"सिर्फ कश्मीर वैली के नेता ही क्यों परेशान हैं आर्टिकल 370 और 35A के हटने की संभावना से, जम्मू या लद्दाख के क्यों नहीं !!"
   04-अगस्त-2019
 
 
जम्मू कश्मीर को लेकर पिछले कुछ दिनों से अफवाहों का बाजार गर्म है. अफवाहें इतनी फैलीं कि जम्मू कश्मीर के लोगों से ज्यादा नेता घबराये हुए हैं। लेकिन मज़ेदार बात यह है कि जितने चिंतामग्न नेता हैं, उनमें से कोई भी जम्मू या लद्दाख से नहीं है, सभी कश्मीर घाटी से हैं, जो राज्य का सबसे छोटा हिस्सा है. तो ऐसा क्या हो गया है जिससे राज्य के इस सबसे छोटे हिस्से के बड़े-बड़े नेताओं की नींद हराम हो गयी है, वे बैचेन हो गए हैं, कभी प्रेस कांफ्रेंस कर रहे हैं, तो कभी राज्य के गवर्नर से मिलने दौड़े जा रहे हैं.
 
 
ये सब करने के बाद कश्मीर वैली के दर्जनों नेता आखिरकार फारूख अब्दुल्ला के आवास पर इकठ्ठा हुए। इसमें फारूख अब्दुल्ला के अलावा उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, सज्जाद लोन, शाह फैसल और मुज्जफर बेग समेत वैली के तमाम पूर्व मंत्री और सांसद मौजूद थे। तस्वीरों में सबके चेहरे मुरझाये हुए हैं मानों जल्द ही इनकी राजनीति की दुकान बंद होने वाली हो। 
 
 

 
 
 
 
तो सबसे पहले समझते हैं कि हुआ क्या है. हुआ यह है कि अचानक केंद्र से यह एडवाइजरी जारी की गयी कि अमरनाथ की यात्रा पर गए सभी यात्री तुरंत वापस लौट जाएँ, यही सलाह देशी विदेशी पर्यटकों को भी दी गयी है, साथ ही पिछले सप्ताह 10000 सैनिक कश्मीर घाटी में भेजे गए, और 2 अगस्त को 28000 और सैनिक, जिनमें अधिकतर सीआरपीएफ के जवान हैं, कश्मीर घाटी में भेजे गए. इसके साथ ही तरह तरह की अफवाहे, व्हाट्सअप, फेसबुक आदि के ज़रिये घूमने लगीं. कुछ के अनुसार जल्दी ही अनुच्छेद 370 और 35 A के बारे में केंद्र सरकार कुछ ठोस निर्णय लेने वाली है और इसलिए अपेक्षित हिंसा को रोकने के लिए इतनी बड़ी मात्रा में सेना भेजी गयी है, दूसरी अटकल है कि जम्मू कश्मीर राज्य को तीन हिस्सों में बाँट दिया जायेगा, लद्दाख और कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश और जम्मू को अलग राज्य बना दिया जायेगा , जिससे 370 और 35 A अपने आप ख़त्म हो जायेंगे . जबकि केंद्र से यह कहा जा रहा है कि ख़ुफ़िया एजेंसी को पता चला है कि पाकिस्तान और आतंकवादी 15 अगस्त के आस पास घाटी में किसी बड़ी घटना को अंजाम देना चाहते हैं. उनका निशाना पर्यटक और अमरनाथ यात्री होंगें इसलिए यात्रा स्थगित कर दी गयी है.
 
 
 
सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त सुरक्षा बल कश्मीर घाटी में तैनात किया हैं, यह बात औपचारिक रूप से तो कही ही जा रही है, कल पाकिस्तान के BAT के 7 सैनिकों को भारतीय सेना द्वारा मार गिराने की घटने से यह तथ्य मज़बूत भी होता है. वैसे भी 35 A के मामले की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में चल रही है, ऐसे में ना तो सरकार ना ही संसद इस मामले पर कोई नया फैसला करेगी. जहाँ तक अनुच्छेद 370 का सवाल है, वह एक दिन में लिया जाने वाला निर्णय नहीं है, साथ ही जो मसला इतने साल चला उसको अचानक इस तरह अफरातफरी मचा कर केंद्र सरकार हल नहीं करेगी. 
 
