प्रजा परिषद् के अध्यक्ष वकील रूपचंद नंदा, जिन्होंने 1949 में संभाली थी पहले सत्याग्रह मूवमेंट की कमान
   24-सितंबर-2020


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रूपचंद नंदा पेशे से एक वकील थे। उन्होंने आजादी के पहले जम्मू-कश्मीर के सार्वजनिक गतिविधियों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन उनका नाम चर्चा में तब आया था जब उन्होंने 1943 में भोजन पर आंदोलन किया था। आंदोलन में 24 सितंबर के दिन पुलिस की फायरिंग में 9 लोगों की मौत हुई थी। जिसके बाद महाराजा हरि सिंह ने जांच आयोग नियुक्त किया था, जिसके प्रमुख बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस थे। जांच में पुलिस के दो अधिकारियों को भी सेवा से बर्खास्त किया गया था। उस वक्त पंजाब के डॉ सैफ-उद-दिन किचलू और कुछ अन्य वकीलों के साथ वकील रूपचंद नंदा ने आयोग के समक्ष सार्वजनिक कारण की पैरवी की थी। 1949 की शुरुआत में सार्वजनिक कारणों से उनकी सेवाओं को देखते हुये उन्हें एक कठिन परिस्थिति में प्रजा परिषद का नेतृत्व करने का काम सौंपा गया था।


प्रजा परिषद् के सत्याग्रह का निर्णय

प्रजा परिषद् ने शेख अब्दुल्ला सरकार के प्रेमनाथ डोगरा को छोड़ देने के आश्वासन पर अपना आंदोलन रोका हुआ था। लेकिन सरकार अपने आश्वासन से फिरने लगी थी। अपनी मांग मनवाने के लिए प्रजा परिषद् ने जून 1949 तक सभी विधि सम्मत तरीकों का इस्तेमाल कर रही थी। प्रजा परिषद् ने राज्य सरकार और भारत सरकार को ज्ञापन दिये थे और परिषद के शिष्टमंडल ने सरकार से मुलाकात भी की थी। लेकिन इसका किसी भी सरकार पर कोई असर नहीं हुआ था। जून महीने में शेख सरकार ने परिषद् के अनेक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के वारंट निकाल दिये थे। जिससे यह साफ हो चुका था कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और प्रजा परिषद में सहयोग की सभी संभावनाएं समाप्त हो चुकी थी। जिसके बाद 23 जून, 1949 को प्रजा परिषद की कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई। बैठक में पारित किया गया कि जम्मू के लोगों का वर्तमान सरकार से विश्वास उठ गया है। जम्मू के लोगों ने शेख प्रशासन की तरफ सहयोग का हाथ बढ़ाया था, लेकिन वह ठुकरा दिया गया। वर्तमान सरकार राज्य के लोगों की निर्वाचित प्रतिनिधि सरकार नहीं है। यह ना तो जम्मू के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है और ना ही उनकी इच्छाओं का सम्मान करती है। इसलिए जम्मू के लोगों से हो रहे अन्याय और उनकी मांगों की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रजा परिषद ने शांतिपूर्वक और अहिंसक ढंग से सत्याग्रह की शुरूआत करने का निर्णय लिया है।
परिषद् की कुछ प्रमुख मांगे थी।

1. परिषद् के नेताओं व कार्यकर्ताओं को तुरंत रिहा किया जाये। साथ ही उन पर लगाये गये जुर्माने वापस लिये जाएं।
2. जम्मू के जिन क्षेत्रों, मिलन रामबन, किश्तवाड़ इत्यादि को जम्मू संभाग से अलग किया गया है, उन्हें तुरंत वापस जम्मू में शामिल किया जाए।
3. प्रजा परिषद को एक मान्यता प्राप्त प्रतिनिधि दल के तौर पर काम करने की अनुमति मिले।

