जम्मू-कश्मीर, गले की नस या नैरेटिव ! चौकीदार मोदी ने तर्क बदल दिया है
   22-अगस्त-2019
 जम्मू कश्मीर में पाकिस्तानी षडयंत्रो पर भारत का वार
 
 

 
 
 
(विनोद मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार)
 
जर्जर माली हालात के बीच कश्मीर -कश्मीर करके पाकिस्तानी हुकूमत ने अपनी गरीब जनता को गुमराह करने का एक और मौका ढूंढ लिया है । 70 साल से पाकिस्तान के हुक्मरानों और फौज के निशाने पर "भारत" होता था, पर आज आरएसएस और मोदी इनके निशाने पर हैं और आरोप इस बार मानवाधिकार हनन नहीं धारा 370 और 35 A है। जो पाकिस्तान अब तक कश्मीर का भारत में विलय को नहीं स्वीकारता उसे भारत के संविधान के धाराओं से क्या लेना देना ? कल अगर भारत के लोग भारत के विभाजन के मसौदे (1947 ) को मानने से इंकार कर दे फिर पाकिस्तान की हुकूमत और फौज का क्या तर्क होगा ? मेजर मस्तगुल (आतंकवादी ) से लेकर मुशर्रफ तक कश्मीर ,भारत के खिलाफ पाकिस्तान के प्रोपगैंडा और नैरेटिव का कारगर हथियार रहा है जिसकी बदौलत पाकिस्तान की हर हुकूमत कभी अपनी उम्र पूरा करती रही है कुछ फौज के बूटों के नीचे रौंदी जाती रही है । लेकिन आज भारत में कुछ डाइनेस्टी पत्रकार और नेता कश्मीर को लेकर सेंसेशन बना रहे हैं। उनकी इस उत्तेजना में जमीनी सच्चाई कम और नैरेटिव ज्यादा है और वे पाकिस्तान के प्रोपगैंडा फॉर्मूले को पुख्ता बना रहे हैं। यानी आने वाले दिनों में मोदी सरकार को कश्मीर की हालात से जूझने में कोई परेशानी हो न हो लेकिन ख़ानमार्केट और ल्युटियन गैंग पाकिस्तान के डॉन अखबार,बीबीसी से लेकर वाशिंगटन पोस्ट तक सुर्खियां बनाते रहेंगे।
 
 
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मुहम्मद कुरैशी दुनिया के हर पाकिस्तानी एम्बेस्सी में कश्मीर शेल खोलकर भारत के खिलाफ नैरेटिव फैलाना चाहते हैं। 130 अरब डॉलर के कर्ज में डूबे पाकिस्तान के लिए अच्छा तो यह होता पहले पाकिस्तान में बसे हिन्दू ,अहमदिया मुसलमान ,शिया, बलूची, बंगाली और बिहारी मुहाजिर को मानवाधिकार देकर उन्हें नागरिक होने का सम्मान देता फिर कश्मीर के लोगों के मानवाधिकार की चिंता करता। लेकिन उन्हें कश्मीर के नाम पर दूकान चलानी है और वे इसे बेचते रहेंगे। जस्टिस काटजू कहते हैं आखिर पाकिस्तान में कश्मीर का क्या कनेक्शन है ,क्या यह मदीना का इलाका है जो बिखर गया है या फिर मोहम्मद शाह रंगीला ने पाकिस्तान से आकर यहाँ सल्तनत बनायीं थी। अगर कनेक्शन सिर्फ इस्लाम है फिर बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग नहीं होना चाहिए था? यह कनेक्शन सिर्फ बालादस्ती का है जहाँ वर्षो से पाकिस्तान इस गलतफहमी में है कि आज़ादी के नाम पर अलगाववाद खड़ा करके वो कश्मीर हड़प सकता है।
 
 
जम्मू कश्मीर और लद्दाख एक मिनी इंडिया है. भारत की हज़ारों साल की सांस्कृतिक परंपरा का केंद्र रहा है। सनातन और बौद्ध परम्परा यहाँ के जर्रे जर्रे में रची बसी है। दर्जनों धार्मिक मान्यता वाले लोग 50 से ज्यादा भाषा और बोली बोलते हैं। जिनकी अपनी अलग पहचान लेकिन मस्कुलर पालिसी के कारण कश्मीर में कुछ लोगों ने सियासत से लेकर संसाधन पर कब्ज़ा बना लिया और बाकी हिस्से को अलग थलग छोड़ दिया। पूर्व मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ़्ती कहती है "हमने रेकन्सीलेशन की पालिसी पर जोर दिया और 11000 पत्थरबाजों को एमनेस्टी दिलाई। हमने केंद्र सरकार से एकतरफा युद्धविराम का एलान कराया। हमने हीलिंग टच पालिसी को जारी रखा ".लेकिन इसका जवाब उनके पास नहीं है कि क्यों उनके ही गृह जिले में बुरहान वानी खतरनाक आतंकवादी बनता है और कश्मीर में शरिया कानून लागू करवाने के लिए बन्दूक उठता है? मेहबूबा शायद ठीक ही कहती होगी लेकिन वो भूल गयी कि जम्मू कश्मीर का मतलब कश्मीर का सिर्फ चार जिले नहीं है और मसला श्रीनगर के डॉन टाउन का नहीं है।
 
