पंडित प्रेमनाथ डोगरा: स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रणेता, #370 हटने के एक साल बाद कृतज्ञ राष्ट्र द्वारा विनम्र श्रद्धांजलि
   30-जुलाई-2020

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जम्मू कश्मीर से संबंधित आर्टिकल 370 को हटाने में पिछले 70 सालों में दर्जनों राष्ट्रवादी नेताओं ने कुर्बानी दी हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका प्रजा परिषद् आंदोलन और इस आंदोलन के नेता पंडित प्रेमनाथ डोगरा की रही। प्रजा परिषद् आन्दोलन स्वतंत्र भारत के इतिहास का प्रथम राष्ट्रवादी आन्दोलन था। जम्मू कश्मीर में भारत के संविधान को पूर्णतया लागू कराने और भारत की एकता और अखण्डता के लिए चलाये गये इस आन्दोलन के प्रणेता पं. प्रेमनाथ डोगरा थे। प्रजा परिषद् की स्थापना 17 नवंबर 1947 को जम्मू में की गई, हरि वजीर को इसका पहला अध्यक्ष बनाया गया। प्रजा परिषद् का आन्दोलन स्वतंत्र भारत का एक अद्भुत आन्दोलन था जिसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों की सहभागिता थी। परिषद् भारतीय संविधान को जम्मू कश्मीर मेंठीक उसी तरह लागू करवाना चाहती थी जैसे देश के अन्य राज्यों में लागू हो।
 
 
 
पं. प्रेमनाथ डोगरा का प्रजा परिषद् आन्दोलन के समर्थन के लिए देशभर में दौरा
 
 
पं. प्रेमनाथ डोगरा आन्दोलन के समर्थन के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर प्रजा परिषद् की मांगों को रखा। 5 अक्टूबर को पूणे में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि ‘राज्य के लोग, खासकर जम्मू, लद्दाख के लोग रियासत का भारत में पूर्ण एकीकरण चाहते है, वे शेख के स्वतंत्र कश्मीर की अवधारणा के खिलाफ है।’ महाराष्ट्र और कर्नाटक की सीमा के समीप सोलापुर में उन्होंने अपनी मांगों को दोहराते हुए कहा कि ‘प्रजा परिषद् राज्य का पूर्ण एकीकरण चाहती है, जबकि शेख सीमित एकीकरण के पक्ष में है। ’10 अक्टूबर को चेन्नई, 16 अक्टूबर को नागपुर में लोगों से मुलाकात कर अपनी मांगों से अवगत कराया। 20 अक्टूबर को दिल्ली में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि ‘हम जम्मू के लोग राज्य में नए झंडे फहराते हुए चुपचाप नहीं देख सकते।’ उनका कहना था कि ‘जब देश में चार करोड़ मुसलमान शांति और सम्मान से रह सकते है तो 20 लाख मुसलमानों के लिए अलग झंडे का कोई कारण नहीं है।’
 
 
 
प्रजा परिषद् की प्रमुख मांगे
 
 
- प्रजा परिषद् जम्मू कश्मीर को भारतीय गणराज्य में अन्य राज्यों के समान रखने की मांग की।
- जम्मू और लद्दाख को प्रशासन में समान स्थान दिलाना।
- पाकिस्तान द्वारा बलपूर्वक कब्जा किए गये क्षेत्र को खाली कराना।
- पूरे जम्मू कश्मीर राज्य में एक ऐसी आर्थिक नीति बनाना जिससे पिछड़े हुए क्षेत्र एवं वर्गो का विकास हो।
- जम्मू के पर्यटन स्थलों का विकास करना।
 
 
 

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प्रजा परिषद् आन्दोलन
 
 
 
