जम्मू कश्मीर की नयी अधिवासन नीति: सच हो सकेंगे जागती आँखों के सपने
   23-मई-2020
 
DOMICILE_1  H x
 
 
 
 
- आशुतोष भटनागर
 
 
भारत सरकार द्वारा प्रत्येक भारतीय नागरिक को प्रदत्त मौलिक अधिकारों से वंचित लाखों निसहाय, निरुपाय लोगों की पीड़ा की गूँज छः दशकों तक सरकारों के बहरे कानों तक न पहुंच सकी। मोदी सरकार आने के बाद सरकार ने इनकी सुध लेने की कोशिश की तो स्थानीय राजनैतिक दल और दवाब समूह रास्ते का रोड़ा बन गये।
 
 
 
अंततः यह संघर्ष रंग लाया और सात दशकों की पीड़ा का अंत हुआ। लाखों लोगों ने अपनी आने वाली पीढ़ी के सुखद, सुरक्षित भविष्य के लिये जागती आँखों से जो सपने देखे थे वे अब सच हो सकेंगे। जम्मू कश्मीर अधिवास प्रमाणपत्र प्रदान (प्रक्रिया) नियम 2020 अधिसूचित कर भारत सरकार ने दशकों से चली आ रही विसंगति को दूर कर दिया है।
 
 
 
जम्मू कश्मीर का अधिवास प्रमाणपत्र (डोमिसाइल) ज़ारी करने की प्रक्रिया निर्धारित करने के साथ ही अब जम्मू कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में किसी भी सरकारी पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन हेतु यह प्रमाणपत्र अनिवार्य कर दिया गया है।
 
 
 
जम्मू कश्मीर सिविल सेवा (विकेन्द्रीकरण एवं भर्ती) अधिनियम 2010 में संशोधन के बाद डोमिसाइल नियम के अनुसार वे सभी व्यक्ति और उनके बच्चे, जो जम्मू कश्मीर में 15 वर्ष से रह रहे हैं या जिन्होंने सात साल यहाँ पढाई की हो और कक्षा 10 या 12 की बोर्ड परीक्षा इस केंद्रशासित प्रदेश के शैक्षणिक संस्थान से दी हों, वे डोमिसाइल प्राप्त करने के लिए योग्य हैं।
 
 
 
जम्मू कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में केंद्र सरकार, अखिल भारतीय सेवाएं, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एवं केंद्र सरकार के स्वायत्त निकाय, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, वैधानिक निकाय, केंद्रीय विश्वविद्यालय एवं केंद्र द्वारा मान्यता प्राप्त शोध संस्थान आदि में कुल 10 वर्ष तक कार्यरत कर्मचारियों के बच्चे भी अधिवास प्रमाणपत्र पाने के अधिकारी होंगे। इनके अलावा, वे सभी प्रवासी और उनके बच्चे, जो ''राहत एवं पुनर्वास आयुक्त'' कार्यालय में पंजीकृत हैं, उन्हें डोमिसाइल दिया जायेगा।
 
 
 
जम्मू कश्मीर के उन सभी रहवासियों के बच्चों को भी डोमिसाइल दिया जायेगा जो, नौकरी, व्यापार या अन्य किन्हीं व्यावसायिक और आजीविका सम्बन्धी कारणों से इस केंद्रशासित प्रदेश से बाहर रहे थे। नियम के अनुपालन हेतु सरल और समयबद्ध प्रक्रिया स्थापित की गयी हैं, जिससे किसी को भी डोमिसाइल प्रमाणपत्र प्राप्त करने में असुविधा न हो।
 
 
 
आवेदक को प्रमाणपत्र ज़ारी करने की प्रक्रिया के लिए 15 दिन का समय निर्धारित है, जिसके बाद आवेदक अपील प्राधिकारी से संपर्क कर सकते हैं। अपील प्राधिकारी का निर्णय डोमिसाइल जारी करनेवाले प्राधिकारी पर बाध्यकारी होगा और अपील प्राधिकारी के आदेश का पालन सात दिन के भीतर करना होगा। ऐसा न करने पर दोषी अधिकारी को पचास हजार रुपये दंड भरना होगा जो उसके वेतन से काटा जायेगा।
 
 
 
DOMICILE_2  H x
 
 जम्मू में बसे वाल्मिकी समाज के लोग
 
 
 
अपील प्राधिकारी को पुनः संशोधन/ पुनः अवलोकन का अधिकार रहेगा। वे स्वयं या किए गए आवेदन के आधार पर, सभी अभिलेख मंगवा सकते हैं, पूरी प्रक्रिया की कानूनी जांच कर सकते हैं और उस सन्दर्भ में उचित आदेश दे सकते हैं।
 
 
इस नियम के प्रावधान के अनुसार डोमिसाइल सर्टिफिकेट प्राप्त करने के लिए आवेदन पत्र व्यक्तिगत रूप से या ऑनलाइन भी भेजा जा सकता है। डोमिसाइल प्रदान करने वाले सम्बंधित अधिकारी भी ऑनलाइन डोमिसाइल प्रमाणपत्र दे सकते हैं।
 
 
 
