#RememberingOurHeroes जन्म- 5 मई, 1936, सर्वोच्च भारतीय सैनिक सम्मान परमवीर चक्र के विजेता मेजर होशियार सिंह की कहानी, जो कुशल नेतृत्व, असाधारण युद्ध कौशल, अदम्य साहस, शोर्य के प्रतीक थे
   05-मई-2020
 
Param Vir Chakra Major Ho
 
 
जन्म - 5 मई सन 1936 ई. सिसान, रोहतक, हरियाणा.
 
देहावसान - 6 दिसंबर सन 1998 ई.
 
 
भारत-पाकिस्तान युद्ध सन 1971 के दौरान 15 दिसम्बर को गोलन्दाज फौज की तीसरी बटालियन, जिसका नेतृत्व मेजर होशियार सिंह कर रहे थे, को आदेश दिया गया कि वह शंकरगढ़ सेक्टर में बसन्तार नदी के पार अपनी पोजीशन जमा लें, वह पाकिस्तान का अति सुरक्षित सैनिक ठिकाना था और उसमें पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या भी अधिक थी, यानी दुश्मन यहां अधिक मजबूत स्थिति में था. फिर भी आदेश मिलते ही इनकी बटालियन दुश्मनों पर टूट पड़ी. किन्तु मीडियम मशीनगन की ताबड़तोड़ गोलीबारी और क्रास फायरिंग के कारण इनकी बटालियन बीच में ही फंस गई, फिर भी मेजर होशियार सिंह विचलित नहीं हुए. इन्होंने अपने नाम के अनुरूप होशियारी का परिचय देते हुए बटालियन का नेतृत्व किया और संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते ही गए. अन्तत: उन्होंने उस स्थान पर कब्जा कर लिया, जिसके लिए उन्हें आदेश मिला था.
 
 
 
 
किन्तु दूसरे ही दिन यानी 16 दिसम्बर को अधिक संख्या में पाकिस्तानी सैनिक आ धमके और लगातार तीन भीषण आक्रमण किए. मेजर होशियार सिंह और उनके सैनिकों को फिर कठोर अग्नि परीक्षा देनी पड़ी. होशियार सिंह एक खाई से दूसरी खाई में बराबर जाते रहे और सैनिकों का हौंसला बढ़ाते रहे. इस तरह उन्होंने पाकिस्तान के सभी आक्रमण विफल कर दिए. अगले दिन यानी 17 दिसम्बर को पाकिस्तान ने संख्या में अधिक टैंकों की सहायता से पुन: धावा बोल दिया, फिर भी होशियार सिंह मजबूती के साथ डटे रहे. हालांकि वे घायल हो चुके थे फिर भी अपने सैनिकों के बीच जा-जाकर उन्हें प्रोत्साहित करते रहे. इस दौड़-भाग में दुश्मनों की गोलियों की बौछार से वह और अधिक घायल हो गए. फिर भी उन्होंने अपनी जान की तनिक भी चिन्ता नहीं की और अपने साथियों का मनोबल बढ़ाते रहे. घमासान युद्ध चल ही रहा था कि एक पाकिस्तानी गोला उनकी मीडियम मशीनगन की एक चौकी के समीप आ गिरा. अनेक सैनिक घायल हो गए, मशीनगन बन्द हो गई. किन्तु मशीनगन चलाना बहुत ही आवश्यक था, इस बात को समझकर मेजर होशियार सिंह ने अपने घावों और दर्द की चिन्ता नहीं की और तुरन्त उस चौकी पर पहुंचे, स्वयं मशीनगन चलाना प्रारम्भ कर दिया. उन्होंने कई दुश्मन मार गिराए. इसी पराक्रम के कारण उस दिन भारत को विजय मिली. मेजर होशियार सिंह दर्द से कराह रहे थे, उनका काफी रक्त बह चुका था, फिर भी वे मोर्चा छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे. वे वहां तब तक डटे रहे जब तक कि युद्धविराम की घोषणा नहीं कर दी गई.
 
 
इस लड़ाई के दौरान सेना की समृद्ध परम्पराओं के अनुकूल उत्कृष्ट वीरता, असाधारण युद्ध कौशल और कुशल नेतृत्व का प्रदर्शन करने वाले इस वीर योद्धा का जन्म 5 मई सन 1936 ई. को हरियाणा के रोहतक जिले के सिसान गांव में हुआ था. ये सन् 1957 में 2 जाट रेजीमेन्ट में भर्ती हुए थे. इन्हें जून 1963 में 3 ग्रेनेडियर्स में कमीशन प्राप्त हुआ. ये लद्दाख तथा राष्ट्रपति भवन में भी सेवारत रहे. 1969 में संयुक्त राष्ट्र मिशन में भाग लेने के लिए ये अपनी यूनिट के साथ कांगो देश गये.
मेजर होशियार सिंह का देहावसान 6 दिसंबर सन 1998 ई. को हुआ.