 
श्रीनगर में बैठे मुठ्ठी भर सियासतदानो के लिए कश्मीर चार जिलों से आगे कभी नहीं बढ़ा। रियासत के हर पीड़ित आम अवाम का आंसू पोछना और उनके लिए हल ढूँढना उनकी जिम्मेदारी थी तो क्या उन्होंने कश्मीर से पलायन कर गए लाखो कश्मीरी पंडितो की सुध लेने की कभी कोशिश की? टेंटो और झोपड़ियो में रह रहे पीओजेके से आये हजारो निर्वासित परिवारों की सुध लेने की उन्होंने कभी जहमत उठायी? रियासत के दलित परिवारों को पिछले 70 वर्षों में मुख्यधारा में लाने की? क्या कभी कश्मीर के लीडरों ने कोई पहल की ? उनके बच्चे शिक्षा और सरकारी नौकरी के लिए लालायित थे । लेकिन कश्मीर के हर सियासतदां का दावा है धारा 370 और धारा 35 A समाप्त करने से कश्मीर की पहचान ख़तम हो जायेगी ! यानी अगर कुछ जिलों के कुछ लोगों की बालादस्ती नहीं चली तो फिर कश्मीर का कोई मतलब नहीं है।
 
 
कश्मीर में नैरेटिव वाले पत्रकारों के लिए अभी काफी मसाला है। कुछ खानदानी पत्रकारों का दावा है तीन पूर्व सीएम् हिरासत में है। राहुल और प्रियंका गांधी दावा कर रही है कि लोगों के अधिकार छिन गए हैं। शहरों में कर्फ्यू और हिंसा की खबरे रोज आ रही है। यह सब खबर इसलिए बन रही है क्योंकि पाकिस्तान में इमरान खान इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस को जिम्मेदार मानता है और यह बात कांग्रेस और दूसरी जमातों को सूट करती है। पिछले 14 दिनों में कश्मीर में कोई भी बड़ी वारदातें नहीं हुई हैं और न ही किसी की जान गयी है, कुछ जगहों को छोड़कर प्रतिबन्ध का असर बाज़ारो में कही नहीं दीखता है, यह बड़ी खबर है। और होनी भी चाहिए। लेकिन 2009 में कांग्रेस समर्थित उमर अब्दुल्ला के शासन में कुछ दिनों की हड़ताल में 130 बच्चे मारे गए। महीनो कारोबार ठप्प रहा ,बाजार बंद रहे। तब यह बड़ी खबर नहीं होती थी। 2004 से 2011 कांग्रेस के शासन में हर साल हुर्रियत नेता गिलानी साहब का हड़ताली कैलेंडर निकलता था और महीनो कश्मीर में बाजार बंद रहते थे। सैकड़ो पुलिस /जवान और पथरबाज़ मारे जाते थे तब यह बड़ी खबर नहीं होती थी लेकिन आज ये बड़ी खबर है क्योंकि इस समस्या को प्रधानमंत्री मोदी ने जड़ से ख़त्म करने की पहल की है।
 
 
एक निर्वाचित सरकार के विवेक और इच्छशक्ति पर निर्भर है कि वो बनने वाली हालात को कैसे सँभाले ? कैसे लोगों की जान माल की सुरक्षा हो ? कैसे समाज में जहर फ़ैलाने वालों के असर को काम किया जाय। इसमें किसी भी तरह का नैरेटिव अपराध की श्रेणी में आना चाहिए। किसी के सेट फॉर्मूले से कश्मीर मसले का हल नहीं हो सकता है । दिल्ली की बड़ी भूलों को सुधारने की कोशिश इंदिरा जी ने भी की थी। धारा 370 को बेअसर करके कश्मीर को मुख्या धारा में लाने की उन्होंने भी कोशिश की थी। कश्मीर के सबसे कद्द्वार मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला वर्षों तक जेल में रहे थे लेकिन कांग्रेस के बाद के प्रधानमंत्रियों ने इस पहल को आगे नहीं बढ़ाया। आज़ाद भारत की तीन पीढ़ियों ने कश्मीर की साजिश और नैरेटिव के चलते 60,000 से ज्यादा अपने अज़ीज़ों को खोया है। कुछ लोगों के लिए यह मसाला हो सकता है कुछ लोगों के लिए कश्मीर दुकान से ज्यादा नहीं है लेकिन भारत के हर आम आवाम के लिए यह बड़ी समस्या है जिससे निजात मिलनी चाहिए।