"1990 में घाटी से कश्मीरी पंडितों को बीजेपी और जगमोहन ने भगाया था", J&K के हालात पर कांग्रेस का घिनौना आरोप, पत्रकार भी आये समर्थन में
   04-अगस्त-2019
 
 
शनिवार को जम्मू कश्मीर के ताजा़ हालात पर बयान देते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने 1990 में कश्मीरी हिंदूओं को घाटी से भगाने का जिम्मेदार बीजेपी, आरएसएस और तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन को ठहराया। मौजूदा हालात में आतंकी हमलों की आशंका के बाद पर्यटकों से घाटी छोड़ने की एजवायज़री को 1990 के कश्मीरी हिंदू पलायन से जोड़ते कांग्रेस नेता ये बयान दिया। दरअसल कांग्रेस का हमेशा से यहीं मानना रहा है कि कश्मीरी हिंदूओं को आतंकवाद या अलगाववादियों द्वारा की गयी हत्याओं, नरसंहारों या फिर बलात्कारों के चलते नहीं बीजेपी-आरएसएस की साजिश के चलते घाटी से बाहर निकाला गया था। गुलाम नबी आजाद ने एक बार फिर उसी बयान को दोहराते हुए कहा-  "जिस तरह से श्रीनगर के एनआईटी के स्टूडेंट्स के लिए बसें PROVIDE कराईं गयी, उन्हें EVAQUATE करने के लिए तो मुझे याद आया 90 का दृश्य। इसी तरह से जब यहां बीपी सिंह की सरकार SUPPORTED BY बीजेपी थी और उस वक्त के चीफ मिनिस्टर फारूख अब्दुल्ला की मर्जी के खिलाफ बीजेपी ने जगमोहन को भेजा। फारूख अब्दुल्ला ने उस वक्त कहा कि आप हमारी मर्जी के खिलाफ गवर्नर भेज दे रहे हैं। अगर आपने ऐसा किया तो मैं इस्तीफा दूंगा। लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने उस वक्त वीपी सिंह पर दबाव डाला और जगमोहन को भेजा। फारूख अब्दुल्ला साहब ने प्रोटेस्ट में...हमारी साझा सरकार थी, हमारे भी मंत्री थे...तो कांग्रेस-एनसी ने प्रोटेस्ट में इस्तीफा दिया और गवर्नर रूल हुआ और हमारे कश्मीरी पंडितों को...जिसके लिए कांग्रेस को 30 बरस से गालियां पड़ती हैं..ये उस वक्त की एनडीए गवर्मेंट...उस वक्त ने इसी तरह से बसे प्रोवाइड की थीं, ट्रक प्रोवाइड किये थे और हजारों की तादाद में, लाखों की तादाद में कश्मीर पंडितों को जम्मू लाया गया और आज तक हमें कश्मीर की तारीख पर..कश्मीर पर कलंक लगा कि हमारे कश्मीरी पंडित भाई और बहनें उस वक्त निकाले गये वहां से और आजतक वापस नहीं गये।"
 
 
देखिए बयान का वीडियो-
 
 
 
 
 
सिर्फ कांग्रेस नहीं कांग्रेस द्वारा पाले गये कई पत्रकार भी पिछले 30 सालों से इसी प्रोपगैंड़ा का चलाते रहे हैं। इनमें से एक जाने-माने पत्रकार हैं पंकज पचौरी के। आपको बता दे कि पंकज पचौरी कांग्रेसी नेता सुरेश पचौरी के भाई हैं और एनडीटीवी में सालों तक प्रौपगैंडा पत्रकारिता करने के बाद इस मुकाम तक पहुंचे की वो 2 सालों तक मनमोहन सिंह के प्रेस सलाहाकार बने। पंकज पचौरी भी लगातार कश्मीरी हिंदूओ के पलायन को जगमोहन की साजिश करार देते रहे हैं। एक बार फिर पंकज पचौरी ने भी गुलाम नबी आजाद की तरह मौजूदा हालात को 1990 के हालात से जोड़ते ट्वीट किया।
 
 

 
 
ये कश्मीरी हिंदूओं के पलायन का सिलसिलेवार सच-
 
 
 
दरअसल 1989 तक कश्मीर घाटी के हालात पूरी तरह बिगड़ चुके थे। पाकिस्तान परस्त दर्जनों आतंकी संगठनों घाटी में समानांतर सरकार चलाना शुरू कर चुके थे। इन संगठनों ने जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट मुख्य था। केंद्र में राजीव गांधी की सरकार के दौरान ही जेकेएलएफ के आतंकियों ने कश्मीरी हिंदूओं पर हमले शुरू कर दिये थे। जगमोहन की तैनाती राज्यपाल के तौर पर 19 जनवरी 1990 को हुई। लेकिन इससे पहले और जगमोहन के शुरूआती दिनों में हालात काबू से बाहर आ चुके थे। ये है कुछ सिलसिलेवार घटनाओं की कहानी--
 
