता है . 'बलिदान' शब्द का भी एक विशेष अर्थ है, एक सम्मानजनक अर्थ है, कई बार , हमारे जवान बलिदान होते हैं, भारत के लिए, भारत वासियों के लिए अकथनीय शूरता और साहस का परिचय देते हैं, अपने प्राणो का बलिदान देते है. उनके इसी बलिदान के कारण आज हम एक स्वतंत्र भारत हैं, जिसकी एकता और सम्प्रभुता सुरक्षित है. इसी प्रकार आतंक और आतंकवादी इन शब्दों का भी अलग अर्थ है, और इनका कोई समानार्थी शब्द नहीं है. पर ऐसा लगता है की कुछ मिडिया वालों ने ये कसम खा ली है की वे हमारे जवानों के बलिदान को को महज़ मौत बता कर उनका भद्दा मज़ाक उड़ाते रहेंगे.
 
आज सारा देश सकते में है. CRPF के 44 जवान, कश्मीर के पुलवामा ज़िले में, CRPF की बस पर किये गए, अब तक से सबसे घातक आतंकवादी हमले में वीरगति को प्राप्त हो गए. आतंकवादियों के आत्मघाती दस्ते ने करीब 200 किलो RDX से भरी गाडी की टक्कर, CRPF की जवानों से भरी बस से कर दी. बस के परखच्चे उड़ गए, और बस में बैठे निहथ्थे जवान शहीद हो गए.
 
लेकिन NDTV , HT, Indian Express , WIRE , HINDU जैसे समाचार पत्रों ने अपनी बिकी हुई पत्रकारिता का नमूना देते हुए हर जगह headlines में जवान ''बलिदान हुए'' लिखने के बजाय जवान ''मारे गए'' यही लिखा !!
 
हमारे जवानो का ये अकथनीय बलिदान है. आतंकवादियों ने उन्हें इसलिए निशाना बनाया क्योंकि वे भारतीय सेना के सैनिक थे. वे किसी अचानक हुई दुर्घटना में नहीं मरे, बल्कि आतंकवादियों ने बाकायदा घात लगाकर, पूरी योजना बनाकर उनपर ये भयानक हमला किया .
 
लेकिन इन मीडिया वालों की बेशर्मी यहीं तक सीमित नहीं है . न केवल वे उनकी शहादत को महज़ मौत कहते हैं, बल्कि वे इसे ''हमला'' कहने से भी कतरा रहे हैं, कुछ तो ''आतंकवाद'' का नाम भी नहीं ले रहे हैं.
उदहारण के लिए -
 
 
 
 
NDTV की headline है “ CRPF के 40 आदमी एक धमाके में कश्मीर के पुलवामा में मारे गए, कई दशकों का सबसे बुरा हमला ”, यहाँ पर बहुत ही महत्वपूर्ण और सच्चे शब्द नहीं लिखे गए, जैसे, जवान या सैनिक शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया, CRPF के ''आदमी'' कहा गया, वैसे ही पहली लाइन में "हमला " शब्द के बजाय केवल ''धमाका'' कहा गया, मानो कोई गैस का सिलेंडर फट गया हो. बाद में हालाँकि ''हमला'' लिखा है, पर ''आतंकवाद'' का कहीं नमो निशान नहीं है. सो ये हमला किसने किया? क्या राह चलते दो ग्रुप आपस में भीड़ गए??
 
 
 
Hindustan Times झूठ लिखने और सच दबाने में एक कदम और आगे निकल गया . इतने भयानक आतंकी हमले की रिपोर्ट को एक आम दुर्घटना जैसा बनाने की कोशिश की है. HT की खबर में लिखा '''कश्मीर में विस्फोटकों से भरी गाडी CRPF के काफिले से जा भिड़ी, 40 जवान मारे गए.'' अपने पाठकों से इस से बड़ा धोखा और क्या हो सकता है? HT ने तो निर्लज्जता की हद्द कर दी क्योंकि "हमला" शब्द कहीं भी नहीं लिखा, ''गाडी भिड़ गई'' यही 40 जवानों की शहादत का कारण बताया है. आतंक या आतंकवादी इन शब्दों का भी कही ज़िक्र तक नहीं है.
  
The Hindu ने लिखा, "कम से कम 40 CRPF जवान कश्मीर के पुलवामा में IED के धमाके में मारे गये. एक बार फिर वही मक्कारी कि खबर को इतना सामान्य बना देना जिस से लोगों तक उसकी गंभीरता, उसकी भयावहता न पहुँचे. केवल किसी विस्फोट में मौतों का ज़िक्र, न शहादत की बात, न तो ये बताना कि हमले को अंजाम सुनियोजित तरीके से दिया गया!!! और आतंक या आतकवादियों का फिर कहीं नाम भी नहीं.
 

 
 
The Wire की headline थी “ कम से कम 42 CRPF के जवान उग्रवादियों के सुरक्षा बल पर किये गये घातक हमले में मरे”. यानि ये हमला तो है, पर आतंकवादियों का नहीं बल्कि उग्रवादियों का हमला है. अब अगर ये आतंकवाद नहीं, अगर ये आतंकवादियों का हमला नहीं तो और क्या है?? और फिर वही, इनके अनुसार जवान मरे गये, शहीद नहीं हुए.
 
इस तरह ये देशद्रोही आतंकवाद की गंभीरता और उसके खतरे को बिलकुल आम घटना जैसा बना कर बताते हैं और हमारे सैनिकों के बलिदान की अनदेखी करते हैं.
 
देश के विरोधी ऐसे मीडिया के कारण हमारी युवा पीढ़ी भटक रही है, और आतंकवाद को बढ़ावा मिल रहा है. ये ही असली गुनहगार हैं, ये हमारे देश की शांति, भाईचारा ,अखंडता और सम्प्रभुता के लिए खतरा हैं. इन चुनिंदा मीडिया वालों की यही गन्दी, स्वार्थी, बिकाऊ और विकृत सोच बुरहान वाणी जैसे आतंकवादियों के मानवाधिकारों की चिंता करती हैं पर बेशर्मी से हमारे जवानों के बलिदान को मौत में बदल देते हैं.
 
इसको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं कह सकते हैं, ये तो स्वतंत्रता का दुरूपयोग है. ये जनतंत्र नहीं बल्कि जनतंत्र के लिए खतरा हैं, ये पत्रकारिता नहीं, वरन भारत विरोधी ज़हर है, जो ये मीडिया वाले धीरे धीरे हमारी युवा पीढ़ी में फैला रहे हैं. ऐसे देश विरोधी मीडिया वालों का बहिष्कार करना चाहिए. सहिष्णुता एक सीमा तक ठीक होती है, यदि ऐसे बिके हुए, झूठे और स्वार्थी लोगों को नकारना ज़रूरी है वर्ण ये देश के भविष्य के लिए हानिकारक साबित होंगे .