#LAC पर चीनी आक्रमकता एक बहाना; असली मकसद है सीपेक बचाने के लिए गिलगित-बल्तिस्तान को पाकिस्तान का 5वां सूबा बनाना, चायनीज़ ग्रैंड प्लान #Exposed
   24-सितंबर-2020
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16 सितंबर को पाकिस्तान आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा और आईएसआई चीफ ले. जनरल फैज़ हमीद ने रावलपिंडी के जनरल हेडक्वार्टर्स में एक खुफिया मीटिंग बुलाई। जिसमें पाकिस्तान के तमाम पॉलिटिकल पार्टीज़ के नुमाइंदे मौजूद थे। जिसमें सत्ताधारी पीटीआई के नेता, कश्मीर अफेयर्स मिनिस्टर अली अमीन गंडापुर, रेलवे मिनिस्टर शेख रशीद के अलावा नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता और पीएमएल-एन प्रेज़िडेंट शाहबाज़ शरीफ, पीपीपी चेयरमैन बिलावल भुट्टो जरदारी, जमात-ए-इस्लामी के शिराज-उल-हक, पीएमए-एन लीडर ख्वाजा आसिफ, एहसान इकबाल, पीपीपी सीनेटर शेरी रहमान समेत 15 बड़े लीडर मौजूद थे। मीटिंग में आर्मी चीफ बाजवा ने तमाम लीडर्स को एक फरमान सुनाया कि पाकिस्तान जल्द ही गिलगित-बल्तिस्तान (POTL) को पांचवा सूबा बनाने जा रहा है और इसके लिए चीन का भारी दबाव पाकिस्तानी सरकार पर है, लिहाजा तमाम पार्टीज़ इसको लेकर कोई तमाशा खड़ा न करें, इसीलिए ये मीटिंग बुलाई गयी है। आर्मी चीफ के इस फरमान को सुनकर तमाम लीडर्स हैरान थे, इस दौरान पीपीपी सीनेटर शेरी रहमान ने सवाल उठाया कि इस मीटिंग में पीएम इमरान खान क्यों मौजूद नहीं है। क्योंकि गिलगित बल्तिस्तान का फैसला पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में होना चाहिए और आर्मी क्यों इसको लीड कर रही है।
 
 
 
इस मीटिंग में आर्मी चीफ ने बताया कि चीन के लगातार तमाम गिलगित-बल्तिस्तान को लेकर पॉलिटिकल पार्टीज़ को बताया कि फैसला हो चुका है, इसीलिए तमाम पार्टीज़ सिर्फ ये राय दें कि ये काम गिलगित-बल्तिस्तान में होने वाले चुनावों से पहले लिया जाये या फिर बाद में। पुख्ता सूत्रों के मुताबिक इसपर सत्ताधारी पीटीआई ने चुनावों के बाद में ये फैसला लेने का सुझाव दिया। जबकि बाकी तमाम पॉलिटिकल पार्टी ने चुनाव से पहले ही इसपर फैसला लेने को कहा। लेकिन पीएमएल-एन के शाहबाज़ शरीफ औऱ पीपीपी चेयरमेन बिलावल भुट्टो ने फिर से दोहराया कि आर्मी को इस फैसले का हक नहीं है, ये फैसला नेशनल असेंबली में लिया जाना है। तभी वो इसका समर्थन करेंगे। साफ था इस मीटिंग में पीपीपी और पीएमएल-एन ने गिलगित-बल्तिस्तान को लेकर किसी भी गैर-संवैधानिक फैसले में हिस्सा लेने से मना कर दिया। स्पष्ट था आर्मी हेडक्वार्टर में गिलगित-बल्तिस्तान को लेकर पॉलिटिकल पार्टीज़ में कोई समहति नहीं बनी। मीटिंग चूंकि सीक्रेट थी, लिहाजा आर्मी चीफ ने इसको लेकर पब्लिक में न बोलने की ताकीद दी। लेकिन तमाम विपक्षी पार्टियों ने आर्मी और इमरान खान सरकार के खतरनाक इरादों के खिलाफ मोर्चा खोलने का निर्णय लिया और 21 सितंबर को मुख्य विपक्षी पार्टियों ने एक ऑल पार्टीज़ कॉन्फ्रेंस की। जिसमें ऐलान किया गया कि तमाम पार्टियां मिलकर एक पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट चलायेंगी और इमरान सरकार-आर्मी के गठजोड़ वाली सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए 3 फेज़ में मूवमेंट शुरू किया जायेगा। इस कॉन्फ्रेंस में लंदन से ऑनलाइन भाषण के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने आर्मी पर सीधा हमला बोलते हुए स्पष्ट किया कि पाकिस्तान में आर्मी को अपनी मनमानी खत्म करनी होगी और सत्ता से दखल देना बंद करना होगा। नवाज शरीफ ने आर्मी को सीधे-सीधे “a state above the state in the country” घोषित कर दिया। नवाज शरीफ ने अपने भाषण में आर्मी को चुनावों में किसी तरह के दखल न देने की चेतावनी दी।
 
