@@INCLUDE-HTTPS-REDIRECT-METATAG@@ जानिये अशोक चक्र से सम्मानित ऐसे वीर की कहानी जिसने अपनी टुकड़ी के साथ पाकिस्तानी सेना से लड़कर 18000 फ़ीट की ऊंचाई पर फहराया तिरंगा

जानिये अशोक चक्र से सम्मानित ऐसे वीर की कहानी जिसने अपनी टुकड़ी के साथ पाकिस्तानी सेना से लड़कर 18000 फ़ीट की ऊंचाई पर फहराया तिरंगा

 
लांस हवलदार छेरिंग मोतुप ने -40 डिग्री सेल्सियस के बेरहम मौसम में 18000 फिट की ऊंचाई पर पाकिस्तानी सेना को खदेड़ा
 
 
लांस हवलदार छेरिंग मोतुप का जन्म जम्मू- कश्मीर के लद्दाख जिले के लेकर गाँव में हुआ। 23 जून 1965 को वो लद्दाख स्काउट्स के पेदल सैनिकों में भर्ती हुए। लांस हवलदार छेरिंग मोतुप जो की उस वक़्त सेक्शन कमांडर थे, उन्होंने अपने नेतृत्व में पाकिस्तानी सैनिकों के कब्ज़े से एक ऐसी पोस्ट को आज़ाद कराया जो की राजनैतिक और भौगोलिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपुर्ण थी।
  
सियाचिन ग्लेशियर की लड़ाई
 
1972 के शिमला समझौते में, सियाचिन क्षेत्र को बंजर और बेकार ज़मीन कहा गया और इस समझौते में भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन ग्लेशियर की सीमा निर्धारित नहीं की गयी थी। आपको बता दें की सियाचिन का तापमान -18 डिग्री से लेकर -60 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है ऐसे ख़राब मौसम में हर समय वहां सेना का मौजूद रहना मुमकिन नहीं था,इसलिए भारत ने पाकिस्तान पर भरोसा कर सियाचिन ग्लेशियर पर अपनी फौज को तैनात नहीं किया।
 
1983 में भारत को पता चला की पाकिस्तान अपने सैनिकों को सियाचिन पर तैनात करने के लिए साज़ो-सामान खरीद रहा है। इस बात का पता चलते ही भारतीय सेना ने पाकिस्तान से पहले सियाचिन पर रहने और वह के मौसम के लिए सभी प्रबंध करके,13 अप्रेल 1984 को ऑपरेशन मेघदूत के ज़रिये सियाचिन की पोस्ट के लिए चढ़ाई कर वहां तिरंगा फेहराया और पोस्ट को सुरक्षित किया।
 

 
 
सियाचिन में लदाख स्काउट्स के छेरिंग मोतुप
 
21 फरवरी 1984 के दिन पाकिस्तानी सैनिकों ने ख़राब मौसम का फायदा उठाया और सियाचिन में 18000 फ़ीट की उचाईं पर सिया ला नामक पोस्ट से थोड़ी ही दूर की चोटी जिससे भारत की पोस्टों को साफ़ देखा जा सकता है और हमला करने के लिए बेहद अच्छी पोस्ट जो की भारतीय सीमा में थी उस पर अवैध कब्ज़ा किया। जिसको दोबारा अपने हिस्से में लेने के लिए लदाख स्काउट्स के जवानों को भेजा गया।
 
-40 डिग्री सेल्सियस की हड्डियां गला देने वाली ठंड और 120 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से चलती हवाएं, इतने ख़राब मौसम में भी छेरिंग मोतुप ने हार नहीं मानी और अपनी टुकड़ी के साथ चोटी पर तिरंगा फहराने के लिए चढ़ गए। जैसे हो वो चोटी पर पहुंचे उन्होंने हमला शुरू कर दिया पाकिस्तानी सैनिकों को प्रतिक्रिया का कोई मौका नहीं मिला, कुछ देर की इस लड़ाई में लदाख स्काउट्स की जीत हुई और छेरिंग मुटुप ने उस चोटी पर भारत का झंडा फेहराया।
 
लांस हवलदार छेरिंग मोतुप ने अपने कर्तव्य को बखूभी निभाते हुए देशभक्ति और वीरता का उदाहरण दिया, जिसके लिए उन्हें अशोक चक्र के सम्मानित किया गया।
 
लांस हवलदार छेरिंग मोतुप ने अपने कर्तव्य को बखूभी निभाते हुए देशभक्ति और वीरता का उदाहरण दिया, जिसके लिए उन्हें अशोक चक्र के सम्मानित किया गया।