पूर्व राज्य जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासी, जिनके पास 31 अक्तूबर 2019 से पहले सक्षम प्राधिकारी द्वारा ज़ारी किया गया स्थायी निवासी प्रमाणपत्र है, उन्हें इसी पीआरसी के आधार पर डोमिसाइल मिल जायेगा, अन्य किसी भी दस्तावेज़ की उनको आवश्यकता नहीं है। राज्य के बाहर रह रहे स्थायी निवासियों को पीआरसी या प्रवासी पंजीकरण प्रमाणपत्र के आधार पर डोमिसाइल दिया जायेगा।
 
 
 
 
 
 
 
 
इसके अलावा पूर्ववर्ती राज्य के निवासी ऐसे सभी प्रवासी या विस्थापित जिनका नाम 1951 अथवा 1988 की मतदाता सूची में दर्ज है, अथवा राज्य में नौकरी/ रोज़गार का प्रमाण उपलब्ध है, संपत्ति स्वामित्व का अभिलेख है, अथवा अन्य किसी राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश में प्रवासी या विस्थापित पंजीकरण का प्रमाणपत्र सहित ऐसा कोई भी दस्तावेज़ जिसके आधार पर सम्बंधित व्यक्ति को 6 अगस्त 2019 से पहले स्थायी निवासी प्रमाणपत्र के लिए योग्य माना जाता हो किन्तु जम्मू कश्मीर के राहत अधिकारी (रिलीफ कमिश्नर) के कार्यालय में जिनका पंजीकरण न हुआ हो, के लिए राहत विभाग सीमित समय के लिए विशेष प्रावधान करेगा जिसके तहत डोमिसाइल पाने के लिए वे राहत एवं पुनर्वासन आयुक्त (प्रवासी) में आवेदन कर सकते हैं।
 
 
 
 
उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 370 में दी गयी शक्तियों का उपयोग करते हुए भारत के राष्ट्रपति ने 14 मई 1954 को एक आदेश जारी किया था जिसके अनुसार भारत के संविधान के अनेक प्रावधानों को कुछ प्रतिबंधों के साथ जम्मू कश्मीर राज्य में लागू किया गया था। इसी आदेश से अनुच्छेद 35 ए नामक एक नया अनुच्छेद बिना संसद को विश्वास में लिये भारत के संविधान में जोड़ा गया था जिसकी संवैधानिकता पर पिछले कुछ समय से गंभीर प्रश्न उठ रहे थे तथा इस संबंध में अनेक वाद भी सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन हैं।
 
 
 
अनुच्छेद 370 का दुरुपयोग कर लागू किये गये इस आदेश ने भारत के नागरिकों को ही दो श्रेणियों में बाँट दिया। एक वे, जो जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासी थे और एक वे, जो वहाँ के स्थायी निवासी नहीं थे। परिणामस्वरूप, भारत विभाजन के बाद विस्थापित होकर आने वाले तथा समय-समय पर विभिन्न कारणों से वहां आकर बसने वाले, केन्द्रीय सेवाओं तथा सैन्य बलों में कार्यरत लोग जिनकी तैनाती लम्बे समय तक राज्य में रही, जम्मू कश्मीर में नागरिक सुविधाएं पाने के हकदार नहीं बन सके। नये आदेश में इन विसंगतियों को दूर किया गया है और देश के समस्त नागरिकों के लिये समान अधिकार और समान अवसर सुनिश्चित किये गये हैं।
 
 
 
 
पश्चिमी पाकिस्तान से 1947 में आये शरणार्थी, सफाई कर्मचारी जो 64 वर्षों से राज्य में रह रहे थे पर स्थायी निवासी होने का प्रमाणपत्र पाने के अधिकारी नहीं थे, जिन महिलाओं ने राज्य से बाहर विवाह किया, उनके बच्चे और पति जो राज्य में रह रहे थे तथा गोरखा, जो राज्य में 150 वर्षों से रह रहे थे, डोमिसाइल प्रमाणपत्र प्राप्त करने के हकदार हो गये हैं। इसी प्रकार एक सामान्य प्रक्रिया डोमिसाइल के लिए योग्य अन्य सभी श्रेणियों के लिए 'जम्मू कश्मीर सिविल सेवा (विकेन्द्रीकरण एवं भर्ती) अधिनियम' के तहत डोमिसाइल प्रमाणपत्र देने के लिए परिभाषित की गयी है। इसके अनुसार सरल और आसानी से उपलब्ध दस्तावेज़, जैसे - राशन कार्ड, संपत्ति के कागज़ात, शिक्षा के सत्यापित प्रमाणपत्र, बिजली के बिल, रोज़गार/श्रम/ मालिक द्वारा दिया गया प्रमाणपत्र भी डोमिसाइल प्रमाणपत्र के लिए प्रस्तुत किये जा सकते हैं।
 
 
 
यद्यपि भारत के ही एक भाग में शेष देश के समान स्थिति लाने में सात दशक से अधिक लग गये, किन्तु यह संभव हो सका तो यह इसके लिये पीड़ितों का निरंतर संघर्ष, उनकी आवाज उठाने वाले गैर-सरकारी संगठनों के प्रयास तथा वर्तमान सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति का मिलाजुला परिणाम है। यह निर्णय न केवल राज्य के निवासियों के संवैधानिक अधिकारों को सुनिश्चित करेगा अपितु विकास के नये अवसर उपलब्ध हो सकें इसका भी मार्ग प्रशस्त करेगा।
 
 
( आशुतोष भटनागर जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक हैं)