14 नवंबर 1952 को प्रजा परिषद् ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए सत्याग्रह की शुरूआत की और इसी दिन जम्मू धर्मक्षेत्र से कुरूक्षेत्र में परिवर्तित हो गया। प्रजा परिषद् लोकतंत्र के लिए लड़ रही थी, शेख अब्दुल्ला जम्मू और लद्दाख संभाग के लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को देने को तैयार नहीं थे। 24 नवंबर को जम्मू में पं. प्रेमनाथ डोगरा के नेतृत्व में प्रजा परिषद् ने एक जुलूस निकाला। जिसमें उन्होंने कहा कि ‘प्रजा परिषद् की मांग राज्य में पूर्ण एकीकरण की है जो इसके साथ है हम उसके साथ है। जो इसके खिलाफ है, हम भी उसके खिलाफ है।’ आन्दोलनकारियों के हाथों में तिरंगा और गले में डा. राजेंद्र प्रसाद का चित्र था। 26 नवंबर को जम्मू में पं. प्रेमनाथ डोगरा ने एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए प्रजा परिषद् के चौदह साथियों के साथ पहली गिरफ्तारी दी। उनकी गिरफ्तारी के बाद जम्मू के लोगों ने जगह-जगह धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। पूरे जम्मू में पं. प्रेमनाथ डोगरा का दिया हुआ एक ही नारा गुँजने लगा “एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान- नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे। ” सांबा में डोगरी भाषा के प्रख्यात कवि रघुनाथ सिंह के नेतृत्व में भारी संख्या में लोगों ने प्रदर्शन किया। एक सप्ताह के भीतर ही प्रजा परिषद् का यह आन्दोलन सूदूर के गांवों तक जन आन्दोलन के रूप में फैल गया। स्थानीय स्तर पर ग्रामीणों ने स्थान-स्थान पर सरकारी भवनों में तिरंगा फहराने लगे।
 
 
 

सरकारी दमन चक्र
 
 
 
प्रजा परिषद् ने 14 दिसंबर को छंब तहसील के मुख्यालय पर तिरंगा फहराने का निश्चय किया। सत्याग्रही आन्दोलनकारी हाथ में तिरंगा और गले में डा. राजेंद्र प्रसाद का चल रहे थे। पुलिस को सख्त आदेश था कि किसी भी कीमत पर तिरंगा नहीं फहराना चाहिए। आन्दोलनकारी मेलाराम ने तिरंगा फहराने की कोशिश की, पुलिस ने गोली चला दी जिससे उनकी मौत हो गई, मेलाराम की मौतप्रजा परिषद् आन्दोलन की पहली जन शहादत थी। इसी तरह सुंदरबनी में तिरंगा फहराने के दौरान पुलिस और कश्मीर मिलिशिया (शेख अब्दुल्ला के कहने पर हत्या और आतंक फैलाने वाले हथियारबंद लोग) की गोली से तीन लोगों की मौत और 25 से ज्यादा लोग बुरी तरह घायल हो गये। 11 जनवरी 1953 को हीरानगर में पुलिस और कश्मीर मिलिशिया ने 200 राउंड फायरिंग की जिसमें दो लोगों की मौत और 70 से ज्यादा लोग घायल हुए। बाद में दोनों शव अधजले हालात में रावी नदी के तट पर मिले। 12 वर्ष के बालक तिलक को स्कूल में तिरंगा फहराने के आरोप में गिरफ्तार कर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया। थाने में अहिंसक सत्याग्रही आन्दोलनकारियों को जाड़े के दिनों में पीटने के बाद ठंडे पानी से नहलाया जाता था, बिना कपड़े के रात बितानी पड़ती थी। थाने में हर समय दो मुसलमान पुलिसकर्मी तैनात रहते थे ताकि कोई सत्याग्रहियों से उचित व्यवहार न कर सके।
 
 
 
