14 सितंबर 1989 में प्रसिद्ध समाजसेवी और राष्ट्रवादी नेता टीकालाल टपलू की सरेआम हत्या के बाद घाटी में कश्मीरी हिंदू खौफ़ में थे। जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट जैसे इस्लामिक आतंकी संगठन खुलेआम हिंदूओं को घाटी छोड़ने की धमकी दे रहे थे। कश्मीरी हिंदू सहमे ज़रूर थे, लेकिन पंडित प्रेमनाथ भट्ट जैसे प्रसिद्ध समाजसेवियों के नेतृत्व ने उन्होंने इस्लामिक आतंकियों के सामने झुकने से इंकार कर दिया। ऐसे में जेकेएलएफ ने कश्मीरी हिंदू पर हमले और तेज़ करने की योजना बनायी।
पंडित प्रेमनाथ भट्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस और इकॉनोमिक्स में डबल मास्टर्स डिग्री हालिस करने के बाद एलएलबी की डिग्री हासिल की थी। अनंतनाग में प्रैक्टिस करते हुए प्रेमनाथ भट् समाचार पत्रों में अपनी तेज़धार लेखनी के चलते श्रीनगर में भी प्रसिद्ध थे और घाटी में एक जाने-मानी शख्सियत के तौर पर जाने जाते थे। अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा वो चैरिटी में खर्च करते थे। अपने साथियों के साथ मिलकर उन्होंने विवेकानंद केंद्र के जरिये 150 परिवारों के खाने की व्यवस्था कर रखी थी।
घाटी में देश-विरोधी माहौल बनता देख वो चुप नहीं रहे और सार्वजनिक मंचों से राष्ट्रवादी विचार रख रहे थे। जाहिर है भट्ट साहब जेकेएलएफ के निशाने पर थे।
27 दिसंबर 1989 की शाम जब प्रेमनाथ भट्ट अनंतनाग में अपने घर जा रहे थे, तो उनके घर के पास दासी मोहल्ला में जेकेएलएफ के आतंकियों ने प्वाइंट ब्लैंक रेंज से उनके सिर में गोली मारी। सरेआम, पूरी चहल-पहल के बीच मुस्मिल बहुल मोहल्ले में हत्या करने के बाद जेकेएलएफ आतंकी ने जश्न मनाते हुए कहा- “एक और (मारा) गया...”। आतंकी सरेआम एक जानी-मानी शख्सियत की हत्या कर आराम से फरार हो गये, लेकिन किसी ने एक शब्द नहीं बोला।
प्रेमनाथ भट्ट की हत्या के बाद भी उनके परिवार के सहायता करने के लिए मोहल्ले से कोई सामने नहीं आया। न ही किसी ने पुलिस को कुछ बताया। अगले दिन उनके पैतृक स्थान नरबल में पंडित प्रेमनाथ भट्ट का अंतिम संस्कार कर दिया गया। उसके बाद उनकी दशमी के दिन भी आतंकियों ने प्रेमनाथ भट्ट के घर बम से हमला करने की कोशिश की। साफ हो चुका था, कि इस्लामिक आतंकी उनके परिवार को भी नहीं बख्सेंगे।
चौतरफा दबाव के बाद पुलिस ने जेकेएलएफ के एक आतंकी मंजूर-उल-इस्लाम को गिरफ्तार तो किया। लेकिन उनके परिवार को धमकियां लगातार मिलती रही।