 
 
 
सच्चाई क्या है यह तो आने वाला समय बताएगा, पर अफवाहों के इस दौर में कश्मीर घाटी के नेताओं के भीतर का डर और असुरक्षा की भावना पूरी तरह बेनकाब हो गयी है. बार बार घाटी की नेता कह रहे हैं, कि घाटी की लोगों में इतना भय और असुरक्षा के माहौल कभी नहीं था. सच तो यह है कि हमने घाटी की नेताओं में इतना दर और असुरक्षा कभी नहीं देखि. अलगाववादियों और पाकिस्तान की भाषा बोलनेवाले इन नेतों की चेहरों पर पहली बार केंद्र सरकार की ताक़त के खौफ नज़र आ रहा है.इन सबमें सबसे दयनीय लग रही हैं महबूबा मुफ़्ती, जो 4 -5 दिन पहले एक सार्वजनिक मंच से केंद्र को धमका रही थीं की 35A को छेड़ा तो छेड़ने वाले का न केवल हाथ बल्कि पूरा शरीर जलकर ख़ाक हो जायेगा, वही महबूबा 2 अगस्त को अपने घर में की प्रेस कॉफ्रेन्स में लगभग गिड़गिड़ाती नज़र आ रही हैं, चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही हैं और तो और इस्लाम में जो हराम कृत्य है, हाथ जोड़ना, वो वह भी कर रही हैं. साथ ही इस प्रेस कांफ्रेंस से यह भी पता चलता है कि ये लोग कितने स्वार्थी हैं, कितने मौका परस्त हैं, कितने झूठे हैं और इनकी याददाश्त कितनी कमज़ोर है.
 
 
 
महबूबा मुफ़्ती बोलते हुए यह भूल गयीं कि झूठ बोलने की भी कोई सीमा होती है. उनके झूठ को परत दर परत आपके सामने रख रहे हैं.
 
 
 
महबूबा मुफ़्ती के अनुसार -'जम्मू कश्मीर एक मात्र मुस्लिम बहुल राज्य है इसलिए इसकी पहचान को बदलना नहीं चाहिए.' इस बात को कह कर मुफ़्ती केवल तुष्टिकरण की राजनीति कर अपना वोट बैंक बढ़ा रही है. भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है और इसलिए यहाँ किसी राज्य की पहचान उसके मुस्लिम या हिन्दू बाहुल्य होना नहीं हो सकता है. माना कि जम्मू कश्मीर में मुसलमान अधिक संख्या में हैं, पर इस्लाम राज्य की पहचान नहीं बन सकता है. और वैसे भी केंद्र सरकार ऐसा क्या करेगी कि राज्य की पहचान बदल जाएगी?? किस बात से महबूबा इतनी डरी हुई है?
 
 
 
 
-'बड़ी मुश्किल से जम्मू कश्मीर हिंदुस्तान के साथ मिला, इस शर्त पर कि जम्मू कश्मीर की विशेष पहचान को बरकरार रखा जायेगा और इसके लिए हमें कॉन्स्टिट्यूशनल गारंटी मिलीं हैं. पर आज इनको ख़त्म करने की कोशिश की जा रही है'- जब जम्मू कश्मीर भारत के साथ मिला तो बिना किसी शर्त के मिला. महाराजा हरी सिंह ने 26 अक्टूबर को भारत के पक्ष में अधिमिलन पत्र (इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन) पर हस्ताक्षर किये और जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया ठीक उसी प्रकार जैसे बाकी की 565 रियासतों ने अधिमिलन पत्र द्वारा भारत के साथ अपना अधिमिलन किया. तो जब अधिमिलन बिना किसी शर्त के हुआ, और भारत के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं जो जम्मू कश्मीर की किसी शर्त को मान कर उसे कोई विशेष गारंटी देता हो, तब मुफ़्ती ये क्या बोल रही हैं??
 
