अक्टूबर, 1990 का वो बेरहम महीना, जब कश्मीर में कश्मीरी हिंदूओं का नरसंहार चरम पर था #KashmiriHinduExodus #30YearsInExile
   08-अक्तूबर-2020

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4 नवंबर 1989, जेकेएलएफ के इस्लामिक आतंकियों ने श्रीनगर के भीड़भाड़ वाले इलाके करण नगर में पूर्व सेशन जज नीलकंठ गंजू की गोली मारकर हत्या कर दी। जिसमें आतंकियों ने कश्मीर में तमाम हिंदूओं को एक संदेश दिया कि घाटी में अब हिंदू सुरक्षित नहीं हैं। अगले एक साल में लाखों हिंदूओं को उस मिट्टी को हमेशा के लिए छोड़ना पड़ा जिसमें उनके पूर्वज हज़ारों साल से रहते आये थे।
  
अक्टूबर 1990 के आते-आते जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट समेत अन्य इस्लामिक आतंकी स्थानीय मुस्लिमों के साथ मिलकर सैंकड़ों हिंदूओं की हत्या और बलात्कार की वारदात को अंजाम दे चुके थे। कश्मीर घाटी में बर्फबारी की आहट से पहले अक्टूबर के इस महीने हत्याएं तेज़ हो गयी थीं। जिनमें से ज्यादातर कभी रिपोर्ट ही नहीं की गयी, न ही उनका कोई रिकॉर्ड है। लेकिन कुछ कश्मीरी हिंदूओं की दर्दनाक कहानी हम आपके लिए लेकर आये हैं। 
 
6 अक्टूबर, 1990, जिंदालाल पंडित- 59 साल के जिंदालाल पंडित को जेकेएलएफ आतंकियों ने हंडवाड़ा के भगतपोरा इलाके से किडनैप किया और स्टील वायर से गला घोंटकर उनकी हत्या कर दी। आतंकियों ने जिंदालाल की लाश को सेब के बागान में फेंक दिया।
 
6 अक्टूबर, 1990, डीपी खजांची- कन्याकदल, श्रीनगर में रहने वाले डीपी खजांची का इस दिन 59वां जन्मदिन था। फिजिक्स के प्रोफेसर को आतंकियों ने रास्ते में गोली से छलनी कर दिया।
 
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7 अक्टूबर, 1990- जगर नाथ पंडिता- 47 वर्षीय जगर नाथ पंडिता हंदवाड़ा के भगतपोरा में एक किसान थे, आतंकियों ने जगर नाथ को उसके घर किडनैप किया और उसके ही सेब के बागान में ले गये। यहां आतंकियों ने जगर नाथ को रात भर टॉर्चर किया औऱ स्टील के तारों से गला घोंटकर हत्या कर दी। 
 
 
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9 अक्टूबर 1990- अनंतनाग के काज़ीगुंड इलाके में आतंकियों ने मोहन लाल और रमेश कुमार नाम के दो भाइयों को किडनैप किया और उनकी हत्या कर दी। दोनों की लाश हाईवे के पास मिली, जिनसे साबित हुआ कि आतंकियों ने दोनों भाईयों को बुरी तरह टॉर्चर कर मारा था।
 
12 अक्टूबर 1990, पुष्कर नाथ राजदान- पुलवामा के खोनमुहा इलाके में रहने वाले 57 वर्षीय पुष्कर नाथ राजदान अपने घर में थे। जहां साथ में 2 बेटे और एक बेटी समेत पत्नी भी मौजूद थी। तभी कुछ आतंकियों जबरन घर में घुसे और राजदान को खींचकर बाहर ले गये। उनकी पत्नी और बच्चे चीखते-चिल्लाते रहे, लेकिन कोई मदद को नहीं आया। आतंकियों ने पुष्कर नाथ को दिल को निशाना बनाते हुए गोली मारी और फरार हो गये। घरवाले पुष्कर नाथ को तुरंत श्रीनगर के बादामी बाग अस्पताल लेकर आये। यहां ऑपरेशन किया गया। लेकिन उनको बचाया नहीं जा सका।
  
14 अक्टूबर 1990, ऊषा कौल- श्रीनगर के आहकदल इलाके में आतंकियों का एक ग्रुप एक कश्मीरी हिंदूओं के घर में घुसा। यहां आतंकियों ने घर में मौजूद 3 सदस्यों को गोली मार दी। इनमें राजेंद्र कौल और उनकी पत्नी ऊषा कौल और अन्य सदस्य डॉ शिवांजी शामिल थे। ऊषा कौल खुद प्रेग्नेंट थीं। वो आतंकियो के सामने गिड़गिड़ाये लेकिन आतंकियों ने इन मासूमों को नहीं बख्शा और गोली मारकर फरार हो गये। इन्हीं आतंकियों ने बाद में इसी इलाके में 2 और हिंदूओं चुन्नी लाल और कपूर चंद की हत्या कर दी। इन दोनों घटनाओं की जिम्मेदारी अल-उमर मुजाहिदीन ने ली थी।
 
15 अक्टूबर 1990, महेश्वर नाथ भट- श्रीनगर में सुबह करीब 8 बजे इस्लामिक आतंकी महेश्वर नाथ के घर में घुसे और उनके दामाद जोकि फॉरेस्ट ऑफिसर थे, के बारे में पूछताछ करने लगे। घर में उस वक्त उनकी पत्नी, उनका बेटा, तीन बेटियां और दामाद मौजूद थे। आतंकियों की आहट पाकर दामाद घर में छिप गया। महेश्वर ने आतंकियों को झूठ बोला कि उनका दामाद जम्मू शिफ्ट हो चुका है और वो इस वक्त घर में नहीं है। इस पर आतंकियों ने महेश्वर को गोली मारी और फरार हो गये।
 
महेश्वर को बादामी बाग़ के अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन उनको बचाया नहीं जा सका। इस घटना के बाद महेश्वर के पूरे परिवार ने घाटी हमेशा के लिए छोड़ दी।
 
 
16 अक्टूबर 1990, पीपी सिंह- जम्मू कश्मीर पुलिस में तैनात सिख पुलिस ऑफिसर असिस्टेंट सब इंस्पेकर पीपी सिंह की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। 
 
18 अक्टूबर 1991- कन्यालाल पेशिन;  54 साल के किसान कन्या लाल पेशिन अपनी पत्नी, अपने 2 बेटों और 1 बेटी के साथ बांदीपोरा के पज़ालपोरा में रहते थे। आतंकियों ने 18 अक्टूबर की रात 9 बजे उनको उनके घर से किड़नैप कर लिया। आतंकी कन्यालाल को गांव से 3 किमी दूर ले गये। यहां आतंकियों ने कन्यालाल को बुरी तरह तड़पाया। उनके हाथों में कील ठोंक दी। मुंह में कपड़ा ठूंस दिया गया, ताकि आवाज़ दूर तक न जाये। कन्यालाल की लाल अगले खेतों में पड़ी मिली। बाद में पता चला कि हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकियों ने कन्यालाल की हत्या कर थी। इस हत्या के बाद बांदीपोरा में भी कश्मीरी हिंदूओं ने घाटी छोड़ना तेज़ कर दिया।
 
 
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…To be Continued