सरसंघचालक मोहन भागवत ने चीन पर साधा निशाना, कहा - “भारत की प्रतिक्रिया से इस बार सहम गया चीन”
   25-अक्तूबर-2020


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विजयदशमी  के मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के  सरसंघचालक मोहन भागवत ने नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में शस्त्र पूजा की। इस दौरान उन्होंने अपने संबोधन में चीन पर निशाना साधते हुये कहा कि कोरोना महामारी के संदर्भ में चीन की भूमिका संदिग्ध रही है। लेकिन अपने आर्थिक सामरिक बल के कारण मदांध होकर उसने भारत की सीमाओं पर जिस प्रकार से अतिक्रमण का प्रयास किया वह सम्पूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट है। मोहन भागवत ने आगे कहा कि भारत का शासन, प्रशासन, सेना तथा जनता सभी ने इस आक्रमण के सामने अड़ कर, खड़े होकर अपने स्वाभिमान, दृढ़ निश्चय व वीरता का उज्ज्वल परिचय दिया है। इससे चीन को अनपेक्षित धक्का लगा है, इस परिस्थिति में हमें सजग होकर दृढ़ रहना पड़ेगा। उन्होंने चीन को लेकर कहा कि हम शांत हैं इसका मतलब यह नहीं कि हम दुर्बल हैं, अब चीन को भी इस बात को एहसास तो हो ही गया होगा। लेकिन ऐसा नहीं है कि हम इसके बाद लापरवाह हो जाएंगे, ऐसे खतरों पर नजर बनाए रखनी होगी।
 

 
 

मोहन भागवत ने कहा कि पूरी दुनिया ने देखा है कि कैसे चीन भारत के क्षेत्र में अतिक्रमण की कोशिश कर रहा है। चीन के विस्तारवादी व्यवहार से हर कोई वाकिफ है। चीन कई देशों-ताइवान, वियतनाम, यूएस, जापान और भारत के साथ लड़ रहा है। लेकिन भारत की प्रतिक्रिया से इस बार चीन सहम गया है।
 
 

 

वहीं सेना के पराक्रम पर उन्होंने कहा कि हमारी सेना की अटूट देशभक्ति व अदम्य वीरता, हमारे शासनकर्ताओं का स्वाभिमानी रवैया तथा हम सब भारत के लोगों के दुर्दम्य नीति-धैर्य का परिचय चीन को पहली बार मिला है। उन्होंने कहा कि हम सभी से मित्रता चाहते हैं, यह हमारा स्वभाव है। परन्तु हमारी सद्भावना को दुर्बलता मानकर अपने बल के प्रदर्शन से कोई भारत को चाहे जैसा नचा ले, झुका ले, यह संभव नहीं है, इतना तो अब सबकों समझ में आ जाना ही चाहिए।
 
 


सीएए विरोधियों को लेकर मोहन भागवत ने कहा कि नागरिकता संशोधन बिल आया जिसे लेकर हंगामा किया गया था। नागरिकता संशोधन क़ानून संसद में विधिवत रूप से पास हुआ था। ये भेदभाव और उत्पीड़न का सामना करने वाले पड़ोसी देशों के हमारे भाइयों और बहनों को नागरिकता देने की प्रक्रिया है। यह संशोधन किसी विशेष धार्मिक समुदाय का विरोध नहीं करता। लेकिन क़ानून का विरोध करने वालों ने ऐसा वातावरण बनाया कि इस देश में मुसलमानों की संख्या ना बड़े इसलिए ये क़ानून बनाया गया है। उन्होंने विरोध शुरु किया, प्रदर्शन होने लगे और इससे देश के वातावरण में तनाव आ गया। अब इसका क्या उपाय करना है, इस पर सोच-विचार से पहले ये सबकुछ कोरोना संक्रमण के कारण दब गया। कुछ लोगों के दिमाग में सांप्रदायिक भड़काना था, जो कोरोना के काऱण केवल उनके दिमाग में ही रह गया।
 


उन्होंने आगे कहा कि 2019 में अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी हो गया। फिर सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को अयोध्या में राम मंदिर को लेकर अपना फैसला सुनाया। संपूर्ण देश ने फैसले को स्वीकार कर लिया। पांच अगस्त 2020 को राम मंदिर निर्माण की शुरुआत हुई। हमने इस दौरान भारतीयों के धैर्य और संवेदनशीलता को देखा है।। उन्होंने कोरोना वायरस को लेकर कहा कि भारत में कोरोना के कारण नुकसान कम हुआ है, क्योंकि सरकार ने जनता को पहले से सतर्क कर दिया था। एहतियाती कदम उठाये गये और नियम बनाये गये। लोगों ने अतिरिक्त सावधानी बरती क्योंकि उनके मन में कोरोना का डर था।
 
 

 
 

 

उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व ऐसा शब्द है, जिसके अर्थ को पूजा से जोड़कर संकुचित किया गया है। यह शब्द अपने देश की पहचान को, आध्यात्म आधारित उसकी परंपरा के सनातन सातत्य और समस्त मूल्य सम्पदा के साथ अभिव्यक्ति देने वाला शब्द है। हिन्दू किसी पंथ या संप्रदाय का नाम नहीं है। किसी एक प्रांत का अपना उपजाया हुआ शब्द नहीं है, किसी एक जाति की बपौती नहीं है, किसी एक भाषा का पुरस्कार करने वाला शब्द नहीं है। मोहन भागवत ने कहा जब हम कहते हैं कि हिंदुस्तान एक हिंदू राष्ट्र है तो इसके पीछे राजनीतिक संकल्पना नहीं है। ऐसा नहीं है कि हिंदुओं के अलावा यहां कोई नहीं रहेगा बल्कि इस शब्द में सभी शामिल हैं। हिंदू शब्द की भावना की परिधि में आने व रहने के लिए किसी को अपनी पूजा, प्रान्त, भाषा आदि कोई भी विशेषता छोड़नी नहीं पड़ती। केवल अपना ही वर्चस्व स्थापित करने की इच्छा छोड़नी पड़ती है। स्वयं के मन से अलगाववादी भावना को समाप्त करना पड़ता है। बता दें कि कार्यक्रम के दौरान नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में कोविड-19 महामारी के कारण केवल 50 स्वयंसेवकों को सभागार के अंदर अनुमति दी गई थी।