जानिए कारगिल युद्ध के शहीद कैप्टन सौरभ कालिया की शौर्यगाथा
   01-अगस्त-2020

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कैप्टन सौरभ कालिया भारतीय थलसेना के एक वो जांबाज़ ऑफिसर हैं, जिनकी शौर्यगाथा के बिना कारगिल युद्ध की कहानी शुरू ही नहीं हो सकती। जिन्होंने कारगिल युद्ध के समय अदम्य साहस और वीरता की मिसाल कायम की थी। सौरभ कालिया वह जांबाज ऑफिसर थे, जिन्हें कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना द्वारा बंदी बनाकार बुरी तरह से यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया था। कैप्टन सौरभ कालिया की जीवनी अदम्य साहस और वीरता की कहानी है। गश्त लगाते समय पाकिस्तान ने सौरभ कालिया और इनके पाँच अन्य साथियों को ज़िन्दा पकड़कर कैद में रखा था, जहाँ पर पाकिस्तानी सेना ने उन्हें प्रताड़ित किया और क्रूरतापूर्वक उनकी हत्या कर दी। पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रताड़ना के समय इनके कानों को गर्म लोहे की रॉड से छेदा गया, आँखें फोड़ दी गयीं और निजी अंग काट दिये गये थे। इतना दर्द  सहने के बावजूद सौरभ समेत अन्य भारतीय सैनिकों ने साहस का परिचय देते हुये दुश्मनों को कोई सैन्य खुफिया जानकारी नहीं दी थी।
 
 
 
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सौरभ कालिया का जन्म 29 जून 1976 को अमृतसर, भारत में हुआ था। इनकी माता का नाम विजया व पिता का नाम डॉ॰ एन॰ के॰ कालिया है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा डी॰ए॰वी॰ पब्लिक स्कूल पालमपुर से हुई। इन्होंने स्नातक उपाधि (बी॰एससी॰ मेडिकल) एच.पी कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश से सन् 1997 में प्राप्त की। वे अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र थे, और अपने स्कूल के वर्षों में कई छात्रवृत्तियाँ प्राप्त कर चुके थे। अगस्त 1997 में संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा द्वारा सौरभ कालिया का चयन भारतीय सैन्य अकादमी में हुआ, और 12 दिसंबर 1998 को वे भारतीय थलसेना में कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए। उनकी पहली तैनाती 4 जाट रेजिमेंट (इन्फ़ॅण्ट्री) के साथ कारगिल सॅक्टर में हुई। 31 दिसंबर 1998 को जाट रेजिमेंटल सेंटर, बरेली में प्रस्तुत होने के उपरांत वे जनवरी 1999 के मध्य में कारगिल पहुँचे।
 
 
 
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 कारगिल युद्ध
 
सौरभ की नौकरी को कुछ ही महीने हुए थे। वह कारगिल में अपने साथियों के साथ अपनी पोस्ट पर मुस्तैद थे. इसी बीच 15 मई 1 999 को उन्हें एक खुफिया सूचना मिली। जिससे पता चला कि पाकिस्तानी घुसपैठिये भारतीय सीमाओं की ओर बढ़ रहे थे। ये बहुत महत्वपूर्ण सूचना थी, घुसपैठिये किसी भी बड़ी दुर्घटना को अंजाम दे सकते थे। सौरभ ने इसको गंभीरता से लेते हुए अपनी तफ्तीश शुरु कर दी। वह अपने पांच अन्य सैनिकों अर्जुन राम, भंवरलाल बागारीया, भिका राम, मूल राम और नरेश सिंह के साथ पेट्रोलिंग पर निकल गये। उन्हें इस बात की फिक्र नहीं थी कि दुश्मन कितनी संख्या में है। उन्हें तो बस अपने देश की और अपनी ड्यूटी की फिक्र थी। तेजी से उन तक पहुंचने के लिए सौरभ अपने साथियों के साथ आगे बढ़े। वह जल्द ही वहां पहुंच गये जहां दुश्मन के होने की खबर थी। पहले तो सौरभ को लगा कि उन्हें मिला इनपुट गलत हो सकता है, लेकिन दुश्मन की हलचल ने अपने होने पर मुहर लगा दी। वह तेजी से दुश्मन की ओर बढ़े। तभी दुश्मन ने उन पर हमला कर दिया। दुश्मन संख्या में बहुत ज्यादा थे, तकरीबन 200 की संख्या में थे। सौरभ ने स्थिति को समझते हुए तुरंत अपनी पोजीशन ले ली। दुश्मन सैनिकों के पास भारी मात्रा में हथियार थे। वह एके 47, ग्रेनेड जैसे विस्फोटक से लैस थे। इधर सौरभ और उनके साथियों के पास ज्यादा हथियार नहीं थे। इस लिहाज से वह दुश्मन की तुलना में बहुत कमजोर थे, पर उनका ज़ज्बा दुश्मन के सारे हथियारों पर भारी था।
 
 
 
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 दुश्मन की गिरफ्त में ऐसे आये कालिया
 

सौरभ ने सबसे पहले दुश्मन की सूचना अपने आला अधिकारियों को दी। फिर उन्होंने अपनी टीम के साथ तय किया कि वह आंखिरी सांस तक दुश्मन का सामना करेंगे और उन्हें एक इंच भी आगे बढ़ने नहीं देंगे। फिर तो सौरभ अपने साथियों के साथ दुश्मन की राह का कांटा बन कर खड़े रहे। उनकी रणनीतियों के सामने दुश्मन की बड़ी संख्या भी पानी मांगने लगी थी. हालांकि, दोनों तरफ की गोलाबारी में सौरभ और उनके साथी बुरी तरह ज़ख़्मी जरूर हो गये थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वह मोर्चे पर वीरता के साथ डटे हुए थे। दुश्मन बौखला चुका था, इसलिए उसने पीठ पर वार करने की योजना बनाई. इसमें वह सफल रहा. उसने चारों तरफ से सौरभ को उसकी टीम के साथ घेर लिया था. वह कभी दुश्मन के हाथ नहीं आते, लेकिन उनकी गोलियां और बारुद खत्म हो चुके थे. दुश्मन ने इसका फायदा उठाया और उन्हें बंदी बना लिया।
 
 
 
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दुश्मनों की कोशिश थी कि सौरभ और उनके साथियों से भारतीय सेना की खुफिया जानकारी मिल सके।  इसलिए उन्होंने भारतीय सैनिकों को लगभग 22 दिनों तक अपनी हिरासत में रखा। दुश्मनों की लाख कोशिशों के बावजूद कैप्टन सौरभ ने एक भी जानकारी नहीं दी। इस कारण दुश्मन ने यातनाओं का दौर शुरु कर दिया। सभी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए सौरभ कालिया के कानों को गर्म लोहे की रॉड से छेदा गया,उनकी आंखें निकाल ली गई। हड्डियां तोड़ दी गईं। यहां तक की उनके निजी अंग भी दुश्मन ने काट दिए थे। बावजूद इसके वह सौरभ का हौसला नहीं तोड़ पाए थे। आखिरी वक्त तक उन्हें अपना देश याद रहा। उन्होंने सारे दर्द का हंसते-हंसते पी लिया। अंत में जब वह दर्द नहीं झेल सके तो उन्होंने मौत को गले लगा लिया।