श्यामा प्रसाद मुख़र्जी और पंडित प्रेमनाथ डोगरा ने जम्मू कश्मीर में भारत के संविधान को पूरी तरह से लागू करने के लिए 1950 से 1953 जो संघर्ष किया उसमें जम्मू कश्मीर की महिलाओं ने भी बढ़ चढ़ कर भाग लिया था। सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी प्रोफ़ेसर शक्ति शर्मा की। उनके साथ कंधे से कन्धा मिलकर श्रीमती सुशीला मेंगी , माता पार्वती , श्रीमती प्रकाशो देवी , श्रीमती चत्रु राम डोगरा, बिमला डोगरा, श्रीमती सुशीला देवी, श्रीमती तारो देवी, श्रीमती विनोद कुमारी शर्मा, श्रीमती दर्शन देवी, श्रीमती बृंदा देवी, श्रीमती शीला चौहान और अनगिनत अन्य महिलाओं ने इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आज जब हम श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनके बलिदान दिवस पर याद कर रहे हैं तब प्रजा परिषद् आंदोलन में भाग लेने वाली महिलाओं को भी हम शत्-शत् नमन करते है।
दर्शना देवी
बिमला डोगरा
सुशीला देवी
शीला चौहान
प्रोफ़ेसर शक्ति शर्मा
सुशीला मेंगी
बृंदा देवी
प्रकाशो देवी
दर्शना देवी
विनोद कुमारी शर्मा
आज से 65 साल पहले भारतीय संविधान लागू करने को लेकर जम्मू कश्मीर की महिलाओं ने जो संघर्ष किया उसका परिणाम हुआ कि संविधान की बहुत से बातें जम्मू कश्मीर में लागू हो गयी।लेकिन दलितों,
महिलाओं, ओबीसी और एसटी के साथ-साथ राज्य के बहुत से वर्गों के अधिकार अभी
भी मिलने बाक़ी थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान के बाद भी राज्य
की जनता संघर्ष रत रही जिसका परिणाम अनुच्छेद हटने और अनुच्छेद में संशोधन
के रूप में हुआ। ऐसे में जम्मू कश्मीर की महिला आंदोलनकारी महिलाओं के
योगदान को याद करना ज़रूरी है।