25 जून 1990, जब कश्मीरी टीचर गिरिजा टिक्कू को आतंकियों ने जीवित ही आरे से काट दिया था
   25-जून-2020
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(प्रतीकात्मक चित्र)
 
 
जम्मू कश्मीर में कश्मीरी हिंदूओं पर इस्लामिक आतंकवाद की बर्बरता की ऐसी सैंकड़ो कहानियां है जिन्हें सुनकर आपक के रौंगटे खड़े हो जायेंगे। ऐसी ही एक कहानी है – गिरिजा कुमारी टिक्कू की. गिरिजा उस समय बारामूला जिले के गांव अरिगाम ( वर्तमान में बांदीपोरा जिले में स्थित ) की रहने वाली थी। वो एक स्कूल में लैब सहायिका का काम करती थी । 11.6.1990 के दिन वह स्कूल में अपनी सैलरी लेने गयी . सैलरी लेने के बाद उसी गाँव में अपनी एक मुस्लिम सहकर्मी के घर उसे मिलने चली गयी। आतंकी उस पर नज़र रखे हुए थे। गिरिजा को उसी घर से अपहृत कर लिया गया। गाँव में रहने वाले लोगो की आँखों के सामने यह अपहरण हुआ, लेकिन किसी ने आतंकियों को रोकने का साहस नहीं किया।
 
 
गिरिजा के साथ बर्बरता
 
 
आतंकियों ने गिरिजा के अपरहण के बाद उसे से सामूहिक बलात्कार किया। उसे तरह-तरह की यातनायें दी गयीं। लेकिन इतने से आतंकियों का मन नहीं भरा तो उन्होंने गिरिजा को बिजली से चलने वाले आरे पर रख कर बीच से काट दिया। आतंकियों का सन्देश साफ़ था की जम्मू कश्मीर में केवल “निज़ाम –ए- मुस्तफा “ को मानने वाले लोग ही रह सकते है और गिरिजा टिक्कू जैसी एक सामान्य सी अध्यापिका को भी वो निजाम –ए- मुस्तफा” के लिए खतरा मानते थे। गिरिजा टिक्कू अपने पीछे 60 साल की बूढी माँ , 26 वर्षीय पति, 4 साल का बेटा और 2 साल की बेटी छोड़ गयी। जम्मू कश्मीर के सबसे छोटे हिस्से कश्मीर में हुए इस हादसे पर वहां के स्थानीय लोग चुप रहे आज आतंक का वही दावानल कश्मीर में खुद मुसलमानों के लिए समस्या बन चुका है। इस पाकिस्तान-परस्त इस्लामिक आतंकवाद के चलते हजारो कश्मीरी मारे जा चुके है। आतंकवादी जवान लोगों को ही नहीं बल्कि बूढ़े , बच्चो और महिलाओं तक को अपना निशाना बना रहे है।
 
 

देश के साथ बौद्धिक बेईमानी
 
 
आज तक पत्थरबाजो के खिलाफ पैलेट गन चलाने का विरोध करने वाले , बात -बात पर जम्मू कश्मीर पुलिस और भारतीय सेना को कोसने वाले का या अवार्ड वापसी करने वाले किसी एक्टिविस्ट ने इस बर्बरियत का विरोध नहीं किया। बल्कि आज यही लोग कश्मीर घाटी के 4-5 जिलो में व्याप्त आतंकवाद को सही साबित करने के लिए किसी भी हद तक जाते है और आतंकियों को मात्र “भटके हुए नौजवान” कह कर अपना पल्ला झाड लेते है। जब ये लोग कश्मीर में मानवाधिकारों पर कुछ लिखते या बोलते है और उसमे कही पर भी गिरिजा टिक्कू या ऐसे ही बलिदान हुए सैकड़ो कश्मीरी हिन्दुओ का कही कोई जिक्र नहीं होता। ये ऐसे लोग थे जो देश के संविधान के समर्थक थे और इसी संविधान की रक्षा करते हुए काल का शिकार हुए। लेकिन देश में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसे बौद्धिक बेईमानो या यूं कहिये देश के संविधान का विरोधी वर्ग पैदा हुआ है जो संविधान को न मानने वाले गिलानी, यासीन मालिक शब्बीर शाह या बुरहान वानी के पक्ष की बात करते है, जिस से संविधान विरोधी इन अलगाववादियों और आतंकियों के हौंसले और बुलंद होते रहे और परिणाम आप के सामने है। गिरिजा टिककू जैसी हत्याओं से यह सिलसिला आत्मघाती हमलो टक पहुँच गया है। यदि समय रहते हमने हमने सही कार्रवाई की होती तो आज सालों बाद अनंतनाग में एक और कश्मीरी हिंदू सरपंच की हत्या ना होती। इसलिए आज जरुरत है जम्मू कश्मीर और शेष भारत में संविधान विरोधी तत्वों को बेपर्दा करना ही महान आत्मा “ गिरिजा टिक्कू “ को सच्चा सम्मान होगा।