 
 
 
-' ...... जम्मू कश्मीर के लोगों ने कुर्बानियां दीं हैं अपनी आइडेंटिटी बचने के लिए. (प्रधानमत्री जी) आप आज अगर उसी पर वार करेंगें तो इसके नतीजे अच्छे नहीं होंगें.'- जब मुफ़्ती कश्मीरी लोगों की आइडेंटिटी की बात करती हैं तो वो शायद भूल जाती हैं कि जम्मू कश्मीर की आइडेंटिटी, वहाँ की पहचान, इस्लाम और मुसलमान नहीं. जम्मू कश्मीर की आइडेंटिटी है, लालदेड, अभिनव गुप्त, शैवीसम, शारदा मंदिर और शारदा भाषा, जम्मू कश्मीर की पहचान है डोगरा, गुजर, पहाड़ी, शीना, बाल्टी, कश्मीरी, हिन्दू, मुस्लमान, बौद्ध, सिख. मुफ़्ती जैसे लोगों की सँकरी मानसिकता ने जम्मू कश्मीर की सभ्यता, संस्कृति और वहाँ की हर समुदाय की लोगों का बहुत बड़ा नुक़सान किया है.
 
 
 
 
- '1947 में शेख साहब ने पाकिस्तान को दर किनार करके हिंदुस्तान से हाथ मिलाया मगर इन शर्तों पर कि हमारी यूनीक आइडेंटिटी को बरकरार रखा जायेगा. मुफ़्ती साहब भी कहते थे कि हमें जो कुछ भी मिलना है, इसी मुल्क से मिलना है....'- 1947 में शेख साहब को कोई अधिकार नहीं था कि वो यह तय करे कि जम्मू कश्मीर रियासत पाकिस्तान जाए या भारत से मिले. यह निर्णय लेने का अधिकार केवल शासक को, यानी महाराजा हरी सिंह को था जिन्होंने फैसला भारत की पक्ष में लिया . जहाँ तक शेख अब्दुल्ला का सवाल है, यह सच है कि वह भारत से मिलना चाहते थे, पर उसका कारण उनका भारत प्रेम नहीं था, बल्कि यह कड़वा सच था कि उनकी अपनी राजनीतिक आकांक्षाएँ थीं, और वह अच्छी तरह से यह जानते थे कि पाकिस्तान जाने से उनके राजनेता बनने के मंसूबों पर पानी फिर जायेगा. और जैसा पहले भी लिखा जा चुका है, कि जम्मू कश्मीर भारत से बिना किसी शर्त की जुड़ा था, किसी भी रियासत को कोई भी शर्त रखने का अधिकार नहीं था.
 
 
 
