कैप्टेन अमित भारद्वाज – कारगिल युद्ध में वीरगति के 57 दिनों बाद शव मिला तब भी बन्दूक अपने हाथो में पकड़ी थी
   17-मई-2019
(कैप्टन सौरभ कालिया की खोज में निकले थे, बजरंग पोस्ट पर हुआ पाकिस्तानी फ़ौज से सामना )
 

 
 
14 मई 1999 में ऐसी रिपोर्ट्स थी कि कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तान ने घुसपैठ की है । इस बात का अंदेशा होने के बाद 14 मई , 1999 को कैप्टेन सौरभ कालिया पांच जवानो की पैट्रोल पार्टी के साथ निकले । 4 जाट की इस पैट्रोल पार्टी को सामरिक महत्व रूप से महत्वपूर्ण पोस्ट बजरंग पोस्ट तक पहुंचना था. भारी बर्फ़बारी की वजह से उस दिन पैट्रोल पार्टी बजरंग पोस्ट तक नहीं पहुँच पायी । अगले दिन जब वे पोस्ट तक पहुचने वाले थे तभी अचानक उन पर पाकिस्तानी सेना ने हमला कर दिया. पाकिस्तानी सेना चुपके से सर्दियों में यहाँ आकर बैठ गयी थी. सौरभ कालिया और उसक जवानों ने वापिस फायरिंग की, लेकिन थोड़ी देर में उनके पास जो असलाह था वो खत्म हो गया. इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने उनको घेर लिया और वे गिरफ्तार कर लिए गए ।
 
कैप्टन अमित भारद्वाज सर्च आपरेशन पर निकले
 
जब सौरभ कालिया की टीम लापता हो गयी , उस समय कैप्टन अमित भरद्वाज 30 जवानों की टीम के साथ उन्हें ढूंढने निकले. यह टीम जब बजरंग पोस्ट के पास पहुंची तो कैप्टेन अमित भारद्वाज को इस बात का आभास हुआ कि पाकिस्तानी घुसपैठिये यहाँ है और बड़ी संख्या में है । ऐसे समय में उन्होंने अपनी टुकड़ी की फारमेशन कुछ इस तरह से बनाने के आदेश दिए कि एक सुरक्षित स्थान से मौर्चा संभाला जा सके और नीचे बेस कैम्प तक पाकिस्तानी घुसपैठ की सूचना दी जा सके.
 

 
 
अकेले 10 पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार गिराया
 
अमित भारद्वाज ने अपनी टुकड़ी को थोडा नीचे उतरने के आदेश दिए और खुद एक जवान हवलदार राजबीर के साथ मोर्चा संभाला ताकि टुकड़ी को कवर फायर दिया जा सके. पाकिस्तानी सेना ने फायरिंग शुरू कर दी. पाकिस्तानी सेना पहाड़ पर ऊपर की तरफ थी फिर भी कैप्टेन अमित और हवलदार राजबीर ने पाकिस्तानियों को मुहतोड़ जवाब दिया. अमित के दोनों पैरो में गोलिया लगी थी लेकिन उसके बाद भी लड़ते हुए उन्होंने कम से कम दस पाकिस्तानी घुसपैठियों को मौत की नींद सुला दिया । 17 मई 1999 को अमित लड़ते -2 वीरगति को प्राप्त हुए. कैप्टेन अमित भारद्वाज का मृत शारीर 57 दिनों तक पहाड़ी पर पड़ा रहा । अमित के परिवार वाले इस बात को मानने को ही तैयार नहीं थे कि उनका बेटा अब जीवित नहीं है । 13 जुलाई , 1999 को युद्ध की समाप्ति के बाद अमित भारद्वाज का शव बरामद हो सका । हड्डिया कंपा देने वाली ठंड में किस तरह से हमारे देश के जवानो ने पाकिस्तानी सेना का डटकर मुकाबला किया होगा इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब उनका शव बरामद हुआ तब भी कैप्टेन अमित भारद्वाज ने अपनी बन्दूक हाथ में पकड़ी थी मानो दुश्मन को अभी भी वो चुनौती दे रहे हो ।
 
कैप्टेन अमित भारद्वाज जयपुर के रहने वाले थे । मात्र 27 वर्ष की उम्र में उन्होंने देश के अप्रतिम बलिदान दिया. अपने स्कूल के दिनों में सरल स्वभाव के कारण अपने टीचर्स और साथ पढने वाले छात्रो में काफी पापुलर थे । भारतीय सेना में आने के बाद उन्होंने अपने बलिदानों के सुविख्यात जाट रेजिमेंट ज्वाइन की । उनकी पहली पोस्टिंग पिथोरागढ़ थी । कारगिल युद्ध शुरू होने से कुछ समय पहले ही कारगिल के काकसर में उनकी पोस्टिंग हुई थी ।