जम्मू कश्मीर की 5 चुनौतियां, अगर मोदी सरकार बनीं तो सबसे पहले इनसे निपटना होगा
   22-मई-2019

 
कल यानी 23 मई को 15 वीं लोकसभा के चुनावी नतीजे घोषित होने जा रहे हैं । एग्जिट पोल्स की मानें तो भारतीय जनता पार्टी अकेले नहीं, तो एनडीए की सरकार बनने जा रही है । इसबार लोकसभा चुनाव में जम्मू कश्मीर से जुड़े विषय छाए रहे। चाहे वो पुलवामा हमला हो, बालाकोट एयर स्ट्राइक हो या अनुच्छेद 35 A और 370 । जहाँ मोदी और अमित शाह ने पूरे देश में घूम-घूम कर इन दोनों अनुच्छेदों को हटाने की बात की, वहीं महबूबा मुफ़्ती और उमर अब्दुल्ला के तेवर भी धमकियों से भरे रहे। अलगाववादियों पर कसता शिकंजा और आतंकवादियो पर कठोर प्रहार जैसे विषय भी चुनावों में खूब उछले। आईये देखते हैं, आने वाले समय में भाजपा, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वो सत्ता में वापसी कर रही है, के सामने क्या चुनौतिया रहेंगी। जिसका निपटारा मोदी सरकार को सबसे पहले करना होगा।
 
1-अनुच्छेद 35 A – अपने घोषणा पत्र में भाजपा ने अनुच्छेद 35 A को हटाने की घोषणा की है। हालाँकि इस घोषणा का जम्मू कश्मीर के सबसे छोटे हिस्से, यानि कश्मीर की, नेशनल कांन्फ्रेंस और पीडीपी ने विरोध किया है । इस बात का विरोध करते –करते यह दोनों दल संविधान तक का विरोध करने लगे । जिसका देश में बहुत प्रतिकार हुआ । ऐसे में भाजपा का कोर वोटर अब चाहेगा की अनुच्छेद 35 A पर किया अपना वायदा भाजपा पूरा करे। अनुच्छेद 35 A एक ऐसा अनुच्छेद है जो भारतीय संविधान में बिना संसद की स्वीकृती के जोड़ दिया गया। इस अनुच्छेद के विरोध में उच्चतम न्यायालय और उच्च नायायालय जम्मू कश्मीर में आधे दर्जन से ज्यादा याचिकयें दायर की जा चुकी हैं । इस अनुच्छेद के चलते जम्मू कश्मीर में रहने वाले दलित, ओबीसी, महिलायें और गोरखा समुदाय के लोग प्रत्यक्ष रूप से पीड़ित हैं । और यदि विकास की दृष्टि से देखा जाए तो पूरे राज्य पर इस अनुच्छेद का विपरीत असर पड़ रहा है। जम्मू कश्मीर में रह रहा यही पीड़ित वर्ग इस अनुच्छेद को न्यायालय में ले गया है । यदि बहुमत से भाजपा की सरकार आती है तो उन्हें इस अनुच्छेद के विषय पर कोई न कोई ठोस कदम उठाना ही पड़ेगा ।
 
 
 
2-अनुच्छेद 370 – भाजपा आज से नहीं भारतीय जनसंघ के जमाने से इस अनुच्छेद का विरोध करती आई है। इस अनुच्छेद का विरोध जम्मू कश्मीर में स्थानीय लोगो ने प्रजा परिषद् आन्दोलन के रूप में शुरू किया था। जिसे राष्ट्रव्यापी पहचान डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दिलवाई थी । प्रजा परिषद् आन्दोलन में राज्य के हिन्दू और मुस्लमान, दोनों की यह माँग थी कि जम्मू कश्मीर में शेख अब्दुलाह की संविधान विरोधी हरकतों पर रोक लगे और अनुच्छेद 370 जैसे विभेदनकारी अनुच्छेद से छुटकारा मिले। तब से लेकर आज तक यह अनुच्छेद संविधान में ज्यो का त्यों बना हुआ है। इस अनुच्छेद के चलते जम्मू कश्मीर में बहुत सारे विकासवादी कानून और नीतियाँ लागू नहीं हो पाती हैं जिसका नुकसान सीधा सीधा जम्मू कश्मीर में रहने वाली जनता पर पड़ता है। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि इस अनुच्छेद को कैसे हटाया जाए, क्योंकि कश्मीर घाटी की पार्टियां इस अनुच्छेद को आधार बनाकर स्थानीय कश्मीरी लोगो के बीच आपनी राजनीति चमकाती हैं ।
 