 
 
 
 
इसके अलावा इस काँफ्रेस में पीपीपी चेयरमैन बिलावल भुट्टो ने आर्मी पर कई बार तीखे हमले किये औऱ इमरान खान की सेलेक्टेड सरकार को बचाने का सीधा आरोप लगाया। 
 
 
गिलगित-बल्तिस्तान को लेकर पाकिस्तान आर्मी के मंसूबों पर ये कॉन्फ्रेंस पानी फेरने जैसी साबित होते देख आर्मी ने खुद 16 सितंबर को हुई मीटिंग की डिटेल्स लीक करनी शुरू की। पब्लिक में इस तरह की इमेज पेश करने की कोशिश की गयी कि अगर पीएमएल-एन और पीपीपी का पाकिस्तान आर्मी में भरोसा नही है, तो वो रावलपिंडी में मीटिंग में क्यों नहीं गये और उस वक्त क्यों भीगी-बिल्ली बने रहे। इन डिटेल्स को लीक किया पाकिस्तान के रेलवे मिनिस्टर शेख रशीद ने। शेख रशीद ने आर्मी का बचाव करते हुए कहा कि रावलपिंडी में हुई मीटिंग में आर्मी चीफ ने तमाम पॉलिटिकल पार्टीज़ को सीधे-सीधे कहा था कि आर्मी का पॉलिटिक्स में कोई दखल नहीं है। लेकिन आर्मी चीफ की सफाई के बावजूद भी पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियां आर्मी पर हमला कर रही हैं।
  
 
गिलगित-बल्तिस्तान में चुनाव
 
 
 
पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक गिलगित-बल्तिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा नहीं और वो एक खुदमुख्तार इलाका है। इसके लिए पाकिस्तान यहां असेंबली चुनाव कराने का ढोंग भी रचता आया है। पीएमएल-एन की पिछली सरकार का कार्यकाल जून में पूरा हो जाने के बाद 33 सीटों वाली असेंबली के चुनाव 15 अगस्त से पहले होना तय था। लेकिन कोविड का बहाना लेकर पाकिस्तान सरकार ने ये इलेक्शन 15 नवंबर को कराने की घोषणा की है। लेकिन ताज़ा खुलासे से पता चल रहा है कि चुनाव इसीलिए टाले गये क्योंकि इमरान खान सरकार ये फैसला नहीं कर पायी है कि 5वां सूबा इलेक्शन से पहले बनाया जाये या बाद में। क्योंकि अगर इमरान सरकार ये फैसला पहले कर लेती है तो एसेंबली चुनाव में उसको भारी हार का सामना करने पड़ेगा। क्योंकि पाकिस्तान से कब्जे के खिलाफ पहले ही इस क्षेत्र में आंदोलन जारी है। अगर इमरान सरकार ऐसी हरकत करती है तो जाहिर है उन्हें औऱ गुस्से का सामना करना पडेगा। इस बार एसेंबली इलेक्शन में पीटीआई के पक्ष में धांधली करना भी पाकिस्तान आर्मी के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि विपक्षी दलों ने पहले ही पाकिस्तानी आर्मी के खिलाफ इलेक्शन में धांधली का आरोप लगाकर मोर्चा खोल रखा है। इधर पीपीपी चेयरमेन बिलावल भुट्टो जरदारी ने दो कदम आगे बढ़कर गिलगित-बल्तिस्तान को और अधिकार देने की चुनावी घोषणा कर डाली है। इससे इमरान सरकार पेशोपेश में है।
 