4. सरकार जम्मू के साथ भेदभाव की नीति को बंद करे।


22 जून को ही प्रजा परिषद के अध्यक्ष लाला रूपचंद नंदा ने राज्य के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला और उप-प्रधानमंत्री बखनी गुलाम मोहम्मद को तार देकर कहा कि परिषद् ने सरकार के आश्वासन पर फरवरी में अपना आंदोलन स्थगित किया था। लेकिन सरकार ने अपने वादे को पूरा नहीं किया है। इसलिए परिषद् 23 जून से अपना आंदोलन पुनः प्रारंभ कर रही है। सरकार ने आंदोलन का मुकाबला करने के लिए पहले ही कश्मीर सुरक्षा नियमों की धारा 50 के तहत आंदोलनात्मक गतिविधियों पर रोक लगाई हुई थी। 23 जून को जब परिषद् के कार्यकर्ताओं ने धारा 50 का उल्लंघन कर “बंदी नेता रिहा करो”,  “प्रेमनाथ डोगरा को छोड़ दो” के नारे लगाते हुये जम्मू में प्रदर्शन किया। तब पुलिस ने दस प्रदर्शनकारियों को बंदी बना लिया। जिसके बाद अनेक कार्यकर्ता भूमिगत हो गये और कई कार्यकर्ता राज्य के अन्य भागों से पकड़े गये थे। उसके दो दिन बाद ही सरकार ने परिषद् के अध्यक्ष रूपचंद नंदा को सुरक्षा नियमों की धारा 24 के अंतर्गत जम्मू नगर से निष्कासित कर दिया। उन्हें 100 मील दूर डोडा में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कहा गया, जहाँ उन्हें नजरबंद किया जाना था। लेकिन रूपचंद नंदा बाद में स्वयं ही सत्याग्रह करके गिरफ्तार हो गये थे। जिसके बाद उन्हें सजा हुई और वह पैरोल पर छूटकर बाहर आ गये।  सत्याग्रह की नीति पैरोल पर छूटने के पक्ष में नहीं थी। नंदा के इस व्यवहार से कार्यकर्ताओं में कुछ निराशा फैली परंतु तभी उनके लड़के माधोलाल ने अपने आपको सत्याग्रह के लिए प्रस्तुत कर दिया। जम्मू के हरि टॉकीज के सामने मुलख राज, नरसिंह दयाल शर्मा, चौधरी चग्गर सिंह और माधो लाल ने धारा 144 का उल्लंघन करते हुये सत्याग्रह किया। हेड कांस्टेबल गांधर क्ली ने सभी को गिरफ्तार कर लिया और जम्मू के सिटी थाना में ले जाकर हवालात में बंद कर दिया। गिरफ्तारी के बाद रात को डेढ़-दो बजे हवालात से निकालकर उनकी बहुत पिटाई भी की गई थी। हेड कांस्टेबल चाहता था कि सभी लड़के माफी मांग लें। लेकिन चारों में से कोई भी टस से मस नहीं हुआ था। सुबह होते ही चारों को जेल भेज दिया गया था।  इस सत्याग्रह की पूरे शहर में बहुत दिनों तक चर्चा होती रही, क्योंकि माधी लाल ने पिता के मना करने पर भी सत्याग्रह किया था।
 

वहीं शेख अब्दुल्ला की सरकार ने सत्याग्रहियों को मारने-पीटने की सभी हदें पार कर दी थी। तब प्रजा परिषद् ने निर्णय लिया कि दिल्ली जाकर केंद्रीय नेताओं को शेख सरकार के लोकतंत्र-विरोधी रवैये के बारे में बताया जायेगा। जिसके बाद कविराज विष्णु गुप्त और चतुरु राम डोगरा समेत कुछ लोग दिल्ली पहुँचे। प्रतिनिधिमंडल में श्रीमती शक्ति शर्मा और सुशीला मैंगी भी शामिल थी। दिल्ली में प्रतिनिधिमंडल ने कई नेताओं से मुलाकात की और जम्मू में शेख अब्दुल्ला सरकार की हरकतों के बारे में बताया। जाहिर है कि इसके बाद जम्मू की स्थिति को लेकर दिल्ली में नेताओं की चिंता बढ़ी। जून-जुलाई की गर्मी बढ़ने के साथ जेलों में प्रजा परिषद् के सत्याग्रहियों की संख्या भी 294 तक पहुंच गई थी। बिना मुकदमा चलाये कार्यकर्ताओं को बंदी बनाकर रखा गया था। जिसको देखकर लगता था कि जम्मू में स्थिति किसी समय भी बिगड़ सकती है। बिगड़ती स्थिति को देखकर दिल्ली से कुछ सांसद बीच-बचाव के लिए आगे आये। इस बीच-बचाव के कारण प्रजा परिषद् के सभी गिरफ्तार नेता बिना शर्त छोड़ दिये थे। सरकार ने पं. प्रेमनाथ डोगरा पर भी लगाये सभी आरोप वापस ले लिये और उन्हें भी 8 अक्तूबर, 1949 को श्रीनगर केंद्रीय कारागार से रिहा कर दिया गया था। इस प्रकार प्रजा परिषद् के अध्यक्ष रूपचंद नंदा की अगुवाई में परिषद् का पहला आंदोलन सफलतापूर्वक समाप्त हुआ था।


प्रज्ञा परिषद् के आंदोलन को लेकर चौधरी चरण सिंह ने कहा था कि इस आंदोलन के दौरान सरकार ने बहुत सख्तियाँ की थी। लेकिन जम्मू के शेर टस से मस नहीं हुये थे। आखिर आंदोलन खत्म हुआ और सभी सत्याग्रहियों को रिहा किया किया गया। पं. प्रेमनाथ डोगरा को भी सम्मान सहित रिहा किया गया। जेल से बाहर आने पर पं प्रेमनाथ का जगह-जगह पर स्वागत किया गया था। आंदोलन के बाद प्रजा परिषद का नाम राजनीतिक दल के तौर पर जम्मू-कश्मीर के बाहर जाने लगा था और प्रजा परिषद् से लगातार लोग जुड़े रहे थे।