6 फेज खत्म होने के बाद कितना सटीक है, “आयेगा तो मोदी ही” का नारा, क्या सच पर भारी है अति आत्मविश्वास- एक नजर
   13-मई-2019



 
आयेगा तो मोदी ही इस आत्मविश्वास के पीछे वज़ह क्या है ? रसिक लाल का गला भर आता है जब वह बताता है कि एक झोपड़ी में उसने जीवन गुज़र दिया,आज मोदी ने पक्का मकान बनबा दिया है ।घर में शौचालय बना दिया । देवरिया के रामसेवक प्रजापति कहते हैं कोई जात पात नहीं सिर्फ मोदी । मोदी नहीं तो और कौंन? कुछ उत्साही नौजवान कहते हैं कि मोदी ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। आज कहीं आतंकवाद है? हर घर मे बिजली पहुँची है, 22 घंटे लाइट होती है। ये इसलिए क्योंकि मोदी है तो मुमकिन है। 2019 के चुनाव में "मोदी "सबसे प्रभावी नारा बन गए हैं। कई मामलों में 2014 से भी ज़्यादा । 2014 के चुनाव में एन्टी इनकम्बेंसी की एक लहर थी ।यह चुनाव प्रो-इनकम्बेंसी के समर्थन में आम लोगों के बीच भरोसे और मोदी के खिलाफ प्रचार के बीच लड़ा जा रहा है। विपक्ष के पास अरिथमैटिक्स का मजबूत हथियार है जबकि बीजेपी के पास सिर्फ मोदी केमिस्ट्री और विकास का मॉडल। रोशन कुमार कहते हैं "यह चुनाव जात-समीकरण पर लड़ा जाने वाला आखिरी चुनाव होगा ।इस बार कोई जाति समीकरण काम नहीं कर रहा है और विपक्ष के पास मुद्दे नहीं है सिर्फ मोदी विरोध है। गरीबी की बात करने वाले नेता जानते हैं क्या गरीबी क्या है ? मोदी ने इसे जिया है ,वह गरीबों का दर्द समझता है। यानी जिस नैरेटिव से मोदी को परास्त करने की योजना थी उसे अधिकांश मतदाताओं ने लगभग रिजेक्ट कर दिया है।
 
2014 में मोदी लहर के वाबजूद बीजेपी को 31 फीसद वोट मिले थे लेकिन उसने 282 सीट जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। महज 13 राज्यों में गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी का यह करिश्मा चला था और मोदी 30 वर्षों के बाद पूर्ण बहुमत वाली सरकार दिल्ली में बनाने में कामयाब हुए थे । 2019 में मोदी देश के एक मजबूत प्रधानमंत्री के रूप में जनता के सामने हैं और दायरा 13 से बढ़कर 26 राज्यों को पार कर गया है। नफा-नुकसान का अंदाज़ा जनता को भी है इसीलिए भी लोग कहते हैं "आएगा तो मोदी ही "।
  
 
 
 
2014 के जीत हार का अंतर देखें तो अधिकांश सीटों पर बीजेपी ने 2 लाख से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की थी। आज अलग अलग राज्यों में लड़ रही अलग अलग पार्टियाँ क्या मोदी के खिलाफ लहर पैदा कर इस अंतर को भर पाएंगीं। जबकि इस बार हर कैंडीडेट के साथ मोदी वैल्यू एडिशन है जो उसे दूसरे कैंडिडेट के मुकाबले अपेक्षाकृत मजबूत बनाता है।
 
राहुल गांधी के लिए अपील बढ़ी है, लेकिन विश्वास उतना मजबूत नहीं हो पाया है। कांग्रेस अगर यूपी और बिहार में अपनी स्थिति मजबूत नहीं कर पाई तो यह पार्टी के प्रति भरोसे को डिगता है। प्रियंका गांधी का सक्रिय राजनीति में आना एक महत्वपूर्ण फैसला था लेकिन पूर्वांचल की इंचार्ज प्रियंका जिन्हें 40 सीट की जिम्मेदारी थी पूर्वांचल से ही गायब रही और कांग्रेस के प्रचार में दिल्ली से केरल तक पहुँच गई। यू पी और बिहार में गठबंधन के साथ कांग्रेस का मिकी माउस का गेम भी लोगों को रास नहीं आया । मोदी अबतक देश मे 200 से ज्यादा रैली कर चुके हैं । रैली और रोड शो करने में कांग्रेस भी भी पीछे नहीं है लेकिन कांग्रेस संभवतः लोगों से संवाद बनाने में असरदार साबित नहीं हुई है । हालांकि कई जगहों पर बीजेपी अति उत्साह में है, ज़मीनी कार्यकताओं को शायद यह एहसास है कि बगैर कुछ किये भी लोग वोट देने आएँगे और मोदी को जितायेंगे ।यह अति आत्मविश्वास चुनाव में धोखा भी दे सकता है ।