 
 
⦁ 14 सितंबर 1989- पंडित टीकालाल टपलू की हत्या, टीकालाल कश्मीर घाटी के प्रमुख राष्ट्रवादी नेता थे। लेकिन आतंकियों ने सबसे पहले उन्हें निशाना बनाकर अपने इरादे साफ कर दिये।
 
 
⦁ 4 नवंबर 1989, टपलू की हत्या के मात्र सात सप्ताह बाद जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गयी। सन 1989 तक पं० नीलकंठ गंजू- जिन्होंने मकबूल बट को फांसी की सजा सुनाई थी- हाई कोर्ट के जज बन चुके थे। वे 4 नवंबर 1989 को दिल्ली से लौटे थे और उसी दिन श्रीनगर के हरि सिंह हाई स्ट्रीट मार्केट के समीप स्थित उच्च न्यायालय के पास ही आतंकियों ने उन्हें गोली मार दी थी। इस वारदात से डर कर आसपास के दूकानदार और पुलिसकर्मी भाग खड़े हुए और खून से लथपथ जस्टिस गंजू के पास दो घंटे तक कोई नहीं आया।
 
 
⦁ 4 जनवरी सन 1990  को स्थानीय उर्दू अखबार में हिज्बुल मुजाहिद्दीन ने बड़े बड़े अक्षरों में प्रेस विज्ञप्ति दी कि - "या तो इस्लाम क़ुबूल करो या फिर घर छोड़कर चले जाओ."
 
 
 
⦁ 5 जनवरी सन 1990 की सुबह गिरिजा पण्डित और उनके परिवार के लिए एक काली सुबह बनकर आयी। गिरजा की 60 वर्षीय माँ का शव जंगल में मिला उनके साथ बलात्कार किया गया था, उनकी आंखों को फोड़ दिया गया था, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके साथ गैंगरेप के बाद हत्या की बात सामने आई. उसके अगली सुबह गिरजा की बेटी गायब हो गयी जिसका आजतक कुछ पता नहीं चला।
 
 
⦁ 7 जनवरी सन 1990 को गिरजा पण्डित ने सपरिवार घर छोड़ दिया और कहीं चले गये, ये था घाटी से किसी पण्डित का पहला पलायन, घाटी में पाकिस्तान के पाँव जमना, घाटी में हिज्बुल मुजाहिद्दीन का राज और भारत सरकार की असफलता और जिन्ना प्रेम ने कश्मीर को एक ऐसे गृहयुद्ध में धकेल दिया था, जिसका अंजाम बर्बादी और केवल बर्बादी थी।
 
 
⦁ 19 जनवरी सन 1990 को सभी कश्मीरी पण्डितों के घर के सामने नोट लिखकर चिपका दिया गया - "कश्मीर छोड़ो या अंजाम भुगतो या इस्लाम अपनाओ."
 
 
 
 
⦁ 19 जनवरी सन1990,इन सब बढ़ते हुए विवादों के बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री फ़ारुख अब्दुल्ला ने इस्तीफा दे दिया और प्रदेश में राज्यपाल शासन लग गया. तत्कालीन राज्यपाल गिरीश चन्द्र सक्सेना ने केंद्र सरकार से सेना भेजने की संस्तुति भेजी. लेकिन तब तक लाखों कश्मीरी मुसलमान सड़कों पर आ गये, बेनजीर भुट्टो ने पाकिस्तान से रेडियो के माध्यम से भड़काना शुरू कर दिया, स्थानीय नागरिकों को पाकिस्तान की घड़ी से समय मिलाने को कहा गया, सभी महिलाओं और पुरुषों को शरियत के हिसाब से पहनावा और रहना अनिवार्य कर दिया गया. बलात्कार और लूटपाट के कारण जन्नत-ए-हिन्द, जहन्नुम-ए-हिन्द बनता जा रहा था. सैकड़ों कश्मीरी हिंदुओं की बहन बेटियों के साथ सरेआम बलात्कार किया गया फिर उनके नग्न बदन को पेड़ों से लटका दिया गया.
 