3- आतंकवाद के खिलाफ जीरो -टॉलरेंस – आतंकवाद के प्रति भाजपा सरकार का रुख कठोर और साफ़ रहा है। ऐसा कहा जा रहा है कि इस रुख का असर आतंकवाद प्रभावित कश्मीर घाटी पर महसूस किया जा सकता है। लेकिन पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आता है। पिछली सरकार के समय भी उरी ब्रिगेड पर हमला , पठानकोट हमला , सुन्जुवान सेना कैम्प पर हमला, लगातार तीन हमले किये। इसके जवाब में भारत ने पहली बार पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर में घुसकर आतंकी ठिकानों पर हमला किया। इस हमले पर भारत का कहना था कि उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया लेकिन आतंकी ठिकानों को नष्ट किया है। लेकिन इसके बाद भी पुलवामा जैसे बड़ा हमला पाकिस्तान ने कराया, जिसकी वजह से पूरे भारत में नाराज़गी थी। हालाँकि मोदी सरकार ने कठोर निर्णय लेते हुए अबकी बार पाकिस्तान के बालाकोट में हवाई हमला किया और बालाकोट के महत्वपूर्ण आतंकी ठिकानों को नष्ट कर दिया। मोदी के इस निर्णय का भारत में जबर्दस्त समर्थन था लेकिन इस हमले ने मोदी या आने वाली किसी भी सरकार के सामने यह चुनौती खड़ी कर दी है कि यदि पाकिस्तान आगे से फिर कोई आतंकी हमला करेगा तो भारतीय सरकार का रुख क्या होगा? और यही चुनौती संभावित भाजपा सरकार के सामने भी होगी कि कैसे आतंकी हमलों की पुनरावृति को रोके और यदि फिर भी कोई पाकिस्तानी हमला होता है तो उसका कैसे कठोर जवाब दे। बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद यदि किसी भी सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ कठोर कदम उठाने में कोई भी आना कानी की तो देश में उसका बड़ा विरोध होगा।
 
4-अलगाववाद पर शिकंजा – पिछली मोदी सरकार में कश्मीर घाटी में यदि किसी के बुरे दिन आये तो वो हैं अलगाववादी। मोदी सरकार ने इन अलगाववादियों पर जो शिकंजा कसा है उसका समर्थन कश्मीर में भी है। स्थानीय आम कश्मीरी जनता भी चाहती है कि अलगाववाद के नाम पर जो छलावा उनके साथ किया जा रहा है उसे खत्म किया जाए। इसके साथ ही साथ जमात ए इस्लामी की देश विरोधी कारस्तानियों पर भी रोक लगी है। स्थानीय लोगों का सिर्फ एक ही मानना है कि यह कारवाही आधे अधूरे में नहीं रुकनी चाहिए, नहीं तो अलगाववादी और जमात फिर से स्थानीय लोगो की जिंदगी दूभर कर देंगें। तो आने वाली सरकार से कश्मीर घाटी और शेष भारत के लोगों की यह आशा होगी कि पिछली सरकार द्वारा की गयी कार्यवाहियाँ किसी नतीजे पर पहुँचें ।
  
5-पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर के शरणार्थियो की माँगों का निपटारा – जम्मू कश्मीर का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज पाकिस्तान के कब्जे में है जिसे पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर कहा जाता है। 1947 में पाकिस्तानी हमले के चलते बड़ी संख्या में पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर से हिन्दू और सिख अपनी जान बचाकर राज्य और देश के दूसरे हिस्सो में चले गए थे। आज इनकी संख्या लगभग १५ लाख है। इन लोगों की माँगों की पूर्ती को भी भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में रखा है। पिछ्ली सरकार में हालाँकि कुछ राहत इन लोगों को मिली है, लेकिन 70 वर्षो से दर बदर भटक रहे इन लोगो की बहुत से समस्याएँ आज भी ज्यों की त्यों बनी हैं । जिनके समाधान की अपेक्षा भी आगामी सरकार से रहेगी ।