जम्मू कश्मीर संविधान सभा: क्यों बनी, क्या था इसका उद्देश्य? लेफ्टिस्ट प्रोपगैंडा का सटीक जवाब
   20-अगस्त-2019
 
 
बहुत से लोगों के मन में प्रश्न आता है कि केन्द्र से अलग जम्मू कश्मीर के लिये संविधान सभा का गठन क्या केवल जम्मू कश्मीर के लिए ही था। इसके उत्तर के लिए हमें थोड़ा और पीछे जाना होगा। वास्तव में जम्मू कश्मीर के विलय की जो प्रक्रिया है वह बाकी राज्यों की विलय की प्रक्रिया से अलग नहीं थी। कुछ लोग इसे ‘यूनीक’ बताते हैं, बाकियों से अलग बताते हैं, ऐसा नहीं था। अलग परिस्थितियाँ थीं। ऐसी बहुत सारी भीतरी और बाहरी ताकतें थी जो अपनी भूमिका निभा रहीं थीं जिनके कारण अधिमिलन में देरी हुई थी। आज उनकी चर्चा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह एक विधिक प्रक्रिया थी जिसके ऊपर हमें आज अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
 
 
 
जम्मू कश्मीर 26 अक्टूबर 1947 को भारत के डोमिनियन के अंदर शामिल हुआ। उसी अधिमिलन पत्र (इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन) के ऊपर हस्ताक्षर किये गये जिसके ऊपर बीकानेर, पटियाला, मैसूर, कोचीन एवं ट्रावनकोर, या किसी और राजा ने किये थे। एक स्टैंडर्ड इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन था। तीन विषयों के लिए विलय हुआ था तो केवल जम्मू कश्मीर ही नहीं, सब राज्यों का विलय ही तीन विषयों के लिए हुआ।
 
 
 
 
कुछ लोग मानते हैं कि महाराजा अनिर्णय की स्थिति में थे इसलिए 12 अगस्त को पाकिस्तान के साथ स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किये थे। स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर अनिर्णय के कारण नहीं थे। जैसे ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ का स्टैंडर्ड डाक्युमेंट था वैसे ही ‘स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट’ भी स्टैंडर्ड डाक्युमेंट था। स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट का उद्देश्य दूसरा ही था। बहुत सारी सेवाएं जैसे डाक-तार, टेलीफोन, रेलवे, नागरिक आपूर्ति आदि का उल्लेख अधिमिलन पत्र में न होने के कारण उनको बनाये रखने के लिये अलग से समझौता किये जाने की आवश्यकता थी। यह हर राज्य के लिये अलग था। कश्मीर सहित अनेक राज्यों की सेवाएं भारत और पाकिस्तान, दोनों के साथ जुड़ी थीं। इसलिये सामान्य सेवाएं बनाये रखने के लिये यह आवश्यक था। अधिमिलन से इसका कोई संबंध नहीं था। जब तक भारत और पाकिस्तान का संविधान नहीं बन जाता तब तक विभिन्न राज्यों को आपस में डोमिनियन के साथ अपने संबंधों को कायम रखने के लिए स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने थे। हर राज्य ने स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट पर साइन किया। जम्मू कश्मीर ने भी किया । अंतर केवल इतना था कि जम्मू कश्मीर को भारत और पाकिस्तान दोनों से करना पड़ा क्योंकि सड़क रेल, टेलीग्राफ, डाक और तार विभाग और अनेक प्रकार के सामान की आपूर्ति पाकिस्तान के साथ थी। इसी प्रकार अनेक प्रकार के विषय भारत के साथ थे।
 
 
 
जम्मू कश्मीर के महाराजा ने जब अपना स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट भेजा तब भारत डोमिनियन की सरकार ने उनको कहा कि एक बार यहां आइए और बातचीत करिए। वास्तव में स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट ये अनिर्णय के कारण नहीं था। 26 अक्टूबर 1947 का निर्णय जो विलय को लेकर था वह समाप्त हुआ और उस पर महाराजा ने हस्ताक्षर किये। 27 अक्टूबर को माउंटबेटन ने उसको स्वीकार किया। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर भारत बन गया।
 
 
 