 
 
⦁ "19 और 20 जनवरी 1990 की कश्मीर घाटी की सर्द रातों में मस्जिदों से एलान किये गए कि सभी कश्मीरी पंडित कश्मीर छोड़ कर चले जायें, अपनी पत्नी और बेटियों को भी यहीं छोड़े । हम अपने छह माह पहले अपने खून पसीने से बनाये मकान, दुकान और खेत ,बगीचे छोड़कर मुश्किल से जान बचाकर भागे , 1500 मन्दिर नष्ट कर दिए गए लगभग 5000 कश्मीरी हिन्दुओ की हत्या की गई । ठंडे स्थान पर रहने के कारण कई कश्मीरी हिन्दू दिल्ली की मई जून की गर्मी सहन नही कर सके और मारे गए । केम्पों में सांप बिच्छु के काटने से कई लोग मारे गए ।"
 
⦁ 23 जनवरी 1990 को 235 से भी ज्यादा कश्मीरी पण्डितों की अधजली हुई लाश घाटी की सड़कों पर मिली, छोटे छोटे बच्चों के शव कश्मीर के सड़कों मिलने शुरू हो गये, बच्चों के गले तार से घोंटे गये और कुल्हाड़ी से काट दिया गया महिलाओं को बंधक बना कर उनके परिवार के सामने ही सामूहिक बलात्कार किया गया, आँखों में राड घुसेड़ दिया गया, स्तन काट कर फेंक दिया, हाथ पैर काट कर उनके टुकड़े कर कर फेंके गये, मन्दिरों को पुजारियों की हत्या करके उनके खून से रंग दिया इष्ट देवताओं और भगवान के मूर्तियों को तोड़ दिया गया.
 
 
 
⦁ 24 जनवरी सन 1990 को तत्कालीन राज्यपाल ने कश्मीर बिगड़ते हालात देखकर फिर से केंद्र सरकार को रिमाइंडर भेजा लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री कार्यालय से कोई जवाब नहीं आया उसके बाद राज्यपाल ने विपक्ष के नेता राजीव गाँधी को एक पत्र लिखा जिसमें कश्मीर की बढ़ती समस्याओं का जिक्र था, उस पत्र के जवाब में भी कुछ नहीं आया.
 
 
 
⦁ 26 जनवरी सन 1990 को भारत अपना 38 वाँ गणतंत्र दिवस मना रहा था उस समय कश्मीर के मूलनिवासी कश्मीरी पण्डित अपने खून एवम् मेहनत से सींचा हुआ कश्मीर छोड़ने को विवश हो गये थे, वो कश्मीर जहाँ की मिट्टी में पले बढ़े थे उस मिट्टी में दफन होने का ख्वाब उनकी आँखों से टूटता जा रहा था. 26 जनवरी की रात कम से कम 3,50000 हजार कश्मीरी पण्डित, ये सिर्फ एक रात का पलायन है इससे पहले 9 जनवरी, 16 जनवरी, 19 जनवरी को हज़ारों लोग अपना घर बार धंधा पानी छोड़कर कश्मीर छोड़कर जा चुके थे, पलायन करने को विवश हो गये. 29 जनवरी तक घाटी एकदम से कश्मीरी पण्डितों से विहीन हो चुकी थी लेकिन लाशों के मिलने का सिलसिला रुक नहीं रहा था. 2 फरवरी सन 1990 को राज्यपाल ने साफ साफ शब्दों में लिखा -
 
"अगर केंद्र ने अब कोई कदम ना उठाये तो हम कश्मीर गवाँ देंगे."
 
 
इस पत्र को सारे राज्यों के मुख्यमंत्री, भारत के प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता राजीव गांधी के साथ साथ बीजेपी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी को भी भेजा गया, पत्र मिलते ही बीजेपी का खेमा चौकन्ना हो गया और हज़ारों कार्यकर्ता प्रधानमंत्री कार्यालय पहुँच कर आमरण अनशन पर बैठ गये, राजीव गाँधी ने प्रधानमंत्री से दरख्वास्त की जल्द से जल्द इस मुद्दे पर कोई कार्यवाही की जाये.
 
 
 
⦁ 6 फरवरी सन 1990 को केंद्रीय सुरक्षा बल के दो दस्ते अशांत घाटी में जा पहुँचे लेकिन उद्रवियों ने उनके ऊपर पत्थर और हथियारों से हमला कर दिया. सीआरपीएफ ने कश्मीर के पूरे हालात की समीक्षा करते हुए एक रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेज दी. तत्कालीन प्रधानमंत्री एवम् गृहमंत्री चन्द्रशेखर ने इस रिपोर्ट पर गौर करते हुए राष्ट्रपति को भेजते हुए अफ्स्पा लगाने का निवेदन किया. तत्कालीन राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन ने तुरन्त कार्रवाई करते हुए AFSPA लगाने का निर्देश दे दिया।