अनुच्छेद 35 A का सच - जम्मू कश्मीर में दलितों , शरणार्थियों और महिलाओ के लिए है शाप है
   25-फ़रवरी-2019

 


 
 
जम्मू कश्मीर को संविधान के अंतर्गत किसी भी तरह से विशेष राज्य का विशेष दर्जा प्राप्त नहीं है। जम्मू कश्मीर के भारत में विलय के बाद भारत का संविधान वहाँ पूरी तरह से लागू होना चाहिए था I यही संविधान निर्माताओं की इच्छा थी, इसीलिए अनुच्छेद 370 को अस्थायी प्रावधान कहा गया। इतना अस्थायी कि उसे समाप्त करने के लिए संसद में जाने की आवश्यकता भी ना पड़े , भारत का संविधान लागू होने के बाद केवल राष्ट्रपति के आदेश से ही इसे हटाने का प्रावधान किया गया था।
 
स्वतंत्रता के बाद जम्मू कश्मीर की जनता भारत में ठीक उसी तरह से रहना चाहती थी, जिस तरह से शेष भारत की जनता I आजादी के बाद देश के पहले राष्ट्रवादी आंदोलन, प्रजा परिषद, ने जम्मू-कश्मीर में यह पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया था। गले में डा राजेन्द्र प्रसाद जी का चित्र, एक हाथ में तिरंगा, दूसरे हाथ में भारत का संविधान लिए, जम्मू कश्मीर की जनता ने यह अद्भुत आंदोलन किया था।
 
किंतु 1952 में नेहरु जी ने शेख के अलगाववादी मंसूबों के सामने घुटने टेक दिए I जम्मू कश्मीर के लिए अलग झंडा स्वीकार कर लिया और जम्मू कश्मीर में भारत का पूरा संविधान लागू नहीं हो पाया I इसी नेहर- शेख़ के असंवैधानिक समझौते के विरोध में डा श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में देश ने अद्भुत आंदोलन किया।
भारत में संविधान और संसद सर्वोपरि है परंतु मेरा एक प्रश्न देश के समस्त बुद्धिजीवियों और राजनैतिक दलों से है—
 
 
 
क्या जम्मू कश्मीर की विधानसभा या वहाँ की सरकार भारतीय संविधान से ऊपर हो सकती है?
 
भारत की संसद द्वारा बनाया कोई भी जनकल्याणकारी निर्णय वहाँ लागू नहीं हो सकता जब तक वहाँ की सरकार सहमति ना दे।
 
नेहरू जी इन अलगाववादी माँगों के सामने पूरी तरह नतमस्तक हो गए। 14 मई 1954 को जम्मू कश्मीर में भारत का संविधान लागू करते समय 100 से अधिक अनुच्छेद वहाँ लागू ही नहीं किए और जो अनुच्छेद वहाँ लागू किये, उनमें भी अनेकों में संसद में चर्चा किए बिना संशोधन कर दिए गए गए
 
जिस संविधान में एक शब्द भी बदलने के लिए दोनों सदनों के लिए कैबिनेट के प्रस्ताव बनते हैं, बहस होती है, चर्चा होती है, तब कहीं जाकर राष्ट्रपति की अनुमति/ सम्मति से संविधान में संशोधन होता है
 
उस संविधान में अनुच्छेद 35 A जैसी एक विभाजनकारी प्रावधान बिना चर्चा बहस के केवल राष्ट्रपति के आदेश द्वारा जोड़ दी गई।
 
भारत के संविधान में केवल राष्ट्रपति के आदेश से एक नया अनुच्छेद जोड़ देना क्या संविधान सम्मत था या है??
 
इस तरह से नए अनुच्छेद को जोड़कर, देश के संविधान के प्रीअंबल / प्रस्तावना में समानता और न्याय की जो बात की गई है उसकी अनुच्छेद 35 A ने धज्जियाँ उड़ा दीं
 
स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा ने यह कल्पना की थी कि देश के लोग पूरी तरह से एक होंगे, उनकी अलग से कोई पहचान नहीं होगी। उसी देश में अनुच्छेद 35 A की वजह से भारत के ही नागरिक दो भागों में बँट गए, एक वे नागरिक जो जम्मू कश्मीर के स्थाई निवासी हैं और दूसरे वे जो स्थाई निवासी नहीं है
 

 
भारत के सिपाही जम्मू-कश्मीर में खून बहा सकते हैं, अपने प्राणों का वहाँ बलिदान दे सकते हैं लेकिन वहाँ की एक इंच जमीन भी वह खरीद नहीं सकते ना ही सरकार उन्हें वहाँ ज़मीन दे सकती है I उन बलिदानियों के बच्चे-विधवायें वहाँ बस नहीं सकते।
 
