( याचिका देखने और उस पर हस्ताक्षर करने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे )
पंकज गुप्ता ने जम्मू कश्मीर नाउ से बातचीत करते हुए बताया कि समाजकार्य की अपनी पढ़ाई के दौरान मैंने सामाजिक न्याय की अवधारणा को पढ़ा और समझा जिसके अनुसार समाज के दमित और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए संविधान कार्य करता है। लेकिन जम्मू कश्मीर में यही संविधान कैसे दलितों और महिलाओ के साथ भेदभाव कर सकता है।यह बात मेरे लिए बड़ी विचित्र थी. इसके बाद मैंने थोड़ी और छानबीन की तो यह जानकर मेरे होश ही उड़ गए कि यह विभेदनकारी अनुच्छेद बिना संसद की स्वीकृति के ही संविधान में जोड़ दिया गया है। यही से मैंने निर्णय लिया कि इस विषय पर लोगो में जागृति लाने की जरुरत है और मैंने यह याचिका दायर की। इस याचिका को मिल रहे जन समर्थन से पंकज उत्साहित है.
हम आपको बताते चले कि अनुच्छेद ३५ ऐ को लेकर इस समय उच्चतम न्यायालय और जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में अनेक याचिकाएं दायर की जा चुकी है। इसमें राधिका गिल जैसे एक दलित छात्रा भी शामिल है जो राज्य स्तरीय एथलीट है लेकिन राज्य में उसे कोई सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती सिवाय सफाईकर्मचारी के, तो दूसरी और जम्मू यूनिवेर्सिटी की प्रोफ़ेसर रेनू नंदा भी शामिल है जो अपने बच्चो के अधिकारों को लेकर संघर्षरत है.