 
माउंटबेटन ने उसके साथ एक पत्र लिखा परन्तु उसकी वैधानिकता पर प्रश्नचिन्ह है। लार्ड माउंटबेटन ने पत्र में कहा कि मेरी सरकार ने ऐसा तय किया है कि जहां पर भी किसी भी प्रकार का प्रश्न उत्पन्न होता है वहाँ जनता की इच्छा जानकर ही निर्णय किया जायेगा। ‘विशेज ऑफ द पीपल’ की बात कही। महाराजा ने उसका कोई उत्तर नहीं दिया। आपने प्रस्ताव दिया, मैंने स्वीकार नहीं किया। यह अधिमिलन की स्वीकृति में शामिल नहीं है। यह पत्र उसके अतिरिक्त है। इसे स्वीकार करना महाराजा की बाध्यता थी भी नहीं, क्योंकि भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में इसका कोई उल्लेख नहीं था।
 
 
 
 
ए जी नूरानी जैसे बहुत सारे लोग पत्रों को लेकर, भाषणों को लेकर उनको लीगल डाक्युमेंट मानकर बहुत सारे नेरेटिव गढ़ते रहे हैं। ऐसे लोगों को समझ लेना चाहिए कि लीगल डाक्युमेंट डिस्कशन नहीं होते हैं। मीटिंग के अंदर बहुत सारे डिस्कशन होते हैं, पत्र लिखे जाते हैं, भाषण दिये जाते हैं, समय-समय पर उनमें परिवर्तन होता रहता है। लीगल डाक्युमेंट वह होता है जिन पर सहमति होती है, जिनको संवैधानिक तौर पर लागू किया जाता है। लार्ड माउंटबेटन का पत्र लीगल डाक्युमेंट नहीं था। बाध्यकारी नहीं था।
 
 
 
 
जम्मू कश्मीर की संविधान सभा बनेगी यह निर्णय हुआ 20 सितम्बर 1947 को, ‘नेगोशिएटिव कमेटी ऑफ प्रिंसली स्टेट्स’ और ‘ड्राफ्टिंग कमेटी’ के बीच हुई चर्चा के आधार पर, जिसमें यह निर्णय जम्मू कश्मीर के विलय के पहले हो चुका था। विलय 26 अक्टूबर को हुआ। जिस समय देश आजाद हुआ सरदार पटेल के सामने बहुत बड़ा प्रश्न था कि 550 से अधिक रियासतों का जल्दी से जल्दी एकीकरण किया जाय। नहीं तो अनेक प्रकार के विवाद उठेंगे। उन्होंने एक रास्ता निकाला कि तीन विषयों के लिए सबका अधिमिलन अथवा विलय किया जाय। इसके बाद ‘नेगोशिएटिव कमेटी ऑफ प्रिंसली स्टेट्स’ के विमर्श में चार महत्वपूर्ण निर्णय हुए। पहला निर्णय था कि भारत के संविधान की निर्माण प्रक्रिया में रियासतें भी भागीदारी करेंगी और दस लाख की आबादी पर एक प्रतिनिधि रियासतों से आये। जम्मू कश्मीर की जनसंख्या 40 लाख थी इसलिए वहाँ से चार प्रतिनिधि आये।
बहुत सारे राज्य ऐसे थे जिनकी जनसंख्या कुछ हजार या कुछ लाख ही थी। ऐसे राज्यों का एक समूह बना दिया गया। इसके लिए कुछ राज्यों का परस्पर विलय (मर्जर) कर नयी इकाइयां बनायी गयीं। कुछ रियासतों का उनकी सहमति से ब्रिटिश प्रान्तों (प्रोविन्सेज) के अंदर विलय किया गया। बार-बार यह सवाल खड़ा किया जाता है कि एक्सेशन हुआ किन्तु मर्जर नहीं, वास्तव में जम्मू कश्मीर इतना बड़ा राज्य था कि उसका विलय किसी अन्य रियासत में नहीं हो सकता था, वहीं उसकी भौगोलिक स्थिति ऐसी थी कि किसी अन्य रियासत का उसके अंदर विलय होना भी संभव नहीं था। पटियाला और आस-पास की छोटी-छोटी रियासतें परस्पर विलय कर ‘पेप्सू’ बन गयी थीं। राजस्थान के अंदर ‘राजस्थान यूनियन ऑफ स्टेट्स’ बन गया, सौराष्ट्र में ‘सौराष्ट्र यूनियन ऑफ स्टेट्स’ बना।
 
 
तो विलय की प्रक्रिया केवल राज्यों की सुविधा से परस्पर एक दूसरे के साथ या प्रोविंसेस के साथ होने वाला मर्जर था, इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं।