पाकिस्तान: पहचान का संकट या संकट की पहचान

19 Jun 2020 16:28:05
 
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प्रोफ़ेसर शिवपूजन प्रसाद पाठक
 
करोना महामारी ने मानव जीवन को सकारात्मक ढंग से वर्तमान समय के स्थापित जीवन मूल्यों, पद्धतियों, मान्यताओं और विमर्शों पर पुनर्विचार व पुनर्प्रभाषित करने के लिए विवश किया है । इस महामारी ने मानव का प्रकृति पर विजयश्री की कामना, विकास के प्रारूप, सफलता के प्रतिमान और यूरोप के बुद्धिवाद को ध्वस्त कर दिया है । इसलिय सम्पूर्ण विश्व नए भविष्य के संरचना में लगा हुआ है । लेकिन पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो अपने इतिहास को पुनर्प्रभाषित करने में लगा हुआ है । किसी भी देश के लिए अपने सभ्यता की जड़ों को खोजना स्वाभाविक है विशेषकर वे देश जो सकड़ों वर्षों तक परतंत्र थे। वे उपनिवेशी शासन से प्रताड़ित थे। लेकिन पाकिस्तान अपने जड़े अपनी सभ्यता में न खोजकर, उस इतिहास पर गर्व करना चाहता है जिसका वह कभी हिस्सा नहीं रहा है ।
 
जब करोना का प्रकोप भारतीय प्रायद्धीप में बढ़ा और लाक-डाउन घोषित कर दिया गया तो भारत में रामायण और महाभारत धारावाहिक का पुन:प्रसारण दूरदर्शन पर शुरू किया गया। इसी समय पाकिस्तान में भी राष्ट्रीय टीवी पर ड्रिलिस: इर्तगुल नाम से एक धारावाहिक का प्रसारण शुरू हुआ । मूलत: यह आटोमान साम्राज्य के स्थापना के पहले के इतिहास का चित्रण करता है । यद्यपि इसमें जेहाद और मध्यकाल में इस्लाम के गौरव को दर्शाया गया है लेकिन यह इस्लाम की स्थापना या विस्तार के लिए नहीं लड़ा जा रहा है । बल्कि एक कबीले का सरदार अपना शासन तंत्र स्थापित करना चाहता है । लेकिन पाकिस्तान इस धारावाहिक को इस्लाम के प्रराक्रम के रूप में देख रहा है । पाकिस्तान ने रमजान महीने के पहले दिन से इसका प्रसारण उर्दू में शुरू किया। इस धारावाहिक को देखने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पाकिस्तान के लोगों से निवेदन किया था । खान ने कहा कि इससे पाकिस्तान के लोग इस्लाम के इतिहास, उसकी संस्कृति और नैतिकता को समझेंगे । अरब देश सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मिश्र ने इस पर रोक लगा रखा है । पाकिस्तान के प्रमुख समाचार पत्र ‘द डॉन’ के अनुसार सऊदी अरब 40 मिल्यन डॉलर का एक “मलिक ए नूर” नामक धारावाहिक का निर्माण इसके समांतर कर रहा है । जिसका अर्थ है कि अरब तुर्की के साम्राज्यवाद को सहन नहीं कर सकता है ।
 
पहचान का संकट
 
पाकिस्तान 1947 ई. से पहले भारत था और इसकी उत्पत्ति धर्म के आधार पर भारत के विभाजन से हुआ है । उसके सामने यह दंद्ध है कि वह अपने जड़े सिंधुघाटी सभ्यता, तक्षशिला और शारदा पीठ में देखें या इस वास्तविकता को नकार दें। पाकिस्तान की भूल यही है कि उसने अपना इतिहास उसको माना, जिसका हिस्सा वह नहीं था ।
 
पाकिस्तान का निर्माण एक प्रकार से अरब परस्त भारतीय मुस्लिम के सत्ता का खेल था । इस्लामिक मजहब से उनका कोई लेना देना नहीं था । भारत की महत्वपूर्ण इस्लामिक संस्थाएं मुस्लिम देश के पक्ष में नही थे । इस्लाम की अवधारणा में अलग देश नहीं है, बल्कि इस्लाम का विस्तार सभी स्थान पर करना है । पृथक मुस्लिम देश की मांग सिंधु, पंजाब, बालूचिस्तान व उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत से भी नहीं था । भारत का विभाजन मूलत: दिल्ली के आस-पास के मुस्लिम मांग रहे थे । अब्दुल गफ्फार खान जिन्हे ‘सीमांत गांधी’ भी कहा जाता है, इस विभाजन के विरोधी थे ।
 
पाकिस्तान की समस्या यह है कि वह ‘पहचान के संकट’ से गुजर रहा है । पहले वह इस्लाम के नाम पर अरब देशों के निकट गया। काफी समय तक सऊदी अरब से घनिष्ठता रही है । वर्तमान भारत का संबंध अरब देशों से मित्रवत है । प्रधानमंत्री मोदी ने 'लिंक वेस्ट एशिया' के राजनयिक माध्यम से खाड़ी देशों के संबंधों में प्रगाढ़ता प्रदान की थी । पिछले 6 वर्षों में प्रधानमंत्री ने यूएई की तीन बार, सऊदी अरब की दो बार, बहरीन, कतर और ओमान की यात्रा की । आतंकवाद के खिलाफ साझे युध्द, सुरक्षा, ऊर्जा, विज्ञान, समुद्री सुरक्षा जैसी द्विपक्षीय व बहुपक्षीय समझौते किये गए । परिणाम यह हुआ कि 2016 में सऊदी अरब अपना सबसे बड़ा नागरिक सम्मान भी दिया था । बहरीन का भी तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘किंग हमद आर्डर ऑफ रेनशा’ प्रधानमंत्री मोदी को दिया । जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटाने के बाद पाकिस्तान को वहाँ पर कोई समर्थन नहीं मिला। इसलिए पाकिस्तान इस समय तुर्की के निकट जाना चाह रहा है । अनुच्छेद 370 के विषय पर तुर्की ने पाकिस्तान का समर्थन किया था । अब पाकिस्तान स्वयं को तुर्क और औटोमान साम्राज्य से जोड़ता है ।
 
आत्म-प्रतिबिंब
 
पाकिस्तान अपने को कभी भारतीय सभ्यता का अंग नहीं मानता है । वह अपने अस्तित्व के आने के समय से ही स्वयं को इस्लामिक देश मनाने लगा। वह इस्लाम का वैश्विक मंचों पर प्रतिनिधित्व करने लगा। वह अपने इतिहास की शुरुआत अरबों के सिंध पर आक्रमण 711 ई से मानता है । पाकिस्तान अपने को मुगलों का उत्तराधिकारी मानता है । ज्ञात है कि पाकिस्तान भारत के विभाजन से उपजा हुआ देश है । उसका इतिहास भारत का इतिहास है। वह भी एक सभ्यताई देश है । लेकिन उसकी सबसे बड़ी भूल यही है कि वह अपने को इस्लाम के गौरव से जोड़ने लगा है ।
 
पाकिस्तान भारत को हिन्दू देश मानता है । भारत के इतिहास से अलग करते हुए पाकिस्तान केवल भारत के इस्लामिक शासन से जोड़ता है । अपने पहचान की खोज में वह इस्लाम को अपनाता है । इसका एक उदाहरण पाकिस्तान की सुरक्षा नीति है । यद्यपि युद्ध का फैसला सैन्य क्षमता और कुशल रणनीति पर निर्भर करता है, फिर पाकिस्तान की सोच समझना के लिए यह आवश्यक है । पाकिस्तान के प्रेक्षाप्प अस्त्रों का नाम गजनी, गौरी, अब्ब्दाली और बाबर है । वह मोहमद बिन कासिम को अपना नायक मानता है । ये वही लोग हैं जिन्होने भारत पर आक्रमण किया, भारत को लूटा और यहाँ के नागरिकों पर अत्याचार किया । उस समय पाकिस्तान भारत ही था । अरबों ने सिंध पर आक्रमण किया था, पाकिस्तान पर नहीं । सिंध भारत था। सारांश यह कि पाकिस्तान अपने सभ्यता के आधार को नकारने लगा। वह अपनी जड़ सिंधु घाटी में नहीं देखता है।
 
पाकिस्तान में पंजाब प्रांत की जनसंख्या सबसे अधिक है। पंजाब के लोग ही सरकार में प्रभुत्व रखते हैं । सेना, राजनीति और उद्योग में भी पंजाब के लोग ही बहुमत में है । यह वर्ग नीति-निर्धारक है। अहमद शाह अब्ब्दाली ने सबसे अधिक हत्या, बलात्कार और लूट-पाट पंजाब में ही किया । सबसे अधिक क्षति अब्ब्दाली ने पंजाब प्रांत में ही किया था । पंजाब में एक कहावत थी कि सब खाकर-पीकर समाप्त कर दो, नहीं तो जो बचेगा उसे अब्ब्दाली ले जाएगा। लेकिन भारत-विरोध के अंधापन के कारण अब्ब्दाली पाकिस्तान का हीरो है ।
 
पाकिस्तान की मांग करने वाले और पाकिस्तान का शुरुआती नेतृत्व करने वाले लगभग सभी लोग उस भूभाग से थे जो विभाजन के बाद पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बना। वें स्वयं ही पाकिस्तान में शरणार्थी हो गए और मुहाजिर कहलाए । भारत के प्रति उपजा असुरक्षा का भाव उसके सैन्य नीति का निर्धारक बन गयी। भारत केन्द्रित असुरक्षा की अवधारणा ने पाकिस्तान में सैन्य संस्था का प्रमुख स्थान बना गया । यही सोच और समझ पाकिस्तान के प्रति सुरक्षा नीति के लिए उत्तरदाई है । सेना ने राजनीतिक संस्थाओं का इस्लामीकरण कर दिया। इस्लामिक पहचान की स्थापना और इस्लाम का वैश्विक नेतृत्व पाकिस्तान विदेश नीति का आधार बना । राष्ट्र निर्माण के दृष्टि से सेना सबसे शक्तिशाली संस्था बन गयी। इस प्रकार से इस्लाम और सैन्य व्यवस्था पाकिस्तान के पहचान हो गयी ।
 
संकट की पहचान
 
वर्तमान पाकिस्तान चार प्रांत-पंजाब, सिंध, खैबर-पख्तूनवाला व बलूचिस्तान-में विभाजित है । क्षेत्रफल के दृष्टि से बलूचिस्तान सबसे बड़ा प्रांत है लेकिन जनसंख्या के दृष्टि से सबसे छोटा है । केवल पाँच प्रतिशत लोग बलोच प्रांत में रहते है । दूसरे स्थान पर पंजाब है जहां पर साठ प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है । सिंध क्षेत्रफल के दृष्टि तीसरा व जनसंख्या के दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा प्रदेश है । खैबर-पख्तूनवाला क्षेत्रफल के दृष्टि से सबसे छोटा और जनसंख्या के दृष्टि से तीसरे स्थान पर है ।
 
पाकिस्तान के नेतृत्व कूटनीति के दृष्टि से चतुर और सतर्क है । पाकिस्तान आर्थिक रूप से एक असफल देश है । सेना के प्रभुत्व के कारण, जनतंत्र का आधार नहीं बना पाया और सामाजिक व्यवस्था सामंती ही बनी रही। समाज में मध्यवर्ग का निर्माण नहीं हो पाया। इसलिए घरेलू राजनीति में गहरा संकट है । पाकिस्तान का राजनीतिक वर्ग इस संकट को पहचान रहा है । कोविड 19 के कारण देश में आंतरिक कलह में वृद्धि हो रही है ।
 
शीतयुद्ध के समय में अमेरिका से गठबंधन और बाद में चीन के साथ गठबंधन उसके संकट की पहचान करने की क्षमता का परिचायक है । वर्तमान समय में पाकिस्तान की सुरक्षा, स्थिरता और संपन्नता चीन के हाथों में चली गयी है । जम्मू और कश्मीर के पुनर्गठन के बाद पाकिस्तान को अरब देशों से आपेक्षित समर्थन नहीं मिला । सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने अनुच्छेद 370 पर खुलकर समर्थन नहीं किया । जबकि तुर्की और मलेशिया ने पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा है । तुर्की के साथ यह मित्रता का आधार इस्लामिक पहचान है । पाकिस्तान का मानना है कि तुर्कों ने भारत पर 600 वर्षों तक शासन किया है । यह विजेता का मनोविज्ञान है । तुर्क के साथ जुड़कर वह भारत को हीन दिखाना चाहता है । पाकिस्तान का तुर्कों के साथ जुड़ना का प्रमुख कारण भारत सरकार की पश्चिमी एसिया नीति है ।
 
पाकिस्तान जब तक यह स्वीकार नहीं करता है कि वह भारत के विभाजन से बना हुआ एक देश है और तिहतर वर्ष पहले दोनों देशों का इतिहास एक था, तब तक पाकिस्तान एक आत्म-विस्मृति देश के रूप में ऐसे ही लटकता रहेगा । परिणामसरूप भारत के साथ उसके संबंध कभी भी अच्छे नहीं होगें।
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