 
शेख सरकार आन्दोलन को दबाने के लिए आत्याचार की सभी सीमाएं लांघ गई। सरकार सत्याग्रही आन्दोलनकारियों की संपत्ति पर जबरन कब्जा कर रही थी।गांवों में बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गो के साथ अमानवीय बर्ताव किया जाता था। फसलों को नष्ट करना, घरों को धराशायी करना, संपत्ति नीलाम कराकर अर्थदंड वसूल करना आदि तरह-तरह के अत्याचार किया जाने लगा। कश्मीरी मिलिशिया लोगों को नेशनल कांफ्रेन्स में शामिल होने के लिए मजबूर कर रही थी।
 
 
 
पं. जवाहरलाल नेहरु और शेख अब्दुल्ला अपने को जन आन्दोलन की उपज मानते थे, लेकिन दोनों अपनी हठधर्मिता के कारण जनमानस के मांगों को बर्बरतापूर्वक दबाने का प्रयास कर रहे थे। जम्मू कश्मीर के हीरानगर में पुलिस गोली से मारे गए दो प्रदर्शनकारियों की अस्थियाँ श्रद्धांजलि के लिए दिल्ली आने वाली थी। पुलिस ने श्रद्धांजलि सभा में शामिल होने से पहले हीधारा 144 के भंग करने के आरोप में डा. श्यामाप्रसाद मुकर्जी, निर्मलचंद्र चटर्जी, नंदलाल शर्मा और वैद्य गुरुदत्त को गिरफ्तार कर लिया। विरोध करने पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया और आंसु गैस छोडे, इस बर्बर पुलिस लाठी चार्ज में सैकड़ो लोग गंभीर रूप से घायल हुए।
 
 
 
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प्रजा परिषद् आन्दोलन को देशभर से जनसमर्थन
 
 
 
देशभर से प्रजा परिषद् के राष्ट्रवादी आन्दोलन को भारी जनसमर्थन मिला।प्रजा परिषद् देश के लोगों को शेख अब्दुल्ला के देशघाती नीतियों के बारे में बताने के हर अवसर का उपयोग कर रही थी। उत्तर प्रदेश,बिहार, दिल्ली, मध्य भारत, पंजाब से भारी संख्या में लोग जम्मू पहुंचकर आन्दोलन को मजबूती दे रहे थे। 29-31 दिसंबर 1952 को भारतीय जनसंघ की कानपुर में पहला अखिल भारतीय अधिवेशन हुआ जिसमें जनसंघ अध्यक्ष डा. श्यामाप्रसाद मुकर्जी ने प्रजा परिषद् आन्दोलन का समर्थन किया।
 
 
 
उन्होंने कहा राज्य और केंद्र सरकार इस आन्दोलन को जान-बूझकर गलत ढंग से पेश कर रही है।डा. मुखर्जी इस आन्दोलन को अपना समर्थन देने के लिए जम्मू पहुंचे, कठुआ में उन्होंने कहा कि ‘मैं जम्मू कश्मीर के लिए या तो भारत का संविधान लाऊँगा या अपने प्राण दूंगा।’ 23 जून 1953 को जम्मू कश्मीर के एकीकरण के प्रयास में डा. श्यामाप्रसाद मुकर्जी ने अपना बलिदान दिया। अंततः डा. श्यामाप्रसाद मुकर्जी के बलिदान, पंडित प्रेमनाथ डोगरा और प्रजा परिषद् आन्दोलन में शामिल लाखों सत्याग्रहियों के सामने सरकार झुकने को मजबूर हुई और जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान के बड़े भाग को लागू करना पड़ा।
 
 
इसी आंदोलन का नतीज़ा था कि अगले 70 सालों तक जम्मू कश्मीर में लोग राष्ट्रवाद की प्रेरणा पाते रहे और आर्टिकल 370 समेत अलगाववादी सोच के खिलाफ झंडा बुलंद करते रहे। नतीजे में 5 अगस्त 2019 को देश की संसद ने संविधान से आर्टिकल 370 को निरस्त कर पंडित प्रेमनाथ डोगरा को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की। राष्ट्र हमेशा ऐसे महान नेता के प्रति कृतज्ञ रहेगा।