 
 
 
  
 
 
 
  
हालांकि शेख रशीद ने रावलपिंडी में हुई मीटिंग के मकसद पर कुछ नहीं बोला, लेकिन शेख रशीद के हमले के बाद पीपीपी सीनेटर शेरी रहमान ने एक टीवी शो में पाकिस्तान आर्मी के सीक्रेट प्लान की पोल खोल दी और बताया कि आर्मी चीफ ने गिलगित बल्तिस्तान को लेकर मीटिंग बुलाई थी, लेकिन पीपीपी ने स्पष्ट किया है कि गिलगित-बल्तिस्तान में फ्री एंड फेयर इलेक्शन होने चाहिए और उसको लेकर कोई भी फैसला नेशनल असेंबली में लिया जाना चाहिए। 
 
 
  
 
 
इसके बाद एक के बाद एक नेताओं ने टीवी चैनल्स पर गिलगित-बल्तिस्तान को लेकर पाकिस्तान आर्मी के खुफिया ग्रैंड-प्लान को पोल खोल दी। बड़बोले मंत्री शेख रशीद ने असली सच उगलते हुए बताया कि दरअसल LAC पर चीन भारत के खिलाफ जो साजिश लद्दाख में रच रहा है। उसका असली मकसद गिलगित-बल्तिस्तान से होकर गुजरने वाले सीपेक (चायना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर) को सुरक्षित करना है और इसीलिए लिए चीन का दबाव है कि जल्द गिलगित-बल्तिस्तान को पाकिस्तान का पांचवा सूबा घोषित किया जाये, ताकि भविष्य में इसको लेकर हमेशा के लिए झगड़ा खत्म किया जा सके। शेख रशीद ने स्पष्ट बताया कि पाकिस्तान के पास और कोई चारा भी नहीं है,बल्कि पाकिस्तान को चीन के इस फैसले को मानना ही पड़ेगा और गिलगित-बल्तिस्तान को लेकर फैसला लेना ही पड़ेगा। 
 
 
  
 
  