 
-'मैं जम्मू के लोगों से कहना चाहती हूँ, लद्दाख के लोगों से कहना चाहती हूँ कि हमारी कोई रीजनल लड़ाई नहीं है ,इस वक़्त सर्वाइवल की, आइडेंटिटी की लड़ाई है. खुदा ना खस्ता ऐसा वक़्त ना आये कि हम पता करें कि कौन है कश्मीरी, कहाँ रहता है वो कश्मीरी, कौन है लद्दाखी, कौन है डोगरा, हमारी आइडेंटिटी ख़तम न हो.'- ताज्जुब है, जिस महिला को 1990 में जब कश्मीरी हिन्दुओं को बाकायदा समाचार पत्रों में विज्ञापन छापकर कश्मीर घाटी छोड़ें की लिए कहा गया वो नज़र नहीं आया, जब सदियों से कश्मीर घाटी में रहनेवाले हिंदुओं की निर्मम हत्या की गयी, हिंदू महिलाओं के बलात्कार कर बर्बरता से उन्हें मारा गया, मस्जिदों की लाउडस्पीकरों से हिंदुओं को 2 दिन में घाटी छोड़कर चले जाने की चेतावनी देकर, उनका नरसंहार किया गया तब महबूबा मुफ़्ती को सर्वाइवल, आइडेंटिटी की लड़ाई ये कुछ भी न तो ध्यान आया ना ही नज़र आया . बजाय हिन्दुओं को घाटी से मार भागने का विरोध करने के, वह उन लोगों की नेता बन गयी, जिन्होंने इस घिनौने कृत्य को अंजाम दिया, वह उनकी आवाज़ बन गयी जिन्होंने घाटी में हिंदुओं के गला घोंट दिया. आज जिसे चिंता है कि कहीं ऐसा न हो कि लोग पूछें कि कश्मीरी कहाँ रहता है, क्या उसने कभी भी यह सोचा कि कश्मीर का मूल निवासी कश्मीरी हिन्दू कहाँ चला गया, वह अब कहाँ रहता है, क्यों और किसके कारण हिन्दू कश्मीर घाटी से बाहर चला गया?? क्या तब उसने लद्दाख से जम्मू से एक होकर इस मुसीबत का सामना करने कहा था?? और क्या तब महबूबा ने केंद्र से मदद की गुहार लगाई थी?? आज महबूबा को जम्मू और लद्दाख याद आ रहे हैं, पर जब केंद्र से आने वाली सारी आर्थिक मदद कश्मीर हज़म कर जाता है, तब उसे जम्मू और लद्दाख की याद नहीं आती है, जब दुष्भावना से राज्य की विधानसभा में कश्मीर की अधिक सीटें रख कर जम्मू और लद्दाख की साथ अन्याय किया जाता है तब मेहबूबा का जम्मू लद्दाख़ प्रेम कहाँ चला जाता है?
 
 
 
 
और लोगों को गुमराह करने की हद देखिये, महबूबा का कहना है कि केंद्र यदि 370 या 35 A हटा देगा तो लोग ढूंढने आयेंगें कि कश्मीरी कहाँ चला गया, डोगरा कहाँ गया, लद्दाखी कहाँ गया? क्या महबूबा नहीं जानती कि बिना 370 और 35 A के आज आज़ादी के 72 साल बाद भी आपको गुजरात में गुजराती मिलेगा, असम में असामी मिलेगा, बिहार में बिहारी मिलेगा, बंगाल में बंगाली मिलेगा. जब बिना इन अनुच्छेदों के, देश की हर राज्य की लोगों की पहचान जस की तस बानी हुई है तो फिर, जम्मू कश्मीर के लोगों की पहचान क्यों खतरे में है?? और वो कहते हैं न चोर की दाढ़ी में तिनका, महबूबा के वही हाल है, वो अपनी तफर से जम्मू और लद्दाख की लोगों से अब कह रही है 'हमारी कोई रीजनल लड़ाई नहीं है!!!' ये सफाई वो किसे और क्यों दे रही है?? साफ़ है, चूंकि आज तक जम्मू कश्मीर पर शासन करने वाले कश्मीरी राजनेताओं ने बाकी के दोनों हिस्सों, यानि जम्मू और लद्दाख की साथ रीजनल पॉलिटिक्स की है, भेदभाव किया है, इसलिए अब वो उन्हें बिना मांगे सफाई दे रही है.
 
 
 
 
-'यहाँ से मैं फ़ारूक़ साहब के यहाँ, सज्जाद लोन, अंसारी साहब, फैज़ल साहब, रशीद साहब, सब आपस में मशवरा करके आगे देखेंगे क्या करना है.'- और अंत में, जिन लोगों को वह जम्मू कश्मीर के नेता कह कर उनसे एकजुट होकर, 370 और 35 A को बचाने मिलकर काम करने की मिन्नत करने जा रही है ज़रा उनके आप नाम पढ़िए, एक भी हिन्दू या लद्दाखी नेता नहीं है. महबूबा का ये अंतिम वाक्य ही सारा फ़साना बयां कर देता है.....