भारत के करदाताओं के पैसे से वहाँ सब सुख सुविधाएँ दी जा रही हैं लेकिन ये करदाता वहाँ के स्थाई निवासी नहीं हो सकते, वहाँ रह नहीं सकते हैं, ना ही वहाँ कोई व्यवसाय कर सकते हैं
 
देश में महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त हैं लेकिन विडंबना यह है कि जम्मू कश्मीर में यहाँ की स्थाई निवासी महिला, चाहे किसी भी धर्म से हो, यदि राज्य से बाहर के किसी व्यक्ति से विवाह करती है तो अपने राजनीतिक, शैक्षणिक और सम्पत्ति के अधिकारों से वंचित हो जाती है ।इनके बच्चे जम्मू कश्मीर में ही पैदा होने के बावजूद, अपनी माँ की संपत्ति के उत्तराधिकारी नहीं हो सकते हैं और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में जैसे मेडिकल या इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ नहीं सकते हैं l वे राज्य सरकार के अधीन किसी पद पर नौकरी नहीं कर सकते है और राज्य में विधानसभा और अन्य स्थानीय चुनाव ना तो लड़ सकते हैं और ना ही उनमे वोट कर सकते हैं
 
वहाँ दो लाख से ज्यादा पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी हैं, जो वहाँ 70 सालों से रह रहे हैं। वे भारत के नागरिक तो हैं, संसद में वोट तो कर सकते हैं , लेकिन विधानसभा और पंचायत में वो वोट नहीं डाल सकते हैं, जमीन नहीं खरीद सकते हैं, नौकरी नहीं कर सकते, यहाँ तक की मेडिकल या इंजीनियरिंग की पढाई तक नहीं कर सकते हैं ।
 

 
 
क्या बाबा साहब अंबेडकर का सपना यही था कि जम्मू कश्मीर में 65 सालों से रह रहे सफाई कर्मचारी आज भी मैला ढोने के लिए मजबूर हों ?
 
उनके बच्चे कितना भी पढ़ लिख जाएँ लेकिन वह जम्मू कश्मीर राज्य में केवल सफाई कर्मचारी ही बन सकते हैं
 
देश की सीमा और रक्षा में अभूतपूर्व योगदान देने वाले गोरखाओं के बच्चे केवल चौकीदार ही बनेंगे?
 
35 A के चलते आज जम्मू कश्मीर में नए उद्योग में नहीं आ पा रहे हैं ।टूरिज़्म की संभावनायें हैं, पर नये होटल नहीं बनते,क्योंकि वहाँ कोई पूँजी निवेश नहीं कर रहा है, इन्वेस्टमेंट नहीं आ रही। विकास की प्रक्रिया पूरी तरह से रुकी हुई है और दूसरी ओर इसी अनुच्छेद के कारण राज्य में अलगाववाद और आतंकवाद पनपा
 
यानी अनुच्छेद 35 A ने जहाँ एक और विकास की प्रक्रिया को रोका तो वहीं दूसरी और अलगाववाद और आतंकवाद के बढ़ाया I
अनुच्छेद ३५ A हटेगा तो राज्य के निवासी भी देश के साथ विकास के मार्ग पर कदम से कदम मिलाकर चल पाएँगे I
 
1954 के राष्ट्रपति के इस आदेश के कारण भारत के संविधान में संशोधन तो होता है लेकिन जम्मू कश्मीर को इसका लाभ नहीं मिल पाता है I जम्मू कश्मीर में पंचायती राज मजबूत नहीं हो पाता I ओबीसी को आरक्षण नहीं मिल पाता
 
अनुसूचित जनजाति को विधानसभा एवं पंचायती चुनावोंमें आरक्षण नहीं मिल पाता
 
बच्चों की सुरक्षा के लिए पोक्सो एक्ट और महिलाओं के रक्षा के लिया बने एंटी रेप कानून जम्मू कश्मीर में लागू नहीं हो पाते I
धारा 370 और 35 A चंद नेताओं का सुरक्षा कवच है और इसी धारा ने अलगाववाद की भावना को विकसित और मजबूत किया I
आज समय आ गया है कि एस सी, एस टी, ओ बी सी और महिलाओं, जम्मू कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ाने वाला, विकास के विरोधी आर्टिकल 35 A को समाप्त किया जाए
 
जम्मू कश्मीर में भारत का पूरा संविधान लागू हो , तिरंगा पूरे सम्मान से वहाँ लहराए , भारत की संसद और संविधान यह सर्वोपरि है, यह स्थापित करने का समय अब आ गया है।
 
 
 
जय भारत