गिलगित-बल्तिस्तान: चीन की साजिश बेनकाब
 
 
दुनिया को कोविड महामारी में धकेलने के बावजूद भी चीन ने लद्दाख में झड़प क्यों कि इसको लेकर तमाम तरह के कयास लगाये जा रहे थे। लेकिन धीरे-धीरे चीन की साजिश का असली मकसद साफ होने लगा है। दरसअल चीन भारत को लद्दाख में उलझाकर गिलगित-बल्तिस्तान में अपने महत्तवाकांक्षी इकोऩॉमिक कोरिडोर सीपेक को सुरक्षित करने की साजिश में लगा है। भारतीय संसद द्वारा जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 370 खत्म करने के बाद चीन को समझ में आया कि अब जम्मू कश्मीर मुद्दा नहीं बचा। बल्कि मोदी सरकार ने अब गोलपोस्ट बदलकर पीओजेके औऱ गिलगित-बल्तिस्तान में कर दी है। चीन अच्छी तरह समझता है कि मोदी सरकार पाकिस्तान के कब्ज़े वाले दोनों ही क्षेत्रों की कब्ज़ा वापसी के लिए वचनबद्ध है, लिहाजा मोदी सरकार आज नहीं तो कल जल्द ही इनकी वापसी को लेकर कोई कार्रवाई कर सकता है। ऐसे स्थिति में गिलगित-बल्तिस्तान से होकर गुजरने वाले चायना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर (सीपेक) का भविष्य क्या होगा। इसको लेकर चीन बैचेन था, लिहाजा पिछले कुछ महीनों में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कम से कम 3 बार दौरा किया। पाकिस्तान को आर्थिक सहायता के बदले में चीन ने पाकिस्तान को गिलगित-बल्तिस्तान को 5वां सूबा जल्द बनाने का फैसला करने पर राजी नहीं। हालांकि इमरान सरकार इस पर तैयार नहीं थी, क्योंकि इस सीधा नतीज़ा भारत और पाकिस्तान युद्ध हो सकता है, लेकिन की ज़िद और आश्वासन के बाद पाकिस्तान ने इसको लागू करने के लिए मज़बूर होना पड़ा। पाकिस्तान में डूबती इकोनॉमी के चलते आम लोगों के हमले झेल रही इमरान सरकार के लिए भी ये बड़ा वरदान साबित हो सकता है। लिहाजा इमरान सरकार ने पाकिस्तान आर्मी के फैसले पर औपचारिक हामी भर दी।
  
 
इसी के बाद लद्दाख में चीनी सेना द्वारा आक्रामक रवैया देखने को मिला, जोकि अब तक जारी है। एक टीवी चैनल को दिये इंटरव्यू में पाकिस्तान के रेलवे मिनिस्टर शेख रशीद ने भी अपने बड़बोलेपन में चीन के इसी प्लान पर मुहर लगा दी। 
 
 
दअरसल चीन पाकिस्तान में सीपेक प्रोजेक्ट पर 42 बिलियन डॉलर खर्च कर चुका है और इससे जुड़े प्रोजेक्ट्स पर कुल 87 बिलियन डॉलर तक खर्च करने का प्लान है। ये कोरिडोर चीन के “बेल्ट एंड रोड इनिसिएटिव” प्लान का महत्तवपूर्ण हिस्सा है। चीन इस कोरिडोर के जरिये ग्वादर पोर्ट से गिलगित-बल्तिस्तान होते हुए सीधे चीन में व्यापारिक आवाजाही शुरू करने की तैयारी में जुटा है। इससे चीन अफ्रीका, यूरोप और गल्फ देशों से आसानी से जुड़ पायेगा। ऐसे में अगर भारत अगर गिलगित-बल्तिस्तान पर अपने दावे को मजबूती से उठाता है, तो हिस्सा विवादित होने के चलते दुनिया के तमाम देश इस कोरिडोर के जरिये व्यापार करने मना कर सकते हैं। जिससे चीन का असली बेल्ट एंड रोड इनिसिएटिव प्लान परवान नहीं चढ़ पायेगा।
 
 

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सीपेक अलावा चीन ने अपने विस्तारवादी प्लान को गिलगित-बल्तिस्तान में भी लागू कर दिया है। चीन ने पाकिस्तान सरकार की मदद से दर्जनों हाइड्रो प्रोजेक्ट बनाने का काम शुरु कर रखा है। जिसका सीधा मकसद गिलगित-बल्तिस्तान के वॉटर-रिसोर्सेस पर कब्ज़ा करना है।  
 
