मार्च, 99- जब तत्कालीन DIG बारामूला आतंकी हमले में घायल थे, तब UPA सरकार सैयद अली शाह गिलानी की दिल्ली-मुंबई में 5-स्टार मेहमाननवाज़ी कर थी; पूर्व डीजीपी वैद्य का खुलासा
   29-जून-2020
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30 सालों तक जम्मू कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद की जड़ें जमाने वाले अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने हुर्रियत कांफ्रेंस से इस्तीफे की घोषणा कर डाली। इसपर फिर से एक जोरदार बहस शुरू हो गयी है कि कैसे जम्मू कश्मीर को आतंकवाद की आग में झोंका और कैसे इस शख्स ने पिछले 30 सालों में लोकल कश्मीरियों में बिना किसी मजबूत सपोर्ट के अपनी राजनीतिक पैठ बनाये रखी। इसके पीछे की सच से पर्दा उठाया है जम्मू कश्मीर के पूर्व डीजीपी शेष पॉल वैद्य ने।
 
 
वैद्य ने एक ट्वीट कर खुलासा किया कि मार्च, 1999 में जब वो डीआईजी बारामूला के तौर पर कश्मीर में तैनात थे। तब एक बड़े आतंकी हमले में घायल हो गये थे और इसके इलाज के लिए जब उन्हें और उनके परिवार को दिल्ली में इलाज के दौरान उनके हाल पर छोड़ दिया गया था, ठीक उसी वक्त सरकार आतंक के मुखिया अलगवाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को सरकारी प्लेन में मुंबई भेजकर 5-स्टार इलाज करवा रही थी। तत्कालीन सरकार के इस रवैये पर सवाल उठाते हुए पूर्व डीजीपी वैद्य ने पूछा है कि क्या ये सही था?
 
 
 
 
 
एसपी वैद्य ने अपनी ट्वीट में फ्रंटलाइन मैगज़ीन के एक रिपोर्ट का स्कीनशॉट भी शेयर किया है। जिसमें बताया गया है कि कैसे उस दौरान केंद्र और राज्य सरकार सैयद अली शाह गिलानी की 5-स्टार मेहमाननवाजी में जुटी हुई थी। रिपोर्ट के मुताबिक गिलानी को पीएसए के तहत गिरफ्तार कर रांची, झारखंड की बिरसा मुंडा जेल में शिफ्ट किया गया था। जहां गिलानी को 2 कमरों के एक 5-स्टार आलीशान विंग में रखा गया था। जहां ऐशोआराम की तमाम सुविधाएं मौजूद थी।
 
 
 
रिपोर्ट के मुताबिक जब गिलानी की किडनी में ट्यूमर पाया गया तो जम्मू कश्मीर सरकार के स्पेशल प्लेन से उसे मुंबई इलाज के लिए भेजा गया। जहां टाटा मेमोरियल अस्पताल के लग्जरी सूइट में रखा गया था। जबकि सरकार ने श्रीनगर से गिलानी के पर्सनल डॉक्टर को भी मुंबई भेजा था।
 
 
 
 
गौरतलब है कि शेष पॉल वैद्य 2016 से लेकर 2018 तक जम्मू कश्मीर के डीजीपी रहे और जम्मू कश्मीर में अपने ढाई दशक के करियर में आतंकवाद का खात्मा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसको लेकर कश्मीर में उनपर कम से कम आधा-दर्जन बार आतंकी हमले भी हुए थे। 1999 में वैद्य जब डीआईजी बारामूला के पद पर तैनात थे। तो उनके काफिले पर एक दर्जन से ज्यादा आतंकियों ने घात लगाकर हमला किया था। जिसमें उनके हाथ में गोली लगी थी और इलाज के लिए दिल्ली भेजा गया था। इस हमले में उनकी सिक्योरिटी में तैनात एक जवान भी शहीद हो गया था।
 
 
 
 
 
साफ है कि जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान के नंबर वन एजेंट को तत्कालीन सरकार कैसे सुविधाएं मुहैया करा रही थी। जाहिर है ट्विटर पर टॉप-कॉप रहे एसपी वैद्य के इस खुलासे के बाद जोरदार क्षोभ और प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है।
 
 
बहरहाल जानकार मानते हैं कि पिछले कुछ सालों में मोदी सरकार के दौरान हुर्रियत की हैसियत शून्य हो चुकी है। पिछले साल आर्टिकल 370 हटाने के बाद तो हुर्रियत नेताओं को भी समझ आ चुका है कि अब उनकी दुकान नहीं चलने वाली। लिहाजा कार्रवाई के डर से चुप मारकर घर बैठे और अपनी-अपनी दुकान बढ़ाने की कोशिश में लगे हैं। इसी कड़ी में सैयद अली शाह गिलानी ने अपनी दुकान बंद कर भी दी।