हुर्रियत का धंधा बंद होने के बाद सैयद अली शाह गिलानी ने किया किनारा, हुर्रियत कांफ्रेंस से इस्तीफे की घोषणा
   29-जून-2020
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जम्मू कश्मीर में 3 दशक से अलगाववादी राजनीति करने वाले सैयद अली शाह गिलानी ने सोमवार को एक बयान जारी कर हुर्रियत कांफ्रेंस से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी। अपने बयान में सैयद अली शाह गिलानी ने कहा कि हुर्रियात की मौजूदा सूरत-ए-हाल को देखते हुए वो हुर्रियत कांफ्रेंस से अलग हो रहे हैं। इसी के साथ घाटी में हुर्रियत कांफ्रेंस का भी खात्मा गया। गिलानी हुर्रियत कांफ्रेंस (गिलानी) के लाइफटाइम चेयरमैन थे।
 
 
 
 
 
 
दरअसल ये सर्वज्ञात है कि हुर्रियत कांफ्रेंस पहले खत्म हो चुकी है। घाटी में उसका सिर्फ नाम बाकी था, जिसके लाइफटाइम चेयरमैन सैयद अली शाह गिलानी अपनी अलगाववादी राजनीति को किसी तरह जिंदा रखे हुए थे। हालांकि गिलानी अलगाववाद की राजनीति में पाकिस्तान परस्त गुट का सबसे बड़ा नाम है। जोकि 1993 से घाटी में आतंकवाद और अलगाववाद की राजनीति करता रहा है। 2003 में गिलानी ने हुर्रियत कांफ्रेस का अलग गुट बनाकर खुद को लाइफटाइम चेयरमैन घोषित कर दिया था। जिसके पीछे हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं का संपत्ति विवाद था। इसी समय हुर्रियत के दूसरे गुट ने तहरीक-ए-हुर्रियत बना लिया था। इस गुट में जमात-ए-इस्लामी (जम्मू कश्मीर) का कब्ज़ा है। अशरफ सहराई, जिसका आतंकी बेटा जुनैद सहराई हाल ही में एक एनकाउंटर में मारा गया था, तहरीक-ए-हुर्रियत का चेयरमैन है। हालांकि सहराई भी गिलानी का ही करीबी माना जाता है, जिसके गिलानी के साये में ही अलगाववाद की राजनीति सीखी।
 
 

इनके अलावा हुर्रियत का एक और गुट है, हुर्रियत (एम) के नाम से, यानि हुर्रियत (मीरवाइज) गुट। मीरवाइज उमर फारूख इस गुट के चेयरमैन हैं।
 
 
पिछले साल अगस्त महीने में जब आर्टिकल 370 को हटाया गया और राज्य का पुनर्गठन किया गया तब सुरक्षा एजेंसियों ने हुर्रियत के बैकबोन माने जाने वाले जमात-ए-इस्लामी के कई नेताओं को गिरफ्तार किया था। जिसके बाद से हुर्रियत का भी लगभग खात्मा हो गया। हालांकि सैयद अली शाह गिलानी, अशरफ सहराई और मीरवाइज उमर फारूख, तीनों न तो नज़रबंद थे और न ही गिरफ्तार। फिर भी ये तीनों चुप ही रहे। प्रशासन से कार्रवाई के डर का आलम ये था कि पिछले लगभग एक साल में हुर्रियत ने घाटी में बंद की एक कॉल तक नहीं दी।
 
 
जानकारों के मुताबिक गिलानी को भी एहसास हो चुका है कि पिछले 11 महीनों में पाकिस्तान भी जम्मू कश्मीर के मामले में ज्यादा दखल देने में पूरी तरह नाकामयाब रहा। ऐसे में सैयद अली शाह गिलानी पहले से कब्र में पहुंच चुकी हुर्रियत से इस्तीफे की घोषणा करने अपनी रही-सही इमेज बचाने की जुगत में है। गौरतलब है कि गिलानी की हालत इन दिनों ठीक नहीं है।