ऐसे में चीन पास एक ही प्लान बचता है, पहले गिलगित-बल्तिस्तान को पाकिस्तान का सूबा घोषित करवाया जाये औऱ फिर यहां मनमाने ढंग से अपना विस्तारवादी एजेंडा लागू किया जाये। लेकिन भारत को चुप कराने के लिए चीन ने लद्दाख में झड़प शुरु कर युद्ध जैसे हालात पैदा किये ताकि भारत गिलगित-बल्तिस्तान के फैसले में दखल देने से हिचकिचाये। लेकिन जिस तरीके से भारत ने लद्दाख में चीन के दो कदम आगे बढ़कर करारा जवाब दिया है। उससे चीन के गिलगित-बल्तिस्तान प्लान के मंसूबे फिलहाल खटाई में दिखायी दे रहे हैं। अगर गिलगित-बल्तिस्तान प्लान लागू किया भी जाता है तो साफ है कि भारत चुप नहीं बैठेगा। 
 
 
पाकिस्तान की उलझन 
 
गिलगित-बल्तिस्तान को पाकिस्तान का सूबा बनाने के लिए इमरान सरकार औऱ आर्मी के सामने 2 बड़ी उलझनें हैं। एक, पाकिस्तान जम्मू कश्मीर को लेकर तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सयुंक्त राष्ट्र प्रस्तावों का हवाला देकर राजनीति करता रहा है। भारत के खिलाफ उसका सिर्फ एक ही हथियार है सयुंक्त राष्ट्र का प्रस्ताव, जिसके मुताबिक पाकिस्तान उसके कब्ज़े वाले हिस्से में कोई मैटीरियल चेंज यानि भौतिक बदलाव नहीं कर सकता। एक अन्य प्रस्ताव जिसमें अगस्त 1948 में संपूर्ण जम्मू कश्मीर में जनमत संग्रह किया जाने का प्रस्ताव रखा गया था, की पहली ही शर्त ये थी कि पाकिस्तान को उसके कब्ज़े वाले हिस्से से अपनी सेनाएं हटानी होंगी और वहीं यथास्थिति बनानी होगी जोकि अधिमिलन से पहले थी। पाकिस्तान के हमले के दौरान जो लोग इन हिस्सों से विस्थापित हुए थे वो लोग वापिस अपने घरों में जायेंगे और भारतीय सेना पूरे जम्मू कश्मीर में तैनात की जायेगी। इसके बाद शांति स्थापित होने के बाद यूएन की देखरेख में जनमत-संग्रह का प्रस्ताव रखा गया था। लेकिन पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव पर कभी अमल ही नहीं किया। जबकि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन करते हुए पाकिस्तान ने गिलगित-बल्तिस्तान और पीओजेके में मैटीरियल चेंज करने जारी रखा।
  
 
पाकिस्तान ने अगस्त 2019 के बाद से फिर से संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का हवाला देकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जम्मू कश्मीर को उछालना शुरु किया है। ऐसे में अगर पाकिस्तान खुद गिलगित-बल्तिस्तान को अपना 5वां सूबा बनाता है तो ये खुद उसी की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के खिलाफ होगा। इसका सीधा मतलब ये होगा कि पाकिस्तान हमेशा के लिए अब तक जम्मू कश्मीर को लेकर की गयी कूटनीति को खुद ही त्याग रहा है। इसके बाद पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का हवाला देकर जम्मू कश्मीर पर राजनीति कर नहीं पायेगा।
  
 
पाकिस्तान के सामने दूसरी बड़ी उलझन मोदी सरकार। पाकिस्तान समझ चुका है कि मोदी सरकार ने पिछले कुछ सालों में जिस तरीके से बोल्ड फैसले लिए हैं ऐसे में गिलगित-बल्तिस्तान में किसी भी बदलाव पर भारत चुप नहीं बैठेगा और नतीज़ा युद्ध हो सकता है। ऐसे में पाकिस्तान गिलगित-बल्तिस्तान को लेकर ऐसी हरकत करने में सोच भी नहीं रहा है। हालांकि चीन ने दोनों ही मामलों में पाकिस्तान का साथ देने का भरोसा दिया है। लेकिन इमरान सरकार औऱ पाकिस्तान आर्मी इसको लेकर अभी भी पेशोपेश में हैं।